उत्तराखण्ड के देहरादून जिले के लाखामंडल गाँव के पास ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक महत्त्व की धरोहरें हैं. ये धरोहरें उपेक्षित हैं, इसी वजह से जिस जगह पर सैलानियों का साल भर ताँता लगा रहना चाहिए वहां गिने चुने लोग ही खुद की पहलकदमी लेकर आ पाते हैं.
हमने आपको बताया था लाखामंडल के भवानी पर्वत की रहस्यमयी गुफाओं के बारे में. लाखामंडल की सबसे अमूल्य धरोहर है पुरातन शिव मंदिर. शिव और पार्वती को समर्पित यह मंदिर पांडवकालीन बताया जाता है. मंदिर के विषय में स्थानीय लोग 2 कहानियां बताते हैं.
कहा जाता है कि इसी जगह दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह अर्थात लाख का मंदिर बनाया था. इसके बाद पांडव देव कृपा से एक गुफा में होते हुए इस लाक्षागृह से बाहर निकले थे. जहाँ से पांडव बाहर निकले वह चित्रेश्वर नाम की वह गुफा शिव मंदिर से 2 किमी की दूरी पर ही लाखामंडल गाँव के निचले हिस्से में मौजूद है. किवदंती है कि इसी लिए युधिष्ठिर ने इस जगह पर मंदिर बनवाया ताकि शिव-पार्वती की शक्तियों का शुक्रिया अदा कर सकें.
एक अन्य कहानी के अनुसार जब पांडव महाभारत के युद्ध के बाद हिमालय आए तो उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया और यहाँ पर एक लाख शिवलिंगों की स्थापना की. कहते हैं कि लाखा का मतलब है लाख और मंडल का अर्थ लिंग. यानि एक लाख शिवलिंगों को स्थापित किये जाने के कारण ही इस जगह का नाम लाखामंडल पड़ा है.
केदारनाथ की ही शैली में बने इस शिवमंदिर के गर्भगृह में शिव, पार्वती के अलावा काल भैरव, कार्तिकेय, सरस्वती, गणेश, दुर्गा, विष्णु, सूर्य, हनुमान आदि भगवानों की मूर्तियाँ मौजूद हैं. इसके अलावा यहाँ पर युधिष्ठिर समेत पंचों पांडवों की भी मूर्तियाँ मौजूद हैं. इस मंदिर में मौजूद मूर्तियों को देखकर इसके भव्य संग्रहालय होने का भान होता है. मंदिर के विशाल परिसर में भी ढेरों मूर्तियाँ, लघु शिवालय और शिवलिंग बिखरे हुए हैं. संरक्षण के अभाव में कई मूर्तियाँ नष्ट-भ्रष्ट हो चुकी हैं और कई खंडित होकर बिखरी हुई हैं. आज यह मंदिर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है लेकिन हालत बुरे ही कहे जायेंगे.
परिसर में मौजूद शिवलिंगों में से गहरे हरे शिवलिंग को द्वापर युग का बताया जाता ही जब कृष्ण ने अवतार लिया था. लाल शिवलिंग त्रेता युग का है जब राम ने अवतार लिया. मंदिर परिसर में मौजूद एक शिवलिंग में जल चढ़ाने पर उसमें आप अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं.
मंदिर के गर्भगृह में मौजूद पैर के निशान पार्वती के बताये जाते हैं. मंदिर के सभी पत्थरों पर मौजूद खुरों के निशान गाय माता के कहे जाते हैं. इस बारे में कहावत है की गर्भगृह के शिवलिंग की खोज तब की जा सकी जब यमुनापार की एक गाय यहाँ आकर दूध से लिंग का अभिषेक किया करती थी.
मंदिर के पश्चिमी हिस्से में मौजूद 2 मूर्तियाँ द्वारपालों, जय, विजय, की कही जाती हैं. इस बारे में मान्यता है कि इन मूर्तियों के सामने किसी मृतक व्यक्ति को रख देने पर पुजारी उसके ऊपर गंगाजल छिड़क देते थे और वह व्यक्ति जी उठता था. जीवित होते ही वह शिव का नाम लेता था और उसके मुंह में गंगाजल डाला जाता और वह पुनः शरीर त्यागकर स्वर्ग चला जाता था. कहते हैं कि एक दफा एक स्त्री ने जिंदा हो चुके अपने पति को यहाँ से ले जाने की कोशिश की उसका बाद से यह चमत्कार नहीं हुआ है.
लाखामंडल क्षेत्र की खुदाई करने पर यहाँ कई अन्य पुरातात्विक महत्त्व की चीजें मिलने की सम्भावना है.
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