गत सप्ताह सीबीआई टीम के कोलकाता पुलिस आयुक्त से पूछताछ करने कोलकाता पहुंचने पर जिस प्रकार सीबीआई टीम को ही हिरासत में लिए जाने का हास्यास्पद समाचार सामने आया वह निश्चित रूप से सीबीआई की साख और सीबीआई के प्रति जनता के सम्मान को चोट पहुंचाता है. इस प्रकार की घटनाएं भारत के संघीय स्वरूप के लिए बेहद चिंताजनक है लेकिन संविधान द्वारा विभक्त शक्तियों के आलोक में यदि सीबीआई के क्षेत्राधिकार की समीक्षा करें तो यह घटनाक्रम उतना असंवैधानिक भी नहीं लगता क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य सूची का विषय है और राज्य सरकार की सहमति के बगैर इस पर केंद्रीय हस्तक्षेप पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं भविष्य में सीबीआई तथा अन्य राज्यों के बीच इस प्रकार की टकरा हटना हो इसके लिए संविधान में पुख्ता आधार सीबीआई को दिए जाने की आवश्यकता है.
सीबीआई का गठन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
वर्ष 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना में शस्त्रों वाहनों तथा अन्य सामग्रियों की खरीददारी में भ्रष्टाचार की सूचना प्राप्त हुई जिसकी जांच करने के लिए युद्ध मंत्रालय द्वारा एक जांच दल गठित किया गया इस जांच दल द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुए इस घोटाले की बहुस्तरीय जांच की जांच की गुणवत्ता के आधार पर अन्य केंद्रीय विभागों में भी भ्रष्टाचार की जांच हेतु एक केंद्रीय जांच एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई. परिणामस्वरूप वर्ष 1946 में दिल्ली पुलिस स्पेशल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के द्वारा इस जांच एजेंसी का स्थायीकरण कर दिया गया और यह जांच एजेंसी युद्ध मंत्रालय से गृह मंत्रालय के अधीन आ गई.
प्रारंभ में इस केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा मुख्य रूप से भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों का ही अनुसंधान किया धीरे धीरे इसके कार्य क्षेत्र में विस्तार होता गया और इस किसान भी बढ़ती गई तो 1 अप्रैल 1963 को इस एजेंसी का नाम बदलकर सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन कर दिया गया जो आज की सीबीआई है. क्षेत्राधिकार के प्रश्न पर बहुत स्पष्ट निर्देश यहां भी नहीं थे सीबीआई को निम्न प्रकार से मामले स्थानांतरित होते हैं
1 – केंद्र सरकार के किसी भी कार्यालय अथवा वित्तीय संस्थान अथवा बैंक के भ्रष्टाचार और गबन सबंधित मामला
2 – किसी राज्य सरकार द्वारा अपने राज्य में घटित किसी महत्वपूर्ण अपराध की विवेचना किए जाने का प्रस्ताव गृह मंत्रालय को भेजा जाता है गृह मंत्रालय के अनुमोदन उपरांत उक्त विवेचना सीबीआई को स्थानांतरित की जा सकती है
3 – सर्वोच्च न्यायालय अथवा राज्यों के उच्च न्यायालय भी किसी आपराधिक मामले की विवेचना सीधे सीबीआई को स्थानांतरित कर सकते हैं.
जन विश्वास की दृष्टि से उचित नहीं है यह टकराव
चूंकि कानून व्यवस्था राज्य सूची का विषय है इस कारण सीबीआई अपराधिक मामलों में राज्य सरकार की सहमति के बगैर किसी राज्य में सीधे अनुसंधान व कार्रवाई नहीं कर सकती है. यही वह बिंदु है जो विभिन्न राज्य सरकारों और सीबीआई के मध्य टकराव का कारण बन रहा है इसी आधार पर इसी वर्ष पहले आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा फिर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा सीबीआई की स्वयं के राज्य में प्रवेश के अधिकार को सीमित कर दिया. पूर्व में जब केंद्र तथा अधिकांश राज्यों में एक ही राजनीतिक दल की सरकार थी तो इस प्रकार का टकराव नहीं देखा गया लेकिन वर्त्तमान तीक्ष्ण होती राजनीति के परिप्रेक्ष्य मे क्षेत्राधिकार के प्रशन पर इस प्रकार की टकराहट की आशंका बढ़ जाती है.
इस प्रकार की टकराहट सीबीआई की साख तथा जन विश्वास की दृष्टि से उचित नहीं है. सीबीआई के क्षेत्राधिकार के प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश से उसी प्रकार संशोधित किया जा सकता है जिस प्रकार सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के मामले में विनीत नारायण बनाम भारत संघ के मामले में सीबीआई ने केंद्र सरकार को दिशा निर्देश दिए जिससे सीबीआई निदेशक की नियुक्ति का एक अलग से एक्ट बना ठीक उसी प्रकार राज्यों में सीबीआई के कानून व्यवस्था के प्रश्न पर हस्तक्षेप किए जाने का विषय भी सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट कर सकता है.
इसके अलावा इस दिशा में भारत सरकार को राष्ट्रीय महत्व के कुछ ऐसे प्रश्नों को जो कानून व्यवस्था के हो उनके राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए उन्हें राज्य सूची के हटाकर समवर्ती सूची में लाकर सीबीआई के क्षेत्राधिकार का विवाद संवैधानिक रूप से हल किया जा सकता है. यह आने वाले समय पर केंद्र राज्य संबंधों के आलोक में एक ज्वलंत समस्या है जिसका समय रहते समाधान किया जाना चाहिए.
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प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.
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