सात कुलपर्वतों में चौथे पर्वत के रूप में ‘द्रोणागिरि’ की मान्यता विष्णु पुराण में वर्णित है जहां इसे औषधि पर्वत की संज्ञा दी गई है :
(Dronagiri Parvat Uttarakhand)
कुमुदषचौन्नतश्चेव तृतीयश्च बलाहकः
द्रोणो यत्र महोशध्य: स चतुर्थो महीधरः
देवी पुराण, वायु पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, कर्म पुराण, मत्स्य पुराण व श्री मदभागवत पुराण में द्रोणागिरि पर्वत के धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व के साथ इसके सांस्कृतिक स्वरुप का विवेचन मिलता है. मानसखंड में ‘द्रोणाद्रिमाहात्मय’ पर पूरा आलेख है जहां ‘ कौशिकी’ व ‘रथवाहिनी’ नदियाँ विद्यमान हैं, “कौशिकी रथवाहिन्योमध्ये द्रोणागिरि: स्मृत:”. अब कौशिकी को कोसी नदी व रथवाहिनी को रामगंगा के नाम से जाना जाता है. रामगंगा नदी के बायीं ओर स्थित है द्रोणागिरि.
द्रोणागिरी पर्वत में स्थित दुनागिरी के रमणीक स्थल में माँ दुर्गा का प्राचीन मंदिर विद्यमान है जिसकी स्थापना शाके 1103 अर्थात वर्ष 1182 में हुई बताई जाती है. नव दुर्गाओं में प्रथम स्वरुप है शैल पुत्री तो दूसरा ब्रह्मचारिणी. दूनागिरी में माँ के ब्रह्मचारिणी रूप में वैष्णवी शक्ति की अवधारणा है. यहाँ शिव की शक्ति स्वरुपा होने से देवी भगवती की आराधना शिव जी के ज्योतिर्लिंग के संग की जाती है.आधार पूजा स्थल के गर्भ गृह में शक्ति की युगल पिंडिया अपने नैसर्गिक स्वरुप में प्रकट हुई हैं जिन्हें जगदम्बा माता एवं वैष्णव स्वरुपा माता भगवती का प्रतीक मान पूजा अर्चना की जाती है. देवी भगवती माता की आराधना शिव के ज्योतिर्लिंग के साथ की जाती है.यहाँ शिवलिंग, गणेश व कार्तिकेय की मूर्ति के साथ के साथ नवमात्रिका पट्ट स्थापित है.
द्रोणागिरी में दूनागिरी मंदिर आध्यात्मिक दृष्टि से कई साधकों की तपोभूमि रहा है. यहाँ महावतार बाबा का साधना स्थल भी एक छोटे मंदिर के रूप में विद्यमान है. कई संत योगियों ने यहाँ शिव -शक्ति की आराधना की जिनमें नीब करोरी बाबा, हैड़ाखान बाबा, हरनारायण स्वामी, बलवंत गिरि बाबा, नानतिन बाबा व महात्मा लक्ष्मी नारायणदास मुख्य हैं. मंदिर की स्थापना में आत्माचार्य स्वामी सत्येश्वरानन्द महाराज एवं योगिराज श्यामाचरण लाहिडी का विशिष्ट योगदान रहा. इसी क्षेत्र में कुकुछीना की गुफा में लाहिड़ी महाशय को महावतार बाबा ने क्रिया योग की दीक्षा दी .मंदिर का पूरा क्षेत्र ही मुख्य तीर्थों से घिरा है जिनमें महावतार बाबा की कुकुछीना स्थित गुफा, पाण्डुखोली, नागार्जुन विभाण्डेश्वर, शुकेश्वर व भटकोट मुख्य हैं.इनके साथ ही द्वाराहाट में बद्रीनाथ , मृत्युंजय, मनदेव, रतन देवल, कचहरी देवल व गुर्जरदेव के मंदिर समूह हैं जिनमें गुर्जरदेव देवालय पुरातत्व व वास्तु शैली की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं.
(Dronagiri Parvat Uttarakhand)
कत्यूरी राजाओं की इस कत्यूर घाटी में स्याल्दे पोखर के निकट शीतला देवी मंदिर 1257 ईस्वी का बना प्राचीन शक्ति केंद्र रहा है. वैशाखी संक्रांति के दूसरे दिन यहीं हर साल ‘स्याल्दे बिखौती’ का लोकप्रिय मेला लगता है. कालीखोली में कालिकादेवी स्थापित हैं. वहीं कोटकाँगड़ा देवी की प्रतिष्ठा है. सन 1300 में कत्यूर राजा भुवनपालित देव के समय में हिमाचल काँगड़ा निवासी परमार वंश के चौधरियों का एक दल अपनी कुलदेवी ‘कोटकाँगड़ा देवी’ के डोले सहित यात्रा में था. यह डोला दूनागिरि शक्तिपीठ के नीचे ठहर गया व अनेक प्रयासों के बाद भी न उठा. इससे यह संकेत मिला कि कोटकांगड़ा देवी दूनागिरि के शक्ति स्थल में ही विराजना चाहती हैं. तभी इनके कई मंदिर स्थापित हुए. द्वाराहाट से महाकालेश्वर पथ में मनसा देवी विराजती हैं. तो शिव का अत्यंत प्राचीन मंदिर विभाण्डेश्वर है जो संवत 376 में स्थापित हुआ. शिव व शक्ति के साथ विष्णु भगवान यहाँ नागार्जुन देवालय में प्रतिष्ठित हैं.
