यात्रा पर्यटन

स्वामी विवेकानंद की बोधगया ‘काकड़ीघाट’

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

उत्तराखंड की कंदराएं, गुफाएं कई ऋषि मुनियों की तपस्थली रही हैं. इन तपस्थलियों तक पहुंचने से पहले रास्ते में पड़े कई स्थान भी उनके पावन कदमों से पवित्र हो गए. भवाली से जब हम अल्मोड़ा की तरफ बढ़ते हैं तो लगभग 35 किलोमीटर आगे कोसी नदी के तट पर पेड़ों से अच्छादित एक रमणीक स्थल के दर्शन होते हैं. इस सुंदर जगह को देखकर और अल्मोड़ा मात्र 20 किलोमीटर  का बोर्ड देखकर घुमावदार सड़क में यात्रा के दौरान पेट में उमड़ घुमड़ मचने से जो तबीयत नासाज़ हो जाती है, वह भी मुस्कुरा उठती है. यह स्थान इतना मनोरम है कि दूर सड़क से ही आकर्षित करने लगता है.
(Kakdighat Travelogue Amrita Pandey)

सड़क के घुमाव को पार करते हुए लगभग आधा किलोमीटर बाद एक स्थान पर ‘विवेकानंद तपस्थली पुण्य भूमि काकडी़घाट’ का चमकीला बोर्ड लगा है. मुख्य मार्ग अल्मोड़ा को छोड़कर हम इस सड़क पर बाईं ओर मुड़ जाते हैं. बताते हैं कि यह द्वारसों कर्णप्रयाग पैदल मार्ग हुआ करता था, जो कालांतर में पक्का मार्ग बन गया है.

यह जगह अल्मोड़ा नैनीताल ज़िलों की सीमा पर पड़ती है और नैनीताल सीमा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. एक शांत मनोरम स्थल जो कई सिद्ध पुरुषों की तपस्थली रहा है. ‘उठो, जागो और कर्म करो’ का मूल मंत्र देशवासियों को देने वाले स्वामी विवेकानंद जी के पावन चरण यहां पर पड़े थे.

1890 में जब स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य स्वामी अखंडानंद के साथ बेल्लूर मठ से हिमालय यात्रा को निकले तो आराम करने के लिए यहां पर ठहर गये थे. स्नान करने के बाद यहां स्थित पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और ध्यानरत हो गए. यहां पर उन्हें अनोखी ज्ञान की प्राप्ति हुई. अणु ब्रह्मांड और विश्व ब्रह्मांड का सार उन्हें यहीं प्राप्त हुआ.

काकड़ीघाट को स्वामी जी की बोधगया भी कहते हैं जैसे गौतम बुद्ध को गया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था वैसे ही स्वामी जी को भी काकड़ीघाट स्थित पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धि मिली.

‘अल्मोड़ा का आकर्षण’ नाम की पुस्तिका में स्वामी जी ने इस बात का उल्लेख किया है. स्वामी जी आत्मा और परमात्मा की तुलना शब्द और अर्थ से करते हैं. अर्थात जैसे परमात्मा बिना आत्मा का कोई मोल नहीं वैसे ही अर्थ के बिना शब्द का भी कोई भाव नहीं.
(Kakdighat Travelogue Amrita Pandey)

स्वामी जी का अल्मोड़ा से विशेष संबंध रहा है. बाज़ार के मध्य में स्थित खजांची मोहल्ले में उन्होंने अल्मोड़ा की जनता को संबोधित भी किया था. ‘कोलंबो से अल्मोड़ा के लिए’ उनकी एक और पठनीय पुस्तक है जहां इन यात्राओं का वर्णन भी आता है. अपनी चौथी अल्मोड़ा यात्रा के दौरान उन्होंने यहां के प्रसिद्ध थॉमसन हाउस में निवास किया और प्रबुद्ध भारत पत्रिका का प्रकाशन भी दोबारा शुरू किया.

