Featured

अल्मोड़ा में सरला बहन का मुकदमा और डिप्टी कलक्टर का बयान

गोविन्द राम काला का परिचय यूं दिया जा सकता है कि वे उत्तराखंड के उन चुने हुए लोगों में से थे जिन्होंने 1911 में ही इन्टरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. उस ज़माने में इतनी शैक्षिक योग्यता बहुत हुआ करती थी. इसके बाद वे ब्रिटिश सरकार के अनेक विभागों में रहे और 1945 में अंततः डिप्टी कलक्टर के पद से रिटायर हुए. एक ईमानदार और कर्मठ कर्मचारी के रूप में उनकी साख थी और वे अँगरेज़ अफसरों के साथ-साथ स्थानीय जनता के बीच भी बहुत लोकप्रिय थे. उनका एक परिचय यूं भी दिया जा सकता है कि वे मशहूर जीवनीकार-पत्रकार दुर्गाचरण काला के पिता थे. दुर्गाचरण काला ने ‘कॉर्बेट ऑफ़ कुमाऊँ’ और ‘हुलसन साहिब’ (फ्रेडरिक विल्सन की जीवनी) जैसी मशहूर किताबें लिखी थीं.

अपने नौकरी के दिनों को बेहतरीन स्मृतियों के रूप में गोविन्द राम काला ने ‘मेमोयर्स ऑफ़ द राज’ नाम की किताब में सूत्रबद्ध किया है. यह शानदार किताब उस समय के सामाजिक जीवन, भारत के स्वतंत्रता संग्राम और अंग्रेजों की कार्यशैली का बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेज है.

काफल ट्री के पाठकों के लिए इस पुस्तक के चुने हुए अंश प्रस्तुत किये जाएंगे. आज जिस हिस्से को हम पेश करने जा रहे हैं उसमें कौसानी में रहने वाली गांधीवादी सरला बहन के मुक़दमे का ज़िक्र है. मालूम हो कि सरला बहन एक अँगरेज़ महिला थीं जिनका असली नाम कैथरीन मैरी हीलमैन था. उत्तराखंड के कौसानी में जीवन का लंबा समय काट चुकी सरला बहन बाद में चिपको आन्दोलन के शुरुआती प्रेरणास्रोतों में से एक थीं. वाकया 1944 का है जब गोविन्द राम काला अल्मोड़ा के डिप्टी कलक्टर हुआ करते थे.

सरला बहन

सरला बहन का मुकदमा:

महात्मा गांधी की अंग्रेज शिष्या सरला बहन का मुकदमा अल्मोड़ा में मेरे द्वारा सुने गए मुकदमों में सबसे दुखी कर देने वाला था. ग्रामीण महिलाओं के उत्त्थान के लिए वे कभी अल्मोड़ा में रहती थीं कभी कौसानी में. वे गाँव की महिलाओं के साथ रहती थीं और उन्हें बच्चे पालने के तरीके और बेहतर गृहिणी बनने के बारे में बताया करती थीं. कभी कभी वे इन औरतों के बाल काढ़ने से लेकर उनके जूं निकालने तक के कार्य किया करती थी. ग्रामीण महिलाएं उन्हें बहुत प्रेम करती थीं.

अंग्रेज सरकार के खिलाफ नफ़रत और असंतोष फैलाने के जुर्म में सरला बहन को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया था. एसडीम ने केस मुझे ट्रांसफर किया हुआ था. उनकी पैरवी श्री देबीदत्त पन्त ने की जो एक सक्षम वकील और कट्टर राष्ट्रवादी थे. देबीदत्त पन्त बाद में संसद सदस्य भी बने और दिल्ली में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हुई. पंडित देबीदत्त ने बहुत अच्छे से केस लड़ा. उन दिनों अभियोग पक्ष के गवाह आम तौर पर पुलिस वाले हुआ करते थे क्योंकि अधिकाँश लोग राजनीतिक मामलों में अभियुक्तों के खिलाफ गवाही देने से बचते थे. उनके मुक़दमे ने मेरी चेतना को बहुत परेशान किया और समूचे मुकदमे के दौरान मैं अपना सर ऊपर न उठा सका. सरला बहन अपना मुल्क छोड़कर भारतीय महिलाओं की स्थिति सुधारने के उद्देश्य से यहाँ आई थीं. उन्होंने सम्पन्नता को त्याग कर गरीबी और परेशानी का जीवन चुना था. ये विचार बार-बार मुक़दमे के दौरान मेरे मन में आते रहे और उन्होंने मेरी तटस्थता को बहुत बाधित किया. जिस एक और बात ने मुझे परेशान किया वह ये थी कि उन्हें कई-कई घंटों तक डॉक में खड़ा रहना पड़ता था. उन्हें एक महीने के साधारण कारावास की सजा दी गयी. उन्होंने सिर्फ एक ही बात कही कि उन्हें दो साल की सजा की उम्मीद थी.

डिप्टी कमिश्नर मिस्टर डोनाल्डसन ने मुझसे कहा कि मैंने उनके द्वारा किये गए अपराध को देखते हुए बहुत ही आसान और कम सजा दी है. मैंने उन्हें समझाया कि सरला बहन की कुलीनता और उनके अपराध के तकनीकी आयामों को देखते हुए मैंने ऐसा फैसला दिया. लेकिन वे मेरी बात से सहमत नहीं हुए और चूंकि उनसे इस मामले में अधिक बात करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं था, मैंने उनसे इजाजत ली और बाहर चला आया. इसके बाद मैंने ध्यान दिया कि जब भी मैं उनसे मिलने उनके बंगले पर जाता था वे मुझे कुर्सी पेश करने से पहले एक-दो मिनट खड़ा रखते थे. उनका यह व्यवहार मुझे बहुत अपमानजनक लगा. इसके बाद जब भी मैं उनसे मिलने गया, मैं सुनिश्चित कर लिया करता था की उनके द्वारा पेश किये जाने से पहले ही कुर्सी पर बैठ जाया करता.

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

2 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

6 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

6 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

6 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

6 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

6 days ago