Featured

‘जोहान वी हल्टिन’ द वायरस हंटर

अलास्का में आर्कटिका से बस 75 मील दूर अवस्थित एक छोटे से तटीय गांव ‘ब्रेविग मिशन’ में जून 1951 में एक अजीब दृश्य देखा गया. आयोवा से आए एक आगंतुक ने वहां के कब्रिस्तान में पहले छोटे-छोटे फायर प्लेस बनाए और फिर कब्रों को खोदना शुरू कर दिया. उसका कहना था कि वो एक सीरियल किलर का पीछा करता हुआ आया है जिसके सिर पर एक नहीं बल्कि 4 करोड़ से ज्यादा लोगों की हत्या का आरोप है. ये हत्याएं आज नहीं आज से तकरीबन तीस–तैंतीस साल पहले की गईं थीं. उस आगंतुक का नाम था जोहान वी हल्टिन और जिस हत्यारे के बाबत वो जानकारी जुटाने वहां आया था वो था स्पानी फ्लू, स्पैनिश इन्फ्लूएंजा या इतिहास के क्रूरतम हत्यारों में से एक, वायरल डिसीज़, स्पैनिश लेडी.
(Johan Hultin The Virus Hunter)

पहले ‘ब्रेविग मिशन’ मिशन 1951 में जोहान हल्टिन और टीम

1918 में आई इस भयानक वैश्विक महामारी की तीन लहरों ने विश्व के प्रति सौ में से एक व्यक्ति को मार दिया था. अलग–अलग भूक्षेत्रों में इसकी मारक क्षमता को अलग–अलग तरीके से समझा जा सकता है जैसे एक उदाहरण के तौर पर अमरीका को देखें तो अकेले इस फ्लू से मरने वालों की संख्या विश्व-युद्ध एक, दो, कोरिया युद्ध और वियेतनामा युद्ध में मारे गए लोगों की कुल संख्या से ज्यादा है. यह 6 से 7 लाख लोग जो अमरीका की तात्कालिक जनसंख्या का लगभग 2 प्रतिशत भाग बनाते हैं एक साल के अंदर काल-कवलित हुए. फिलाडेल्फिया में सिर्फ दो हफ्तों की लहर ने 7500 लोगों की जान ले ली. यह भी एक अनुमानित संख्या है क्योंकि उस वक्त तक फ्लू विधिक रूप से एक गंभीर रिपोर्टेबल बीमारी नहीं थी जिसका आंकड़ा शुरू से ही संभाल रखा गया हो.

पच्चीस बरस के युवा हल्टिन स्वीडन से आइओवा यूनिवर्सिटी अमरीका में विषाणुविज्ञान पढ़ने आए थे जब 1949 में पहली बार इस स्पैनिश लेडी के बारे में सुना. ये भी जाना कि अभी तक इस वायरस के बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी नहीं हासिल की जा सकी थी क्योंकि जिस वक्त ये वायरस आया था तब इसके अध्ययन की तकनीक उपलब्ध नहीं थी. यह भी क़यास लगाया जाता था कि किसी ने उस वक्त संक्रमित हुए लोगों के शरीर से कोशिका या रक्त का नमूना कहीं संभाल रक्खा हो, यह भी मुश्किल ही है.

`अब एक ही तरीका हो सकता है’, हल्टिन के प्रोफेसर ने बताया, `यदि कोई धुर उत्तरी गोलार्ध जाए और खूब ठंडे प्रदेशों में खोजबीन करे तो शायद वहां पर्माफ्रॉस्ट के अन्दर इस वायरस की वजह से मरे लोगों की लाशों से वायरस की कुछ खोज-खबर मिल सके.’ पर्माफ्रॉस्ट या स्थायीतुषार स्थाई रूप से जमी हुई बर्फ की चट्टान की तरह कठोर परत को कहते हैं जो काफी समय तक बहुत कम तापमान में रहने की वजह से ऐसे इलाकों में बन जाती है. हल्टिन को ये बात रोचक लगी. बहुत सारे पुराने रिकॉर्ड टटोलने और रिसर्च के बाद वो `ब्रेविज मिशन’ जैसी एक ऐसी जगह को चिन्हित कर सके जहां साल 1918 में मरने वालों की संख्या सामान्य से बहुत अधिक थी. उस गाँव की कुल जनसंख्या उस वक्त 80 थी और पांच दिनों के अंदर इसमें से 72 लोग मृत पाए गए थे. दरअसल सुदूर अलास्का में भी इस बीमारी ने कहर बरपाया था. वहां रहने वाली अल्यूट्स और एस्किमो जनजातियों में इस फ्लू से मरने वालों की प्रतिशतता बहुत ज्यादा रही थी.