स्वामी जी के अतिरिक्त चंद वंशीय राजाओं के समय में यहां हर्ष देवपुरी नाम के सिद्ध बाबा भी रहते थे. बताया जाता है कि वह शंकराचार्य के अनुयायी थे. इन्हें लोग गोसाईं बाबा के नाम से भी पुकारते थे. बाबा की समाधि आज भी वहां पर है. शिव और भैरव के मंदिर यहां पर हैं, आसपास के पेड़ों में बंदरों की बहुलता है इसलिए मंदिर के द्वार हमेशा ढके रहते हैं. भक्त दर्शन करने के बाद मंदिर के दरवाज़े बंद कर देते हैं. एक ध्यान कक्ष भी यहां पर दिखाई दिया जहां स्वामी विवेकानंद जी और स्वामी रामकृष्ण परमहंस के चित्र लगे हुए हैं. कोई भी साधक यहां पर ध्यान मग्न होकर अपार शांति की अनुभूति प्राप्त कर सकता है.
(Kakdighat Travelogue Amrita Pandey)

पीपल के वृक्ष के पास लगे बोर्ड में समस्त जानकारी मिलती है. जिसमें लिखा गया है कि स्वामी जी 21 अगस्त 1890 को यहां पर आए थे और उन्होंने रात्रि वास किया था. 2014 में वह चमत्कारी पीपल का वृक्ष सूख गया था और उसके स्थान पर एक नया वृक्ष लगाया है जो अब पूरी तरह से पल्लवित होकर बृहद आकर ले रहा है. इस ज्ञानवृक्ष के नीचे बैठकर स्वामी जी को जो अनुभूति हुई थी, उसे उन्होंने अपने शिष्य के सामने अभिव्यक्त किया था जो इस प्रकार है –

अभी-अभी मैं अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण क्षण से गुजरा हूं. इस पीपल वृक्ष के नीचे मेरे जीवन की एक महान समस्या का समाधान हो गया है. मैंने सूक्ष्म ब्रह्मांड और वृहद ब्रह्मांड के एकत्व का अनुभव किया है. जो कुछ ब्रह्मांड में है, वही इस शरीर रूपी पिंड में भी है. मैंने संपूर्ण ब्रह्मांड को एक परमाणु के अंदर देखा है.

और स्वामी जी का यह कथन वहां पर एक शिला में उल्लिखित है जिसे हर रोज़ ताज़े फूलों से सजाया जाता है.

सन् 1900 में सोमवारी बाबा भी यहां पर रहे और मान्यता है कि शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए थे. बाद में नीम करौली बाबा उनके शिष्य बने. सोमवारी बाबा दीन दुखियों के आश्रयदाता माने जाते थे. यहां पहुंचने पर पहले नीम करौली बाबा का आश्रम पड़ता है और वहीं पर सोमवारी बाबा का मंदिर भी है. सामने कोसी नदी बहती है जो शास्त्र में कौशिकी नाम से जानी जाती हैं.
(Kakdighat Travelogue Amrita Pandey)

कोसी नदी का यहां पर संगम है जिस बारे में लोगों में भ्रांति है कि सील नदी के साथ कोसी का संगम होता है जबकि सच्चाई यह है कि एक नाला यहां पर कोसी में समाहित होता है जिसमें पानी की अधिकता होने के कारण नदी का सा स्वभाव प्रतीत होता है. यहीं पर नदी के बीचों बीच एक टापू बना है. नदी में मछलियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं लेकिन इस स्थान पर मछली का शिकार करना वर्जित है. यह शास्त्र सम्मत नहीं माना जाता. कई वाकये हैं जो बताते हैं कि ऐसा करने वाला को ईश दंड मिला या उनके साथ कोई न कोई अनहोनी हुई. बताया जाता है कि सोमवारी बाबा ने ही इसे निषिद्ध करवाया था. समय के साथ-साथ आश्रम में काफी बदलाव आ गया है. हालांकि सोमवारी बाबा की श्रद्धा के अंश शिवलिंग और धूनी आदि से छेड़छाड़ नहीं की गई है. विवेकानंद शिला को जाने के रास्ते पर एक प्राइमरी स्कूल भी पड़ता है. तप स्थली का रास्ता थोड़ा टूटा फूटा है, जिसे सही करने की ज़रूरत है. नीम करौली बाबा के आश्रम में अपेक्षाकृत ज्यादा रखरखाव दिखाई देता है क्योंकि कैंची धाम ट्रस्ट ही इसकी देखभाल करता है.
(Kakdighat Travelogue Amrita Pandey)

मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

इसे भी पढ़ें : संग्रहालय की सैर

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago