[पिछ्ला भाग: तब बची गौड़ धर्मशाला ही यात्रियों के लिए इकलौता विश्राम स्थल थी हल्द्वानी में – 1894 में बनी]
बची गौड़ धर्मशाला के अलावा उसी समय अनेक उल्लेखनीय कार्य भी हुए. सन 1884 में पं. देवीदत्त जोशी ने रामलीला का अहाता और मंदिर चंदे से बनवाये. लाला चोखेलाल मुरलीधर ने यहाँ एक रामलीला भवन बनवाया. सन 1923 में पं. छेदालाल ने राममंदिर की शुरुआत की. 1924 में उनके द्वारा लाई गयी राम दरबार की मूर्ति की आज भी पूजा होती है. उनकी पीढ़ी ने मंदिर में पुरोहिती का काम सम्हाला हुआ है. वे मुरसान क़स्बा (पहले मथुरा अब जिला हाथरस में) से 1923 में यहाँ आये. उनके दो पुत्र थे – पं. रामचंद्र और पं. दामोदरदत्त. दामोदर जी की कोई संतान नहीं थी. वे नामी वैद्य थे और पटेल चौक में उनकी दूकान हुआ करती थी. पं. रामचंद्र जी ने छेदालाल के बाद मंदिर की पुरिहिती सम्हाली. (History of Haldwani)
हल्द्वानी के इतिहास में दिन की रामलीला का श्रीगणेश पं. रामचन्द्र वशिष्ठ ने किया. पहले यहाँ रासलीला और चैत्र मास में मथुरा की मंडली आकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया करती थी. रामकथा को भव्य रूप में प्रस्तुत करने के लिए दिन की रामलीला का विचार आया और इसी परिवार के सदस्यों ने विभिन्न पात्रों का अभिनय किया. लाला जहारमल ने 1958 में जन सहयोग से कीर्तन हॉल बनवाया. इसके पहले 1955 में जनसहयोग ही से मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया गया था. एक ज़माने में जनता की अदालत इसी मंदिर में लगा करती थी. सभी धर्मों के लोग अपने आपसी मसले लेकर बैठक करने यहाँ आते थे और मिलजुल कर उन्हें निबटाया करते थे. व्यापारी आते-जाते हुए मंदिर में एक भेली गुड़ चढ़ाना नहीं भूलते थे. (History of Haldwani)
राम मंदिर के समीप रामलीला मोहल्ले की धर्मशाला देहरादून के कत्थे वाले हरिनंदन जी ने बनवाई थी. यह धर्मशाला भी शुरुआती दौर की है. 1958 में मन्दिर के सामने हल्द्वानी के व्यापारी रतनलाल किशनलाल मिश्रीवालों ने धर्मशाला बनवाई जिसमें आज भी विवाह आदि समारोह निबटाये जाते हैं. बरेली रोड में अब्दुल्ला बिल्डिंग से लगा बगीचा सरवर मिस्त्री ने राममंदिर को दान कर दिया था जी 90 साल की लीज पर था. लाइन नंबर 1 में पाल परिवार के एक सदस्य ने एक मकान राममंदिर को दान में दे दिया था जो फिलहाल किराए पर चलता है.
हल्द्वानी के इस प्राचीन मंदिर की संपत्ति को लेकर विवाद भी हुआ जो सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया. 1983 में राममंदिर कमेटी बनी जो इसकी संपत्ति की देखरेख का कार्य करती है.
मंदिर से लगी धर्मशाला सहित तमाम संपत्तियों में अब काबिज़ हो चुके लोगों के अपने-अपने तर्क हैं. पूरा रामलीला मोहल्ला ही घिर चुका है. पहले की तरह मंदिर में गुड़ चढ़ाने वाले व्यापारी भी अब नहीं रहे. मंदिर के कार्य अब श्रद्धालुओं के सहयोग से संपन्न होते हैं. धार्मिक कार्यों में भी तेज़ी से बदलाव हुआ है. पहले जहाँ लोग अपनी मान्यताओं के साथ मत्था टेकने आया करते थे अब बाबा और संत अपनी मंडलियाँ लेकर पहुंचा करते हैं. ऐसे में बहुत कुछ तब्दील हो चुका है. मंदिर के वर्तमान पुजारी चाहते हैं कि नगर की यह विरासत बची रहनी चाहिए.
(स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी-स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर)
सीरीज जारी रहेगी.
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यह भी देखें : तब बची गौड़ धर्मशाला ही यात्रियों के लिए इकलौता विश्राम स्थल थी हल्द्वानी में – 1894 में बनी
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