द्रोणागिरी परिक्षेत्र में शुकवती नदी के उदगम पर शुका देवी हैं. मान्यता है कि यहाँ शुकदेव मुनि ने तपस्या की थी. मानसखंड में कहा गया कि :
सम्पूज्य मानव: सम्यक शिवलोके महीयते.
द्रोणाद्रीपादसम्भूताँ पुण्याँ शुकवती हि ये.
परम्परागत रूप से दूनागिरि शक्ति पीठ में आश्विन नवरात्र में सप्तमी की कालरात्रि को जागरण करने का विधान रहा है. लोक विश्वास है कि इस दिन माता भगवती अपने विकराल काली के रूप में अवतरित होतीं हैं तो अगले ही दिवस पर उनका स्वरुप महागौरी का हो जाता है. अशोज में सप्तमी व अष्ट्मी को दुनागिरि मंदिर में पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना संपन्न होती है तथा पूरे व्यापक परिसर में मेला लगता है. यह सिद्ध पीठ इस अंचल की तीन पट्टियों, पट्टी कैराडो, पट्टी गैवाड़ और पट्टी द्वाराहाट के केंद्र में स्थित है. द्वाराहाट से चौदह किलोमीटर द्रोणागिरी पर्वत पर स्थित मंगलीखान से लगभग एक किलोमीटर की ऊँचाई पर मंदिर स्थित है.मंगली खान से अभिप्राय मांगलिक स्थल से रहा है. लोक विश्वास है कि यहाँ मिलने वाली लाल ताँबई मिट्टी मांगलिक व शुभ कार्यों के लिए उत्तम है.
मँगली खान एक ऐसा संगम है जहां कैराडो, गिँवाड़ और द्वाराहाट पट्टी आपस में मिलतीं हैं. यहाँ च्यूटियां गणेश जी का मंदिर है. माना जाता है कि यहाँ गणेशजी को दही मलाई का भोग लगाने से पशुधन की अभिवृद्धि होती है. ब्रिटिश काल में इस स्थान से समीपवर्ती इलाकों का राजकाज संभाला जाता रहा था. अभी यहाँ कई दुकानें व होटल हैं जहां से मंदिर जाते भक्त जन भेंट सामग्री खरीदते हैं और दर्शन के बाद अल्पाहार लेते हैं.
मंगला खान से दूनागिरि मंदिर की चढ़ाई शुरू होती है. जहां तक पहुँचने के लिए लगभग तीन सौ पेंसठ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यह पूरा मार्ग पक्के टिन शेड से कलात्मक रूप से ढका है. सीढ़ियों के अगल बगल संगमरमर की पट्टी पर दानदाताओं का नाम अंकित है. सीढ़ियों के बगल से ही पैदल जाने वाला रास्ता भी है. यह पूरा स्थल स्थानीय प्रजाति के वृक्षों, पुष्प, लता व बेलों से घिरा है. एक तरफ के पेड़ तो आदमकद ऊँचाई तक मनौती की चुन्नी बँधी होने से लाल दिखाई देते हैं.
(Dronagiri Parvat Uttarakhand)
मंदिर की व्यवस्था हेतु 1990 में श्री दूनागिरी मंदिर समिति का गठन हुआ था.अब मंदिर की प्रबंध व्यवस्था ट्रस्ट द्वारा संचालित है. मंदिर में प्रवेश हेतु कोविड से सम्बन्धित सावधानियां पूरी तरह से संपन्न होती दिखाई देती हैं. असंख्य घंटियों को बांध कर रखा गया है तथा पानी के टैंक व विशाल फोवारे को फिलहाल बंद ही रखा गया है. मंदिर में पूजा अर्चना हेतु कमेटी द्वारा पुरोहित नियुक्त हैं. मुख्य मंदिर से नीचे ‘कुंती भवन ‘, यशोदा भवन ‘ धर्मशाला के साथ बड़े प्रांगण में भोजनालय है जिसमें विशिष्ट अवसरों पर भंडारे की व्यवस्था की जाती है. कुमाऊं मण्डल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह व पूजन सामग्री व धार्मिक पुस्तकों की कई दुकानें भी.
पाली पछाऊं में द्रोणागिरि के इस विस्तृत क्षेत्र में बूढ़ा केदार, विभाँडेश्वर, चित्रेश्वर, श्रीनाथेश्वर, केदार आदि महादेव हैं. नारायण, नागार्जुन, बद्रीनाथ विष्णु हैं.शीतला, द्रोणागिरि में वैष्णवी व दुर्गा, मानिला देवी, भुवनेश्वरी, नैथाणा व अग्निदेवी आदि शक्ति स्वरूपा देवी के मंदिर हैं. इनमें शीतलादेवी, विभाण्डेश्वर व द्रोणागिरि देवी का जीर्णोद्धार स्वामी शंकराचार्य द्वारा किया जाना बताया जाता है द्रोणाँचल पर्वत में वैष्णवी देवी हैं जिनको बलिदान नहीं चढ़ाया जाता.
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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