उत्तराखंड के पहाड़ी समाज द्वारा मनाये जाने वाले लोकपर्वों में सबसे महत्वपूर्ण लोकपर्व में एक है हरेला. प्रकृति से जुड़ा यह लोकपर्व है साल में तीन बार मनाया जाता है. आने वाली 17 तारीख़ को इस वर्ष का दूसरा हरेला है जो सावन के महीने लगने से कुछ दिन पहले आषाढ़ के महीने में बोया जाता है. यह ध्यान देने योग्य है कि पहाड़ी पंचाग के अनुसार हरेला काटे जाने वाली तिथि से सावन माह की शुरुआत मानी जाती है.
(Harela Festival Date 2023)
हिन्दू वर्ष पम्परा या स्थानीय भाषा में कहें गते के अनुसार मनाये जाने के कारण हर वर्ष लोगों में असमंजस रहता है कि आखिर हरेला किस दिन बोया जाना है और किस दिन काटा जाना है. इस असमंजस का एक अन्य कारण और है. कुछ जगह हरेला 10वें दिन काटा जाता है तो कुछ जगह 9वें दिन. कुछ लोग हरेला बुआई के ग्यारहवें दिन भी काटते हैं. लोग अपने अपने गांव की परम्परा के अनुसार हरेला बोते और काटते हैं. यही वह कारण है जिसकी वजह से हरेला दो अलग-अलग दिन बोया जाता है.
मसलन 2023 में जो लोग यह मानते हैं कि हरेला 10वें दिन काटा जाना चाहिये वह 8 जुलाई के दिन हरेला बोयेंगे और जो लोग यह मानते हैं कि हरेला 9वें दिन काटा जाना चाहिये वह 9 जुलाई के दिन हरेला बोयेंगे. हरेला काटा संक्रांति के दिन ही जाता है.
(Harela Festival Date 2023)
हरेला एक कृषि पर्व है जो घर में सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है. हरेला बोने के लिये एक टोकरी में मिट्टी ली जाती है. इसमें पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज बोये जाते हैं. यह अनाज हैं जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट. पहले यह टोकरी रिंगाल की होती थे लेकिन समय के साथ इसमें भी परिवर्तन आया है.
हरेला पर्व का एक वैज्ञानिक पक्ष यह हो सकता है माना जाता है कि व्यक्ति अपने खेत की मिट्टी का कुछ हिस्सा लेता है उसमें सभी प्रकार के अनाज के बीज डालता है और उसके बाद इस बात का अनुमान लगाता है कि उस वर्ष कौन सी फसल अच्छी हो सकती है.
(Harela Festival Date 2023)
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