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हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 8 अंतिम क़िस्त

(पिछली कड़ियां :
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 1 बागेश्वर से लीती और लीती से घुघुतीघोल
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 2 गोगिना से आगे रामगंगा नदी को रस्सी से पार करना और थाला बुग्याल
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 3 चफुवा की परियां और नूडल्स का हलवा
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 4 परियों के ठहरने की जगह हुई नंदा कुंड
हिमालय की मेरी पहली यात्रा – 5 बिना अनुभव के इस रास्ते में जाना तो साक्षात मौत ही हुई
हिमालय की मेरी पहली यात्रा- 6 कफनी ग्लेशियर की तरफ
हिमालय की मेरी पहली यात्रा- 7 संतोषी माता का दिन और लालची मीटखोर)

आज सभी थक गए थे. कमरे के अंदर बीचोंबीच आग जलाने की जगह बनी थी तो उसमें कुछ लकड़ियां डाल चूल्हा बना दिया गया. हीरा आटा गूंधने में लगा तो मैंने स्टोव में दाल चढ़ा दी. हीरा ने ढेर सारा आटा गूंध दिया था. तवा चढ़ा और मैंने रोटियां बनानी शुरू कर दी. सभी उनींदे से आड़े—तिरछा हो लेट गए थे. रेडियो में पुराने गाने बज रहे थे. रोटियों का ढेर लगने के बाद हमने सबको उठाया तो किसी ने भी खाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. लीडर राजदा के कहने पर फिर सभी ने एकाध रोटी को दाल के साथ गले से नीचे उतारने की जहमत उठाई और फिर अपने स्लीपिंग बैगों में समा गए. (Himalayan Trekking Keshav Bhatt)

सुबह राजदा ने चाय बनाने के बाद सबको बड़े ही प्यार से उठाया तो सभी हड़बड़ाते हुए जग गए. दरअसल राजदा का अनुशासन काफी सख्त था और आज उन्हें इस रूप में देख हम हैरान थे. रात की बच गई रोटियों को घी के साथ तवे में गर्म कर पराठे की उपमा दे दी गई और चाय की चुस्कियों के साथ सभी ने मजे से खाई. आज खाती से आगे धाकुड़ी में पड़ाव था. टीम में चंपा नाथ को आज गाईड बना दिया गया. दरअसल, चंपा ने बताया कि उसकी तबियत ठीक नहीं है और पांवों में भी दर्द हो रहा है, जिससे उसे टीम के आगे रखकर ये दारोमदार सौंप दिया कि, अब तुम्हारी चाल पर ही टीम की चाल तय है, तुमसे आगे कोई नहीं जाएगा. (Himalayan Trekking Keshav Bhatt)

मलियाधौड़ से चले तो कुछ देर बाद चंपा के चाल में गजब की तेजी आनी शुरू हो गई.

दोपहर तक हम खाती गांव पहुंच गए. डाक बंगले के बगल में ही प्रकाश सिंह की दुकान के बाहर सामान रख हम अपनी थकान मिटाने लगे. राजदा ने प्रकाश भाई को दाल—भात बनाने के लिए बोल दिया था. आधे घंटे में प्रकाश भाई ने भोजन तैयार कर दिया. भोजन के साथ आज हरी सब्जी की टपकिया भी मिली. भोजन के बाद कुछ देर सुस्ताने के बाद धाकुड़ी को चल पड़े. धाकुड़ी यहां से तकरीबन आठ किलोमीटर तिरछा और अंत में चढ़ाई लिए हुए पैदल मार्ग हुआ. अब तो खाती के आगे खरकिया तक कच्चा मोटर मार्ग बन गया है. खरकिया से धाकुड़ी साढ़े तीन किलोमीटर ही हो गया है.

शाम होने तक हम सभी धाकुड़ी पहुंच गए थे. यहां हयातदा के जिम्मे ही पीडब्लूडी के बंगले की जिम्मेदारी थी. उन्होंने एक कमरे का ताला खोल दिया. कमरा काफी बड़ा और साफ था. बाहर जंगल से हम कुछ सूखी लकड़ियां बटोर लाए. घने जंगल में बीचोबीच धाकुड़ी में मौसम काफी ठंडा था. कमरे के अंदर ही भोजन बनाने की जुगत शुरू कर दी. आग जलाई तो कमरा भी गुनगुना हो गया. भोजन के बाद देर तक चूल्हे के पास बैठ अंताक्षरी होते रही. आज ट्रैकिंग का ये अंतिम पड़ाव था. कल से फिर सबने अपने—अपने संसार में विलीन हो जाना था.

सुबह नाश्ते में घी के पराठों के साथ गर्मागर्म चाय परोसी गई. हयातदा से विदा ले आगे चिल्ठा धार की चढ़ाई नापनी शुरू कर दी. रेडियो को राजदा ने अपने रुकसैक में लटका दिया था. समाचारों के बाद फिल्मी गाने बजने लगे. हम चुपचाप गाने सुनते हुए चले जा रहे थे कि अचानक ही रेडियो में नया गाना बजा, ‘दिल धकधक करने लगा..’ तो राजदा ने उस गाने में जबरदस्त नाच करना शुरू कर माहौल खुशनुमा कर दिया. चिल्ठाधार की चढ़ाई कब खत्म हुई पता ही नहीं चला.

दोपहर तक हमारी टीम सौंग पहुंच गई. हिमालय की वादियों में इतने दिन बिताने के बाद आज गर्मी खूब लग रही थी तो राजदा की इजाजत ले सरयू नदी में नहाने चले गए. राजदा बागेश्वर जाने के लिए जीप की ढूंढ खोज में लग गए. काफी देर तक नदी के ठंडे पानी में आनंद लेने के बाद वापस लौटे तो राजदा ने एक जीप की व्यवस्था करने के साथ ही एक दुकान में दाल—भात का भी इंतजाम करवा दिया था. आज भगतदा की टीम और हम सबने साथ खाना खाया. जीप की छत में राजदा और हीरा सामान के बीच में बैठ गए, बाकी हम सभी अंदर समा गए. भराड़ी में भगतदा और उनकी टीम ने हमसे फिर हिमालय में मिलने का वादा कर विदा ली. जीप बागेश्वर को दौड़ने लगी. घंटे भर बाद ही हम सब अपने सीमेंटनुमा मकानों में घुस चुके थे. हिमालय और सांथियों से बिछड़ने पर सभी का मन उदास सा हो रहा था.

हिमालय की इस पहली यात्रा ने मुझे काफी कुछ सिखाया. हिमालय की गोद में फैली अनंत जटाओं रूपी कंदराओं, बुग्यालों में विचरण करने पर, वो जीवन के संघर्ष को समझाकर जीवन को जीना सिखा ही देती हैं.

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बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए अपने लिए एक ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं. केशव काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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