तमाम जुड़ावों के बीच उनके साथ बाबा हैड़ाखान को लेकर मेरा मतैक्य नहीं हो सका. वे 1970 में बाबा हैड़ाखान के भक्त बन गए और कुछ ऐसी अविश्वसनीय बातों की चर्चा उनके बारे में करने लगते कि सहज में उनका साथ देना असम्भव सा हो उठा. अन्तरंग क्षणों में उन्होंने मुझे बहुत कुछ समझाया भी लेकिन मैं बाबा के सम्बंध में प्रचारित आलौकिक बातें स्वीकार नहीं कर सका. वे कहते ‘भाव रखो.’ लेकिन किस पर, मैं समझ नहीं पाता. उनके साथ भक्तों के बीच चर्चा होती कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश बाबा जी के साथ मंत्रणा के लिए हैड़ाखान आते हैं. पहले तो मैं इन त्रिदेवों के बार में ही कुछ समझ नहीं पाता. यदि समझ भी लेता तो यह नहीं समझ पाता कि इतनी बड़ी सृष्टि के नियंता को मंत्रणा के लिए बाबा के पास वह भी हैड़ाखान आने की क्या जरूरत पड़ गई. मैंने बाबा जी के खिलाफ कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख भी लिखे लेकिन उन्होंने किसी प्रकार की उलाहना नहीं की. दरअसल यह बाबागिरी का जाल समझना इतना आसान भी नहीं है. फिल्म जगत की महान हस्ती शम्मी कपूर, तत्कालीन प्रदेश (उप्र) के राज्यपाल सीपीएन सिंह बाबा के भक्त थे. लेकिन मेरा तर्क था कि किसी बड़े पद पर बैठे व्यक्ति का विश्वास आम जनमानस के लिए मापदंड नहीं हो सकता और न ही विदेशियों का जमघट या आस्था हमारे लिए अनुसरणीय हो सकते हैं.
दरअसल पिछली सदी में एक कालखंड ऐसा भी आया, जब लोगों की अभिरुचि आध्यात्म से अधिक थी. उस समय लोग सीधे-साधे-सच्चे इंसान की जिन्दगी जीते थे और उनकी आस्था व विश्वास सहज में ही योगी, महात्माओं, संतों में थी. बाबा हैडाखान, सोमवारी महाराज, नानतिन महाराज, नीमकरोली महाराज, जैसे कई संत महात्मा इस क्षेत्र में रहे और अपनी सिद्धियों से उन्होंने लोगों को प्रभावित किया. महादेवगिरि महाराज ने पटेलचैक में पीपल के पेड़ के नीचे भैरव मंदिर तथा नवाबी रोड़ में एक मंदिर के साथ संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया. उन्हें भी एक सिद्ध पुरूष के रूप में जाना जाता था. बरेली रोड में भी लटूरिया बाबा आश्रम व सोमवारी आश्रम यहां हैं. मैं न इन संतों की सिद्धियों को नकार रहा हूं और न उनकी आलोचना की सामथ्र्य रखता हूं. किन्तु मैं आश्चर्य में डालने वाले किसी सिद्ध पुरूष के सम्पर्क में नहीं आ पाया हूं. इसलिए जो इन सिद्धियों से दो-चार हुए हों या कारण-अकारण आस्थावान बन गए हों उनकी आस्था को भी ठेस नहीं पहुंचाना चाहता हूं. बाबा हैड़ाखान भी एक सिद्ध पुरुष के रूप में इस क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर गए हैं.
सर्वप्रथम लगभग 1890 के आसपास उन्होंने हैड़ाखान में एक शिव मंदिर व छोटी धर्मशाला बनाई. लोग कहते हैं कि उससे पूर्व भी उन्हें कुमाऊं अंचल में देखा गया था. हल्द्वानी कठघरिया में भी उन्होंने एक आश्रम बनवाया था. इसी से आगे पन्याली गाँव से आगे घनघोर जंगल में मैंने सीताराम बाबा को रहते हुए देखा है. वे अकेले इस घने जंगल में रहा करते थे और किसी चमत्कार के कायल नहीं थे. साल में शरद पूर्णिमा को उनके आश्रम में भंडारा हुआ करता था. लोग आते रहते, भंडारे की व्यवस्था करते और दिन ढलते ही बाबा उन्हें वहां से चले जाने जाने को कहते. बाबा हैड़ाखान का चमत्कारिक जीवन वृत्त मैंने कई लोगों से सुना भी और पुस्तकों में यंत्र-तत्र पढ़ा भी. मेरे बड़बाज्यू अक्सर बाबा हैड़ाखान व सोमवारी महाराज के बारे में अनेक रोचक किस्से सुनाया करते थे और बालपन में उनकी रहस्यपूर्ण बातें रोमांचक लगती थीं. हैड़ाखान बाबा के सम्बन्ध में यह भी बताया जाता था कि वे नेपाल जाने के लिए अपने भक्तों को काली नदी के किनारे छोड़ काली में डुबकी लगा गए और अदृष्य हो गए. अब जब वर्तमान है़ड़ाखान बाबा के रूप में साधारण स्थितियों के बाद असाधारण रूप में लोगों के सामने प्रचारित हो गए तो स्वाभाविक था कि कुछ प्रश्न चिन्ह लगाये जाएं और यही हुआ भी. पद्मादत्त पन्त जी ने भी अपने समाचार पत्र में प्रश्न लगाए. किन्तु जब वे इस बात की जानकारी लेने कठघरिया स्थित हैड़ाखान बाबा के पास गए तो वहां एकत्रित लोगों के बीच वे झूम-झूम कर चिल्लाने लगे. होश आने पर जब उनसे पूछा गया तो वे एक अदृश्य शक्ति के दर्शन हो जाने की बातें करने लगे और कहने लगे कि ‘‘भाव रखो.’’ इसके बाद श्रद्धालुओं ने बाबा को पूर्व हैड़ाखान का प्रतिरूप मानकर पूजना शुरू कर दिया. कठघरिया के लोगों ने भी इस प्रकरण की कुछ दिन बहुत आलोचना की, क्योंकि पूर्व में गठित हैड़ाखान ट्रस्ट की सम्पत्ति का भी मामला बीच में था और परगनाधिकारी कार्यालय तक भी मामला पहुंचा. बाबा को भी परगनाधिकारी कार्यालय में उपस्थित होना पड़ा. किन्तु श्रद्धालुओं की भीड़ में विरोध का स्वर दब कर रह गया. बाबा बहुत कम बोला करते थे. उनके चारों और कई अजनबियों को भी देखा जाता था. कई विदेशी स्त्री-पुरूष भी भक्त मंडली में शामिल हो गए. चिलियानौला (रानीखेत) में एक भव्य मंदिर का निर्माण भी हो गया. बाबा हैड़ाखान में ही अधिक रहा करते थे. उसके बाद जो हैड़ाखान के नाम पर ट्रस्ट बना, उस पर भी विवाद होते रहे.
हल्द्वानी के हिन्दग्रेन स्पलायर्स के मालिक त्रिलोक सिंह क्वार्बी बाबा जी की अनुपस्थिति में ‘मुनि जी’ के नाम से प्रतिस्थापित और प्रतिष्ठित हो गए. भक्तगण उनकी भी आरती उतारा करते थे. इस बीच तत्कालीन उप्र के राज्यपाल सीपीएन सिंह सहित कई राजनेता, अधिकारी और विदेशी इस रहस्य लोक में शामिल होते देखे गए. लेकिन एक दिन अचानक बाबा की मृत्यु हो गयी इस मृत्यु पर भी कई सवाल उभर कर सामने आए. कुछ लोगों ने इसे अस्वाभाविक मौत बताया. प्रशासन व खुफियातंत्र हैड़ाखान में तैनात हो गया. कुछ लोगों ने बाबा की मौत को अस्वाभाविक बताते हुए पोस्टमार्टम की मांग उठाई. मैं भी इस मौत पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले नगर के कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा और जांच के लिए एक प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी को दिया. इससे प्रशासन में खलबली तो मची किन्तु दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़, राज्यपाल की उपस्थिति और रहस्यपूर्ण वातावरण में बाबा को दफना दिया गया. बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती है. चिलियानौला (रानीखेत) के बधाण गाँव के मूल निवासी धनसिंह कुवार्बी के पुत्र त्रिलोक सिंह बाबा हैड़खान की मृत्यु के बाद चिलियानौला स्थित विश्वमहाधाम हैड़ाखान का संचालन करने लगे. विदेशों में भी इस संस्था के 18 आश्रम और 70 सेंटर आज भी संचालित हो रहे हैं. हैड़ाखान ट्रस्ट के बीच भी कई विवादों के उठने की बातें सामने आती रहीं. ‘मुनिराज’ त्रिलोक सिंह कुवार्बी की भी 84 वर्ष में 4 अगस्त 2012 में निधन हो गया. उनकी अन्तिम यात्रा में शम्मी कपूर के पुत्र आदित्य कपूर व पुत्री कंचन देसाई, पूर्व केन्द्रीय मंत्री राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट, फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा के ताऊ ब्रिगेडियर वीके चोपड़ा व ताई सरिता चोपड़ा के अलावा कई राजनैतिक हस्तियां शामिल हुईं. त्रिलोक सिंह जी से मेरा परिचय 1968 में हुआ था. बेस अस्पताल के सामने जहां मैं रहता था उसी से लगे पटेल चैक में उनका व्यावसायिक प्रतिष्ठान था और अधिकांश समय उनके साथ गपशप में गुजरता था. वे एक सज्जन व साधारण पृष्ठभूमि के व्यक्ति थे, किन्तु एकाएक उनके इस मायालोक में प्रविष्ठ हो जाना मुझ आश्चर्य में डालने वाला था.
(जारी)
स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक ‘हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से’ के आधार पर
पिछली कड़ी का लिंक: हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने : 47
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