समाज

शिमला से ज्यादा सुंदर है काली कुमाऊं – पीटर बैरन

तीन ओर क्रमशः काली, सरयू और पनार नदियों से घिरा और मध्य में लोहावती व लधिया नदियों को लिये हुए उत्तराखंड के पूर्वी किनारे पर स्थित काली कुमाऊं क्षेत्र का विस्तार माल (भाबर) से मध्यवर्ती पहाड़ियों तक है. कत्यूरी राज्य के हिस्से, चन्द राज्य के प्रारंभिक क्षेत्र से औपनिवेशिक काल में एक पट्टी, एक तहसील और आज चम्पावत जिले के रूप में उभरा काली कुमाऊं दरअसल बड़ी सीमा तक कुमाऊनी समाज का प्रारंभिक निचोड़ है. इसमें मुख्यधारा के साथ लूल रावत, मुस्लिम और ईसाई शामिल हैं और इस समाज का रिश्ता पड़ोसी थारुओं और नेपालियों से भी है.

कभी यह क्षेत्र कैलाश-मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पड़ता था, जो स्वाभाविक रूप से भारत-तिब्बत व्यापार का मार्ग भी था. विभिन्न मिथकों (जैसे कूर्म ऋषि, बाणासुर, घटोत्कच, हिडिम्बा आदि) से संबंधित होने के कारण काली कुमाऊं को जाना जाता है और विद्रोही गोरिल (गोरिलचौड़) तथा ऐड़ी (ब्यानधुरा) देवताओं की मूल स्थली के कारण भी. गोरखनाथ, गुरुनानक, विवेकानंद और जिम कार्बेट जैसी प्रतिभाओं ने यहाँ की यात्रा की थी तो यहाँ के कतिपय व्यक्तिओं- कालू महरा, आनंद सिंह फर्त्याल आदि- ने 1857 के संग्राम में हिस्सेदारी की और सहादत दी थी.

अनेक कोटों-किलों, सूर्य-प्रतिमाओं, मंदिरों, नौलों, बिरखमों के लिये प्रसिद्ध काली कुमाऊं अनेक मेलों (देवीधुरा, पुल्ला, पुण्यागिरी, पंचेश्वर), उत्सवों (चैतोल, बग्वाल, होली, गौरा-महेश्वर) तथा लोक-देवताओं (चम्पावती देवी, गोरिल, ऐड़ी, संग्राम कार्की, बफौल) के लिये भी चर्चित रहा है. यही नहीं पुण्यागिरी तथा देवीधुरा जैसे प्रख्यात शक्तिस्थल, गोरिल तथा ऐड़ी के मूल स्थान, बालेश्वर जैसा मंदिर परिसर सेनापानी जैसी प्रस्तर प्रतिमाएं तथा स्तंभ, रमक जैसी सूर्य प्रतिमाएं और एक हथिया जैसा नौला ही नहीं रीठासाहब, बरमदेव (अब उजड़ गया है), मायावती, मंच और एबटमाउन्ट जैसे स्थान भी यहाँ है.

काली कुमाऊं साल, हल्दू, चीड़, बांज, देवदार और बुरांश के जंगलों के लिये जाना जाता है तो च्यूर जैसा बहुउपयोगी वृक्ष यहां की दुर्लभ प्राकृतिक उपलब्धि है. अदरक, गडेरी, मिर्च, मूंगफली तथा नीबू वंशी फलों के लिये भी यह कम नहीं जाना जाता है. आज भी यहाँ के लोहे के बर्तन और चमड़े के जूते याद ही नहीं किये जाते हैं, खरीदे और इस्तेमाल भी होते हैं.

काली कुमाऊं का विवरण स्कन्दपुराण के मानस खंड से लेकर औपनिवेशिक रिकार्ड्स तक में मिलता है. नैनीताल को बसाने वाले बैरन ने 1841 में अपनी यात्रा के समय यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रभावित होकर लिखा कि इस सुंदर स्थान को सरकार क्यों नहीं ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में विकसित कर रही है. यह शिमला से ज्यादा सुंदर है.     

डॉ. रामसिंह की पुस्तक राग-भाग काली कुमाऊं में शेखर पाठक द्वारा लिखी भूमिका का अंश.

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  • कुमाऊं में कत्यूरी एवं चन्द राजवंशों का गौरवशाली इतिहास रहा है। कत्यूरी शासनकाल में तथा चंदों की कुछ पीढ़ियों तक राजधानी चम्पावत ही रही है। कालांतर में हर्षदेव जोशी के राजनैतिक कुचक्रों के कारण गोरखा आक्रमणकारियों का कुमाऊं में तीस वर्ष शासन रहा।
    तदुपरान्त, हर्षदेव जोशी की ही शह पर अंग्रेजों द्वारा कुमाऊं ( अल्मोड़ा) पर आक्रमण कर इस क्षेत्र को भी उनकी विस्तारवादी नीति का शिकार बनाया।

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