कुमाऊ में घुइयां का अर्थ अरबी से है लेकिन क्या आप उस घुइयां के बारे में जानते हैं जो जमीन और सूप के बाहरी हिस्से पर बनाई जाती है.
सूप बांस का बना एक घरेलू उपकरण है. उत्तराखंड के लगभग सभी घरों में यह सामान्य रूप से मिल जाता है. इसका प्रयोग अनाज से धूल साफ़ करने में किया जाता है. दीवाली के दौरान इस पर लाल गेरू लगाया जाता है उस पर बिस्वार से आकृति बनाई जाती हैं.
सूप के भीतर की ओर तो लक्ष्मी-नारायण की आकृति बनायी जाती है लेकिन बाहर की ओर घुइयां की आकृति बनाते हैं जिसे दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है. इसे राक्षसी या डाकिनी भी कहा जाता है.
घुइयां की आकृति में दो सिर, चार पैर बने होते हैं इनका मुख नहीं बनाया जाता. गोले-गोले घुमेरदार आकृति कर सर बनाते हो और कई लोग इसी में आँख भी बना देते हैं. इनके पैर पीछे की ओर बनाये जाते हैं.
बद्रीदत पांडे ने अपनी किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ में इस प्रकार की आकृति को एड़ी नामक का भूत कहा है. घुइयां का अर्थ दरिद्रता से लेने का एक अन्य कारण भी है.
कुमाऊं में कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन महिलायें व्रत करती हैं और सुबह के समय सूप में खील, दाड़िम, अखरोट आदि रखकर सूप को गन्ने के टुकड़े से ठक-ठक पीटते हुये कहती हैं
आओ लक्ष्मी, बैठो नारायण, निकल घुइयां.
घुइयां के अनादर और इसका जिक्र लक्ष्मी के साथ किया जाना स्पष्ट करता है कि यह दरिद्रता का सूचक है.
घुइयां सूप के अलावा जमीन पर भी बनाया जाता है. पूजा वाली जगह से ‘खल’ तक बीच-बीच में घर से बाहर के लिये भी आकृति बनायी जाती है. घुइयां को अलक्ष्मी भी कहा जाता है.
घुइयां को कुछ लोग भुइयां भी कहते हैं. ब्राह्मण लोग घुइयां की आकृति के स्थान पर एक पुरुष की जैसी आकृति बनाते हैं व उसके हाथ में झाड़ू भी बनाते हैं. इसी आकृति को वे घुइयां कहते हैं.
डॉ. कृष्णा बैराठी और डॉ कुश ‘सत्येन्द्र’ की पुस्तक कुमाऊं की लोककला, संस्कृति और परम्परा के आधार पर.
-काफल ट्री डेस्क
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जो जमीन और सूप में बनाया जाता है उसे घुंईया नही भुईयां कहते हैं साहब।