महाराष्ट्र में सत्ता प्रकरण से संबधित तेजी से बदल रहे घटनाक्रम से मजा ले रहे सोशल मीडिया के सुधी जनों की पोस्टों और टिप्पणियों को देखकर मुझे अपने गाँव का मरहूम शख्स अमरू मडवाण याद हो आता है. (Maharashtra Politics and Amru Madwal )
एक जमाना था जब हमारे लोग कृषि में उपयोग के चलते पशुधन, खासकर बैलों को सबसे मूल्यवान निधि समझते थे लेकिन अमरू मडवाण का ख्याल इस बारे मे कुछ अलहदा था. बाकी लोग जहाँ बैलों को किसी मूल्यवान संपति की तरह बडी हिफाजत से उन्हे चराते चुगाते वहीं अमरू मडवाण को बैल लड़ाने मे बडा आनन्द आता. (Maharashtra Politics and Amru Madwal )
पहाड़ की पतली पगडंडियों से गुजरते हुए अमरू अक्सर अपने बैल को किसी दूसरे के बैल से लड़ाता जिसके चलते लड़ने वाले बैलों का खाई में गिरने का डर हमेशा बना रहता. अमरू की इस हरकत के चलते लोगों ने अपने बैलों पर नजर रखनी शुरू कर दी.
अमरू के पास कुल जमा एक जोड़ी बैल थे. जब बाकी गाँव के लोगों ने अपने बैलों को अमरू के बैलों से लड़ाने को मना कर दिया तो एक दिन तमाशे के शौकीन अमरू मडवाण ने अपने दोनो बैलों को आमने सामने हाँक दिया. फिर क्या था, अमरू मडवाण के दोनो बैल एक दूसरे पर पिल पडे. अमरू के दोनो बैलों ने बहादुरों की तरह एक दूसरे से लड़ाई लड़ी, सींगों को लहू-लुहान किया, जख्म खाए और लड़ते,लड़ते नीचे की ओर उतर रही एक गहरी खाई मे समा गये. (Maharashtra Politics and Amru Madwal)
अमरू इस लडाई के दौरान शुरू से आखिर तक कभी उत्तेजित तो कभी उद्वेलित होते हुए तालियां पीटता रहा. रण भूमि में अपने दोनो बैलों को कुर्बान करने के बाद अमरू जब घर को लौट रहा था तो बगल में मवेशी चरा रहे एक बुजुर्ग ने अमरू से कहा –
“अमरू भाई, तुम्हारे
बैल तो अब नही रहे, इस
बार खेत मे हल कैसे लगाओगे.”
अमरू ने प्रफुल्लित होते हुए कहा – ”खेतों मे हल लगाने के लिए
बैल नही रहे तो क्या हुआ, मनोरंजन
तो पूरा पूरा हुआ. “
तो मितरो, महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामे के दौरान आपके मनोरंजन मे कोई कमीबेशी नही रहनी चाहिए, बाकी डेमोक्रेसी की ऐसी की तैसी होती हो तो होती रहे, आपको और हमें इससे क्या.
-सुभाष तराण
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
स्वयं को “छुट्टा विचारक, घूमंतू कथाकार और सड़क छाप कवि” बताने वाले सुभाष तराण उत्तराखंड के जौनसार-भाबर इलाके से ताल्लुक रखते हैं और उनका पैतृक घर अटाल गाँव में है. फिलहाल दिल्ली में नौकरी करते हैं. हमें उम्मीद है अपने चुटीले और धारदार लेखन के लिए जाने जाने वाले सुभाष काफल ट्री पर नियमित लिखेंगे.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…