जून 1951 में हल्टिन वहां पहुंचे और स्थानीय लोगों की अनुमति और सहयोग से एक महत्वपूर्ण कार्य शुरू किया. जून में वहां के हिसाब से सामान्य तापमान होने के बावजूद हल्टिन को पहले छोटे–छोटे आग के घेरे बनाने पड़े जिससे स्थायीतुषार (permafrost) की कठोर चट्टान नुमा बर्फ पिघले और खुदाई में आसानी हो. दो दिन की खुदाई के बाद वो एक सामूहिक कब्र से काले बालों की चुटिया वाली लगभग दस वर्ष की बालिका का शव बरामद करने में कामयाब हो सके जिसकी त्वचा काफी हद तक बची हुई थी. हल्टिन बालिका के फेफड़ों की कोशिकाओं को अलग करके उसे अपने साथ अपने लैब ले आए. अगले छह माह तक हल्टिन और एक दूसरा समूह इन कोशिकाओं को कल्चर करने के असफल प्रयास में लगा रहा पर कोई सफलता नहीं मिल सकी. ये प्रोजेक्ट रुक गया!
(Johan Hultin The Virus Hunter)

डॉक्टर हल्टिन ने अपना रिसर्च पेपर प्रकाशित करवाया, ट्रेनिंग पूरी की, शादी की, बच्चे हुए, घूमे फिरे और सैन फ्रांसिस्को में बस गए.

इस खतरनाक वायरस के बारे में जानने और दुनिया को इसके दुबारा आकर विनाश फैलाने से बचाने का ख़्वाब हल्टिन ही नहीं कोई और भी देख रहा था. कनाडा की एक युवा चिकित्सा भूगोलशास्त्री कर्स्टी डंकन ने नब्बे के दशक में जब इस वायरस के बारे में जाना तो उन्होंने भी उसी दिशा में सोचना शुरू किया जिस दिशा में हल्टिन सोचते थे. उन्होंने काफी अध्ययन के बाद उत्तरी ध्रुव से महज आठ सौ मील दूर, उत्तरी नॉर्वे के स्वेलबर्ड द्वीप समूह के 1 हजार की जनसंख्या वाले एक छोटे से बंदरगाह `लॉन्गियरबायन’ को चुना. डंकन के अनुरोध पर वहां के एक स्थानीय स्कूल शिक्षक ने किसी कोयले की कंपनी की डायरी से ऐसे सात लोगों का नाम निकाले जो संभवतः स्पेनिश फ्लू से 1918 में मरे थे. `द इवोल्यूशन ऑफ़ इन्फेक्शियस डिसीज़’ के लेखक पॉल इवाल्ड लिखते हैं कि मानव सभ्यता के इतिहास में ये सबसे खतरनाक कामों में से एक था. खतरा लाशों से ज्यादा उनके कपड़ों से था क्योंकि ऐसी संभावना थी कि उन्होंने मरने से पहले विषाणुओं से भरा हुआ खून और लार अपने कपड़ों पर गिराई हो. संभावना बलवती थी कि पर्माफ्रॉस्ट में जीवित विषाणु खुदाई या ऑटोप्सी के दौरान गर्मी से पुनः सक्रिय हो जाएं और एक बड़ा वैश्विक ख़तरा ट्रिगर हो जाए. छः शव तो बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे सातवें से कुछ कोशिकाएं निकाली गईं जिनसे इस दिशा में थोड़ी–बहुत जानकारियां हासिल हो सकीं. पर बहुत ज्यादा सफलता न मिलने की वजह से ये प्रोजेक्ट रुक गया.

इसी बीच 1995 अमरीका के आर्म्ड फोर्सेज इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी के मॉलिक्युलर पैथोलॉजी के प्रमुख डॉक्टर जेफरी टौबेनबर्गर को ये पता चला कि उनके इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित नेशनल टिश्यू रिपोजिटरी में अस्सी सालों से उन सत्तर सैनिकों की कोशिकाएं संरक्षित हैं जो स्पेनिश फ्लू के शिकार हुए थे. डॉक्टर टौबेनबर्गर और उनकी टीम ने उन लगभग भुला दिए गए नमूनों की ऑटोप्सी की और एक 21 वर्षीय युवा के फेफड़ों से इन्फ्लूएंजा के जीन निकालने में सफल हो गए क्योंकि उस व्यक्ति की मृत्यु संक्रमित होने के तुरंत बाद हो गई थी. बाकी लोगों के कुछ लंबे समय तक जीवित रहने की वजह से उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता ने एंटी वायरस बना कर वायरस को काफी हद तक समाप्त कर दिया था. अंततः दो साल की मेहनत से 1997 में एक बड़ा ब्रेकथ्रू इन्फ्लूएंजा के जीन के RNA प्राप्त करने का हुआ. लेकिन उसका पूरा जेनेटिक ब्लूप्रिंट जानने के लिए ऐसी और कोशिकाओं की आवश्यकता थी. ये प्रोजेक्ट भी रुक सा गया.
(Johan Hultin The Virus Hunter)

