बागेश्वर से नीचे सरयू और पूर्वी रामगंगा के नीचे गंगोली रमणीय भू-प्रदेश है. इसके बारे में कविवर गुमानी ने कुमाऊनी भाषा में लिखा है:
(History of Gangolihat Pithoragarh)
केला, निम्बू, अखोड़, दाड़िम, रिखू, मारिंग, आदो दही
खासो भात जमालिको कलकको भूना गडेरी गवा
च्यूडा सद्य उत्योल दूध बाकलो घ्यु गायकी दाणोदार,
खाँनी सुन्दर मौणियाँ घबड़वा गंगावली रौणियाँ
चन्दों के प्रताप से पहले गंगोली का एक राजा था जिसकी राजधानी माणिकोट में होने से उसे मणिकोटी-राजा भी कहा जाता था. मणिकोट गाँव में पुराने महलों की टूटी-फूटी सीढ़ियों तथा ध्वस्त प्राय मन्दिर अब भी दिखाई पड़ते हैं. मणिकोट से थोड़ा पश्चिम गंगोलीहाट था जो अब भी एक अच्छा खासा बाजार है. यहाँ मिडिल स्कूल, डाक बंगला, डाकघर भी हैं. मणिकोट के निम्न लिखित राजाओं का पता मिला है-
गंगोली के राजा हमीरदेव ने 1302 ई. (शाके 1224) में तलीहाट (वैजनाथ) के लक्ष्मी नारायण मन्दिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाया था, हमीरदेव का नाम इस सूची में नहीं है. शायद हमीरदेव के वंशको हटाकर प्यूठन (डोटी) से आये कर्मचन्द के वंश ने अपना राज्य स्थापित किया हो.
(History of Gangolihat Pithoragarh)
इस उर्वर भूमि के शासक डोटी के रैनका राजा के अधीन थे. राजा नारायणचन्द के समय राजा कल्याणचन्द (1560-65) को बहाना मिल गया. उसने गंगोली को हड़प लिया और राजवंशी डोटी चले गये.
गंगोली के मन्त्री पहले उप्रेती ब्राह्मण होते थे. उन्होंने छल कर राजा कर्मचन्द को शिकार खेलते समय मरवा दिया और कह दिया कि राजा को बाघ खा गया. रानी ने उप्रेती को हटा अपने पुत्र को पन्त के हाथ में सुपुर्द कर सती होते समय कहा- “मेरा पति यदि बाघ से मारा गया तो यहाँ के लोग भी बाघ से मारे जायें. पिछली शताब्दी के आरंभ तक यहाँ बाघ बहुत होते थे. एक कहावत भी है-
खत्याड़ी साग, गंगोली बाग.
यह लेख राहुल सांकृत्यायन की किताब कुमाऊं से लिया गया है.
(History of Gangolihat Pithoragarh)
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