नीचे विडियो में देखें दो साल पहले तक गुमनाम पिथौरागढ़ के प्रोफेशनल बॉक्सर विमल पुनेरा Power of Visualization से वर्ल्ड चैंपियन बनने की राह पर बढ़ते हुए महज़ १० सेकंड में प्रतिद्वंद्वी को नॉकआउट कर बने एशिया चैंपियन:
(Making of a World Champion)
सोचने से कुछ भी हो सकता है. कुछ भी. अगर हम पूरे यकीन और भक्ति के साथ प्रार्थना करें, तो सड़क पर पड़े एक पत्थर में भी ईश्वर उतरकर आ सकता है. सब कुछ हमारे सोचने और यकीन करने पर निर्भर करता है. हम अगर खुद ही अपने पर यकीन नहीं करेंगे, तो कोई दूसरा हमारे लिए कुछ नहीं कर सकता, हम पर दया करने के सिवाय. मनुष्य सभ्यता बहुत अधिक विकसित हो चुकी, हमने बहुत लंबा इतिहास जी लिया. हमारे पास हैरतअंगेज उपलब्धियों की लाखों कहानियां हैं. करोड़ों लोग इस संसार में आकर असंभव काम करके जा चुके. वे हमें दिखा चुके कि चाहने पर असंभव से असंभव भी संभव हो सकता है.
आप लोगों ने ‘माउंटेन मैन’ दशरथ माझी का नाम सुना ही होगा, जिन्होंने बिहार के गया शहर के दो ब्लॉकों अत्री और वजीरगंज के बीच सिर्फ हथौड़े और छैनी से काम करके 55 किलोमीटर की दूरी को 110 मीटर लंबी, 9.1 मीटर चौड़ी और 7.7 मीटर गहरी सड़क बनाकर उसे 15 किलोमीटर कर दिया. इसके लिए उन्होंने 22 साल तक रोज अकेले ही सड़क खोदने का काम किया. कैसे-कैसे गरीब परिवार के लोगों ने अपने जीवन को संघर्ष की ऐसी दास्तां बना दिया कि पढ़ते-सुनते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
(Making of a World Champion)
महात्मा गांधी ने बिना हथियार उठाए एक देश को आजाद कराने की बात सोची और करके दिखाया. सोचना पहला कदम है. क्योंकि सोचने के साथ ही फैसला भी किया जाता है. सोचने को आज हमने नेगेटिव बना दिया है. हम नकारात्मक बातें सोच-सोचकर डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. सारे प्राणी जगत में अगर मनुष्य सबसे ऊपर है, तो इसलिए नहीं कि उसके पास सबसे ज्यादा ताकत है, बल्कि इसलिए कि वह सोच सकता है. वह चांद को देखकर सोच सकता है कि एक दिन वह वहां जाएगा. उसने सोचा और वह वहां गया. जाना बड़ी क्रिया नहीं है. सोचना बड़ी बात है. जाना तो उसी दिन तय हो गया था, जिस दिन उसने सोचा. मैं एक दिन विंबलडन में खेलूंगा और चैंपियनशिप जीतकर अपने देश का नाम रोशन करूंगा – एक खिलाड़ी को सिर्फ इतना सोचना भर है और खुद पर यकीन करना है. बाकी सब अपने आप होगा. हमने क्या काम करने के लिए सोचा है, यह बड़ी बात नहीं. उसे पूरा करने के लिए खुद पर यकीन होना बड़ी बात है. सफलता के लिए जरूरी. यह न भूलें कि हम सभी परमात्मा की संतानें हैं. जितना ताकतवर परमात्मा है, संतानों में भी उतनी ही ताकत छिपी हुई है.
(Making of a World Champion)
कुछ भी सोचा जा सकता है. लेकिन सोचकर उस पर सौ फीसद यकीन रखना भी जरूरी है. यकीन अगर 99.99 प्रतिशत भी हुआ, तो सोचा हुआ पूरा न हो पाएगा.
दुनिया में हम जितने भी लोगों को हैरतअंगेज कारनामे करते देख रहे हैं, सब उनके सोचने और उस सोचे हुए पर सौ फीसद यकीन करने से ही पूरा हो रहा है. सोचने और जो सोचा है उस पर यकीन करने जैसा कोई दूसरा जादुई कॉम्बिनेशन नहीं. मेडिकल क्षेत्र में दो पद बहुत पॉपुलर हैं – Placebo Effect और Nocebo Effect. इन्हें लेकर दुनियाभर में हजारों अध्ययन हो चुके और सभी में ऐसे नतीजे मिले, जिन्होंने इन प्रभावों को सही बताया है.
प्लेसीबो प्रभाव को जानने के लिए किसी खास रोग से पीड़ित रोगियों के दो ग्रुप बनाए गए. एक ग्रुप को उस रोग की असली दवा दी गई, जबकि दूसरे ग्रुप को दवा बताकर सिर्फ पानी दे दिया गया. रोगियों को बताया गया कि यह एक नई दवा बनाई गई है, जिसका रोगियों को ठीक करने का रेकॉर्ड सौ फीसद है यानी एक भी ऐसा रोगी नहीं, जो इसे खाकर ठीक नहीं हुआ हो. यह बात हर रोगी को इस तरीके से बताई गई कि उन्हें इस बात पर पूरा भरोसा हो जाए कि इस दवा से वे ठीक हो जाएंगे.
(Making of a World Champion)
अध्ययन में पाया गया कि जिन रोगियों को दवा दी गई थी, वे तो ठीक हो ही गए, जिन्हें दवा बताकर पानी दिया गया था, वे भी सभी ठीक हो गए. वे सभी ठीक इसीलिए हो गए, क्योंकि उन्होंने सौ फीसद यकीन किया कि वे दवा खाकर ठीक हो जाएंगे. नोसीबो प्रभाव के तहत उलटा होता है, इसमें रोगियों को यकीन नहीं होता कि वे दवा से ठीक होने वाले हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें सबसे प्रभावी दवा देने के बावजूद देखा गया कि वे ठीक नहीं हुए हैं.
जीवन में आप किसी भी क्षेत्र में सफलता की चाह रखें और उसके लिए कितना भी प्रयास करें, सबसे ज्यादा जरूरी है कि पहले आप सोचें और फिर अपने सोचे हुए पर भरोसा करें. भरोसे में ही सफलता है. अगर भरोसा पूरा है, तो मेहनत, किस्मत, अवसर जैसे सफलता दिलवाने के लिए जरूरी कारक खुद ब खुद आपकी जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं.
(Making of a World Champion)
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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