‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यह पाया गया कि एक अरब से अधिक महिलाओं और बच्चों में बड़ी मात्रा में अपने आयरन की कमी हो सकती है.जिससे उनमें एनिमिया सहित अन्य बीमारियां हो सकती हैं. इसमें सबसे अधिक भार भारत पर पड़ेगा जिसमें 5 करोड़ लोगों में जिंक की कमी हो जाएगी. भारत में कम से कम 3.8 करोड़ लोगों में प्रोटीन की कमी होने का खतरा है और 50.2 करोड़ महिलाओं और बच्चों पर आयरन की कमी से होने वाली बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है.
दरअसल काबर्न डाई ऑक्साइड के बढ़ते स्तर के कारण चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलें कम पोषक हो रही हैं. अमेरिका के हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि मानवीय गतिविधियों से बढ़ते कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर के कारण साल 2050 तक दुनियाभर में 17.5 करोड़ लोगों में जिंक की कमी जबकि 12.2 करोड़ लोगों में प्रोटीन की कमी हो सकती है. साल 2050 तक लाखों भारतीयों पर कुपोषण का खतरा मंडरा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अभी भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है. दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं.
एक अन्य के रिपोर्ट “स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड, 2017” में बताया गया है कि कुपोषित लोगों की संख्या 2015 में करीब 78 करोड़ थी तो 2016 में यह बढ़कर साढ़े 81 करोड़ हो गयी है.दुनिया के कुपोषितों में से 19 करोड़ कुपोषित लोग भारत में हैं. भारतीय आबादी के सापेक्ष भूख की मौजूदगी करीब साढ़े 14 फीसदी की है. भारत में पांच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को विवश है जिसका असर मानसिक और शारीरिक विकास, पढ़ाई-लिखाई और बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है. रिपोर्ट की भाषा में ऐसे बच्चों को ‘स्टन्टेड’ कहा गया है.
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