डॉक्टर हल्टिन 72 वर्ष के थे जब उन्होंने इस शानदार कामयाबी और ज़रा सी रह गई कमी के बारे में एक जर्नल में छपी रिपोर्ट को पढ़ा. उन्हें पता था कि और कोशिकाएं कहां मिलेंगी. उन्होंने डॉक्टर टौबेनबर्गर से संपर्क साधा, उनसे बात की, अपना पिट्ठू तैयार किया और दुबारा निकल गए अलास्का. उसी गांव की ओर जहां एक रिसर्च स्कॉलर के रूप में 46 बरस पहले गए थे. इस बार उन्होंने 4 कब्रों की पड़ताल की और एक ऐसी थुलथुल युवा महिला की लाश प्राप्त की जिसकी मोटी चर्बी की वजह से उसके अंगों को एक तरह से प्राकृतिक इनसुलेशन मिल गया था और वो काफी हद तक नष्ट होने से बचे रहे थे. 1974 में इथोपिया में मिले महत्वपूर्ण कंकाल के नाम पर डॉक्टर हल्टिन ने इसका नाम ‘लूसी’ रक्खा. इसके फेफड़ों से कोशिकाएं निकाली और डॉक्टर टौबेनबर्गर को चार डिब्बों में पार्सल कर दिया. इस बार बहुत बड़ा ब्रेकथ्रू हो गया. इन नमूनों से डॉक्टर टौबेनबर्गर की टीम स्पेनिश फ्लू के H1N1 इन्फ्लूएंजा वायरस के पूरे जीन सीक्वेंस को बना सकने में कामयाब हो सकी जो आने वाले समय में इससे लड़ने वाली वैक्सीन और दवाएं बनाने के लिए सबसे ज़रूरी जानकारी के रूप में काम आया.

कर्स्टी एलेन डंकन ने अपने स्पेनिश फ्लू एक्सपीडिशन पर किताब लिखी, चिकित्सा भूगोल पढ़ाती रहीं, लगातार पर्यावरण और महामारियां पर काम किया. उनकी संस्था ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑफ क्लाइमेट चेंज’ को 2007 में नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया और विज्ञान मंत्रालय संभाल चुकी यह महिला फिलहाल अब भी कनाडा में मेंबर ऑफ पार्लियामेंट हैं.

कर्स्टी लोंगियरबायन में रडार से ज़मीन के नीचे शव तलाशते हुए 1997

डॉक्टर टौबेनबर्गर वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक बहुत शानदार म्यूजिशियन हैं, ओबाऊ और शहनाई बजाते हैं, ऑर्केस्ट्रा में परफॉर्म करते हैं, पियानो पर गोथे की कविताओं के इंस्ट्रुमेंटल वर्ज़न का शो करते हैं और संगीत पर `सिम्फनी डी माइनर’ जैसी किताब लिख चुके हैं, फिलहाल कोविड–19 वायरस की तोड़–फोड़ में मुब्तिला हैं.

वैज्ञानिक तबके के ‘इंडियाना जोन्स’ और ‘द वायरस हंटर’ के नाम से मशहूर हल्टिन अब 97 बरस के हैं और विषाणुवैज्ञानिक, शिक्षक के अतिरिक्त एक बेहतरीन बढ़ई एवं ऑटोमोबाइल सेफ्टी एक्सपर्ट भी रहे हैं. उनके बनाए गए सीट पैड्स, सीट बेल्ट, अलग किये जा सकने वाले बम्पर दुनिया के शुरुआती सेफ्टी एयरबैग्स के रूप में जाने जाते हैं. दुनिया भर में घूम चुके हल्टिन का सबसे पंसदीदा काम है पर्वतारोहण!
(Johan Hultin The Virus Hunter)

(इंडियाना जोन्स हॉलीवुड की फिल्मों में पुरातात्विक प्रोफेसर का एक कल्पित चरित्र है जो अपनी सनसनीखेज खोजों के लिए जाना जाता है)

लेख की कई महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए वर्जीनिया अरोंसो की पुस्तक ‘द इंफ्लूएंजा पैंडेमिक ऑफ 1918’ का आभार.

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें: सौ बरस पहले जब कोविड 19 जैसे ही एक वायरस `स्पानी फ़्लू’ ने तबाही मचाई

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

14 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago