शादी ब्याह के लिए रिश्ते की शुरूआत वर एवं कन्या के कुण्डली मिलान से होता है. कुण्डली मिलान के लिए स्वयं इसके ज्ञान के अभाव में प्रायः ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले किसी पुरोहित की शरण में जाना पड़ता है. मोटे मोटे तौर पर कुण्डली मिलान में मांगलिक दोष, भ्रकुट (षडाष्टक) नाड़ी दोष तथा गुणों का मिलान ही प्रमुख होता है. यों तो ज्योतिष शास्त्र इतना विशद् तथा जटिल है कि सतही जानकारी रखने वाले सटीक फलादेश नहीं दे सकते, साथ ही यदि वर कन्या के सारे ग्रहों की अनुकूलता की खोज करने लगें तो उपयुक्त जोड़ा मिल पाना भी संभव नही हो पायेगा. इसलिए अगर मुख्य मुख्य दोषों पर विचार करके ही आप कुण्डली मिलान करना चाहें तो बिना किसी पुरोहित की सहायता से स्वयं ही कुण्डली मिलान कर सकते हैं, यदि कहीं दुविधा हो तब पुरोहित की सहायता ली जा सकती है. आइये! जानते हैं कैसे आप कुण्डली मिलान करें. (Kundali Milan)
इसके लिए कुछ बुनियादी जानकारी आपको होनी चाहिये. भारतीय ज्योतिष के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहु व केतु कुल नौ ग्रह माने गये हैं. इसी तरह क्रमानुसार मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन कुल बारह राशियां हैं. अश्वनी से लेकर रेवती तक कुल 27 नक्षत्र हैं. प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं. जैसे अश्वनी नक्षत्र के चार चरण हैं- चू,चे,चो,ला. जातक का जन्म नक्षत्र के जिस चरण में हुआ है, उसी अक्षर के अनुरूप उसका नामकरण किया जाता है. उदाहरण के लिए किसी जातक का जन्म अश्वनी नक्षत्र के द्वितीय चरण में हुआ है तो ज्योतिषीय सिद्धान्त के अनुसार उसका नाम ’चे’ से ही होना चाहिये. यह बात अलग है कि उस शब्द से उपयुक्त नाम न मिलने पर हम ’च’ वर्ण को ही मानकर नाम रख देते हैं. इस प्रकार मोटे मोटे तौर पर एक राशि में दो नक्षत्र तथा तीसरे नक्षत्र के यथास्थिति एक या दो चरण शामिल होते हैं.
प्रस्तुत कुण्डली को आधार मानकर हम आगे अध्ययन करते हैं.
कुण्डली में जहां 9 अंक लिखा है, वह कुण्डली का लग्न कहलाता है. लग्न में शुक्र ग्रह विराजमान हैं, इसलिए इसे हम शुक्र लग्न की कुण्डली भी कह सकते हैं. लग्न को प्रथम भाव से गिनती करते हुए बायें को चलें तो अंकों के क्रमानुसार द्वितीय, तृतीय चतुर्थ और अन्त में जहां 8 का अंक लिखा गया है, वह द्वादश भाव कहलायेगा. 9,12,3 और 6 लिखे स्थान कुण्डली के केन्द्र स्थान कहे जाते हैं. कुण्डली में जिस भाव में चन्द्रमा की उपस्थिति होगी, वहां पर जो अंक लिखा गया है, वह जातक की राशि होगी. यहां पर चन्द्रमा पर 4 अंक लिखा गया है, चौथी राशि कर्क होती है, इसलिए कुण्डली के अनुसार जातक की कर्क राशि होगी. अगर वर और कन्या की राशि कुण्डली के आधार पर आप जानना सीख गये तो भ्रकुट (षडाष्टक) दोष जानना आपके लिए आसान हो जायेगा. क्योंकि इसको राशि के आधार पर ही जाना जाता है.
भ्रकुट (षडाष्टक) का मतलब है छठवी और आठवीं राशि. यदि वर कन्या की राशि परस्पर छठी अथवा आठवीं हो तो भ्रकुट (षडाष्टक) दोष माना जायेगा. उदाहरण के लिए वर की राशि मेष है तो मेष से छठी राशि हुई कन्या और आठवी राशि हुई वृश्चिक, इस प्रकार मेष राशि वाले वर व कन्या के लिए कन्या राशि व वृश्चिक राशि के साथ भ्रकुट (षडाष्टक) होगा. इसी क्रम में वृष राशि वालों के लिए तुला व धनु राशि के साथ, यही क्रम चलता रहेगा. भ्रकुट (षडाष्टक) के संबंध में मान्यता है कि यह दम्पत्ति के परस्पर कलह का कारक माना जाता है. भ्रकुट (षडाष्टक) में विवाह संबंध वर्जित माना गया है.
