उत्तरकाशी गंगोत्री रोड पर गंगोत्री से 21 किमी पहले एक छोटा सा पहाड़ी गाँव है धराली. धराली उत्तरकाशी-गंगोत्री हाइवे के दोनों तरफ बसा हुआ है. धराली अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए विश्वविख्यात हरसिल से गंगोत्री की तरफ मात्र 3 किमी आगे है. हरसिल, जिसे राज कपूर की सुपरहिट फिल्म राम तेरी गंगा मैली के फिल्मांकन के लिए भी पहचाना जाता है. हरसिल और धराली दोनों ही लगभग 2600 मीटर की ऊंचाई पर बसे हैं.
धराली गंगोत्री यात्रा का छोटा सा व्यावसायिक पड़ाव भी है. यहाँ पर सड़क के दोनों तरफ रहने खाने के कई किफायती होटल और रेस्टोरेंट हैं. यात्रा सीजन में हरसिल में एक रात गुजारना धराली से 3 से 4 गुना तक महंगा है, इसी वजह से कम बजट वाले सैलानी धराली में शरण पाते हैं.
खैर, धराली भागीरथी नदी के तट पर बसा है और यहाँ पर शिव का विख्यात मंदिर है —कल्पकेदार. गंगोत्री आने वाले पर्यटक हरसिल की सैर का मोह नहीं त्याग पाते. हरसिल और धराली दोनों ही भागीरथी के तट पर बसे होने के साथ-साथ देवदार के घने जंगल और नयनाभिराम पहाड़ी झरनों से भी सजे-धजे हैं, समूचा परिवेश किसी पेंटिंग का हिस्सा होने का आभास देता है. इस पूरे इलाके में आप चारों तरफ झरनों का संगीत सुनते हुए चलते हैं.
धराली से ही एक छोटा सा पैदल रास्ता सातताल के लिए जाता है. इस इलाके में आने वाले पर्यटकों में से ज्यादातर की दिलचस्पी सातताल में नहीं होती. कहते हैं कि सातताल सात छोटी पड़ोसी झीलों का क्षेत्र है. लेकिन यहाँ चार झीलें आसानी से देखीं जा सकती हैं, इनमें से एक सूखकर घास के मैदान में तब्दील हो चुकी हैं और शेष जल्द हो जायेंगी. ग्लेशियर के पानी के साथ आने वाली मिट्टी, गाद व लकड़ियाँ-पत्तियां झील के तल व सतह पर जमा होती जा रही है और इसकी सफाई व रखरखाव में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है.
शेष 3 झीलों के बारे में स्थानीय ग्रामीण भी कुछ संतोषजनक नहीं बता पाते. हो सकता है अन्य 3 झीलें ट्री लाइन के ऊपर दुर्गम हिमालयी क्षेत्र में हों या वे भी सूख गयी हों. अगर आप बड़ी झीलों से मिलने की उम्मीद पाले सातताल जायें तो निराशा हाथ लग सकती है. देवदार के नीरव जंगल में पंछियों का कलरव, सुरम्य झरने की कलकल के हमसफ़र बनकर सातताल पहुंचना इस सफ़र का हासिल है.
धराली से एक ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ता सातताल के लिए जाता है. अगर आप कोशिश करें तो पगडण्डी पर बढ़ने से पहले किसी पहाड़ी कुत्ते को अपने साथ चलने के लिए राजी कर सकते हैं. सफ़र का यह दोस्त इस रास्ते पर मिलने वाले बाघ और भालुओं से आपको आगाह कर सकता है. करीब डेढ़ किलोमीटर तक गाँव आपके साथ चलता है, हिमालय की पृष्ठभूमि में सेब के सुन्दर बागान और पत्थरों की ढलवां छत वाले लकड़ी के घरों में बसा गाँव. ये घर अपनी बनावट में कश्मीर, लद्दाख और लाहौल स्पिति क्षेत्र के घरों से काफी मिलते हैं. सेब के बागानों में आलू और राजमा की खेती गाँववासियों की आजीविका का हिस्सा हैं. हरसिल की राजमा विश्वविख्यात है. गाँव की सीमा के बाद भी आपको इक्का-दुक्का घर दूसरी झील के पास तक मिलते रहते हैं.
रास्ते चलते मिलने वाले ग्रामीणों से आप दिल खोलकर बात करके स्थानीय जनजीवन की जानकारी पा सकते हैं. सफ़र की शुरुआत से ही एक पानी का झरना पगडण्डी के दाएं-बाएं पहाड़ी से नीचे उतरता है. इसी झरने का सिरा आपको पहले, दूसरे, तीसरे तालाब तक लेकर जाता है. ग्लेशियर और भूमिगत जलधाराओं से लबालब झीलों का ओवरफ्लो ही इस झरने का उद्गम है. जैव विविधता से भरे इस रमणीक क्षेत्र में ढेरों चिड़िया, जंगली फूल, वनस्पतियाँ पायी जाती हैं. देवदार के घने जंगल से घिरे इस इलाके में भोजपत्र के पेड़ भी मौजूद हैं.
इस रास्ते पर 3 किमी चलने पर आपको पहली छोटी झील मिलती है, एक किमी आगे दूसरी और तीसरी झील. तीसरी झील गाद-मिट्टी से पटकर खूबसूरत घास के मैदान में तब्दील हो चुकी है. तीसरी झील से 100 मीटर की दूरी पर ही थोड़ा ऊंचाई पर चौथी झील मौजूद है. इसके बाद आगे रास्ता साफ़ नहीं है.
थोड़ा ऊंचाई पर निगाह डालने पर आपको ट्री लाइन ख़त्म होती दिखती है, जिसके बाद है बर्फ से ढंका हिमालय. इससे आगे जाने के लिए अब तक साथ चलते आ रहे झरने के सहारे रास्ते को टटोलकर ही चलना मुमकिन है. सातताल के इस रास्ते में किसी भी पड़ाव पर आप सुस्ताकर प्रकृति से एकाकार हो सकते हैं. इस रास्ते पर चलते हुए 2600 मीटर से 3000 मीटर की ऊंचाई तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, वक़्त और हौसला हो तो इससे आगे की गुंजाइश बनी रहती है.
-सुधीर कुमार
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