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि कुल 27 नक्षत्र होते हैं. जिस नक्षत्र में जातक पैदा होता है, वह उसका जन्म नक्षत्र होता है. 27 नक्षत्रों में पहला नक्षत्र- अश्वनी आदि नाड़ी, दूसरा – भरणी मध्य नाड़ी तथा तीसरा – कृतिका अन्त्य नाड़ी चौथा – रोहिणी पुनः प्रथम नाड़ी, पांचवा – मृगसिरा मध्य नाड़ी. इसी प्रकार यही क्रम आगे बढ़ता जाता है. वर एवं कन्या की एक नाड़ी होना ही नाड़ी दोष कहलाता है. माना कि वर का नक्षत्र भरणी है और कन्या का मृगसिरा है तो इस प्रकार दोनों की मध्य नाड़ी हुई, तो नाड़ी दोष कहलायेगा और विवाह वर्जित होगा. इस प्रकार 27 नक्षत्रों में 9 आदि नाड़ी, 9 मध्य नाड़ी तथा 9 अन्त्य नाड़ी के नक्षत्र हैं. वर व कन्या में नाड़ी भेद आवश्यक माना गया है. यदि वर व कन्या के जन्म नक्षत्र एक हों लेकिन उनके चरण अलग अलग हों तो नाड़ी दोष नहीं लगता. कभी कभी जन्म नक्षत्र एक होने पर भी चरणों की भिन्नता से राशि अलग अलग हो जाती हैं, ऐसे में भी नाड़ी दोष नहीं माना जाता. अन्य कई ऐसे संयोग बताये गये हैं, जिनमें नाड़ी दोष नहीं माना जाता. ब्राह्मणों में नाड़ी दोष को प्रमुख दोष माना जाता है और इसके दुष्परिणाम निम्न श्लोक में वर्णित हैं –
“आदि नाड़ी वरं हन्ति, मध्य नाड़ी च कन्यका.
अन्त्य नाड़ी द्वयो हन्ति , नाड़ी दोषं त्यजेद बुधः.”
दोनों की आदि नाड़ी होने पर वर के लिए घातक, दोनों की मध्य नाड़ी होने पर कन्या के लिए घातक तथा दोनों की अन्त्य नाड़ी होने पर वर व कन्या दोनों के लिए घातक बताया गया है. इसलिए सारी कुण्डली का मिलान होने पर भी यदि नाड़ी दोष है तो विवाह वर्जित है.
कुण्डली में पहले, चौथे, सातवे, आठवें एवं बारहवें स्थान में मंगल की उपस्थिति मांगलिक दोष कहलाती है. पहले, चौथे एवं बारहवें भाव में मंगल आंशिक मंगली के श्रेणी में आता है जब कि सातवें व आठवें भाव में मंगल ज्यादा अरिष्टकारी माने गये हैं. ऐसी दशा में सातवें एवं आठवे मंगल वाले वर एवं कन्या का विवाह सातवें व आठवें मंगल वाले वर एवं कन्या से करने की सलाह दी जाती है. आंशिंक मंगली वर अथवा कन्या के केन्द्र में यदि गुरू विराजमान हैं तो मंागलिक दोष क्षीण माना जाता है. हालांकि सातवे एवं आठवे मंगल वाली कुण्डली में भी केन्द्र में गुरू होने की दशा में उसका असर कम बताया जाता है. दी गयी कुण्डली में चतुर्थ भाव में मंगल होने से आंशिक मंगली का प्रभाव है लेकिन दशम भाव यानि केन्द्र में गुरू होने से मंगल का प्रभाव क्षीण हो गया है. मान्यता यह भी है कि 28 वर्ष की आयु के उपरान्त ग्रहदोष का प्रभाव क्षीण हो जाता है, लेकिन सातवें एवं आठवें मंगल वाले वर कन्या को योग्य ज्योतिषी से अवश्य परामर्श लेना श्रेयस्कर होगा.
अष्टकूट चक्र से गुण मिलान किया जाता है. अष्ट कूट चक्र में गणदोष, भ्रकुट ,नाड़ी दोष, वर्ण, वश्य, तारा, योनि एवं ग्रह मैत्री ये आठ आधारों पर गुणों की गणना की जाती है. वैदिक ज्योतिष में प्रथम तीन – गणदोष, भ्रकुट दोष एवं नाड़ी दोष इन तीनों के अनुकूल होने पर 6$7$8=21 गुण सीधे मिल जाते हैं. जब कि कुल 36 गुणों से 18 या उससे अधिक गुण मिलने पर विवाह किया जा सकता है. हालांकि माना ये जाता कि जितने अधिक गुण ज्यादा मिलेगें उतना दाम्पत्य जीवन के लिए हितकर होगा. शेष पांचों- वर्ण, वश्य, तारा, योनि एवं ग्रह मैत्री के लिए 1$2$3$4$5=15 गुणों की गणना की जाती है. यानि दोनों का वर्ण समान होने पर एक गुण, वश्य समान होने पर दो गुण इसी तरह जुड़ते जाते हैं. मोटे तौर पर कह सकते हैं, कि गणदोष, भ्रकुट एवं नाड़ी दोष न होने पर अन्य गुणों का मिलान न भी करें तो 21 गुणों के मिलने पर विवाह किया जा सकता है. लेकिन गुणों के मिलने के बावजूद मंगल दोष पर अलग से विचार किया जाना समीचीन होगा.
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.
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