पैली जमान में धार्मिक विश्वास आदिमूं लिजी भौत ठुल सहार हुंछी. जब लै कोई प्राकृतिक आपदा उनूंकैं दुखी और परेशान करछी लोगबाग यौ सोचि बेर अपुण मन कैं बोत्याई लिछी कि जो लै करो द्याप्तांल करौ और द्याप्त कभैं लै कोई काम बिना उद्देश्य नी करण. और यौ लै कि द्याप्तांक करी काम हमेशा आदिमक लिजी क्वे न क्वे भल जरूर करूं. तो जो लै प्राकृतिक आपदा या निराशा ऊंछी आदिम चुपचाप मुनई टेक बेर उकैं स्वीकार कर लिछी और सोचछी कि यौ भगवानैकि मर्जी छी.
(Column in Kumaoni by Ashok Pande)
अब टैम बदल गो. लोगबाग भगवान और धर्म में उतू ज्यादा विश्वास नी करण. हर आदिम यौ सोचण लाग गो कि वीक जिंदगीक क्वे मतलब छू लै या न्हें. अब हम जां लै देखनूं मैंस गजबजी जै गेईं देखिनी. ईमानदारी और भलाई जस चीज पुराण जमानैक बात जस है गेईं. सब लोग डबल डबलै कूंण भैटण लाग गेईं.
एक हिसाबल देखौ तो हमर जीवन हमर पूर्वजूंक जीवनैक तुलना में भौत ज्यादा सुखद छू. हमर पूर्वजूंक जीवन में अशिक्षा, अज्ञान और अंधविश्वास भौत छी. अंग्रेज लोग एक कहावत में कूणी कि इग्नोरेन्स इज ब्लिस मतलब अज्ञान में परमानन्द हूँ लेकिन यौ परमानन्द लिण लिजी आदिम कैं हुड्ड और खुड़बुद्धि हुण चैं. आजक आदिम पढी लेखी छू. आज विज्ञानक माध्यमल हमूंकैं जो प्राकृतिक रहस्य पत्त छन ऊं हमर पूर्वजूंक लिजी द्याप्तूंक क्रीड़ा हुंछी.
ज्यादा ज्ञान प्राप्त हूँ तो हमूंकें मानसिक सुख प्राप्त हूँछ. हम लोग उतू अन्धविश्वासी लै नी रै गयां. हमर पूर्वज हर बात में भाग्यैक बात करछीं जबकि आजौक मैंस कूं कि भाग्य वीकै हाथम छू.
पैली टैम में धन सम्पतिक हिसाब यौ छी कि जायदेतर मैंस गरीब हुंछी और क्वे-क्वे चल्लाक आदिम अमीर. आज जो लै छू हम कै सकनूं कि पुराण जमानक हिसाबल आज धन सम्पतिक वितरण ज्यादा समान छू. अमीर और गरीबक बीचम जो दूरी छू उ कम हुण भैटगे. पैली टैम में गरीबी कैं द्याप्तूंक अभिशाप मानी जांछी जबकि आजक जमान में अमीर आदिम लै लापरवा नी रै सकन.
आज जाग-जाग अस्पताल खुल गेईं, एक है एक इलाज हुण भैट गेईं, गौं- गौं में सरकारल न्यूनतम चिकित्सा सुविधा पुजै हाली. आजक आदिम अपुण पूर्वजूंक तुलना में भौत ज्यादा स्वस्थ और साफ जीवन बितूंण लाग रौ. कैंसर जस बीमारी लै अब लाइलाज नि रैगे. सार्वजनिक जागूं में लै साफ-सफाईक ख़ूब ध्यान धरी जां. पुराण जमानक आदिमूंक तुलना में आजक आदिमक जीवन ज्यादा लम्ब और सुखद छू.
(Column in Kumaoni by Ashok Pande)
हमर पूर्वजूंक जिन्दगी में आजादी लै भौत कम छी. हम सब जाणनूं कि बिना आजादी क्वे लै सही अर्थूं में खुशी नी रै सकन. आज सामाजिक बंधन टूटण लाग गेईं. च्येली-सैणीयों लिजी जीवन जतुक बंधन मुक्त और आज़ाद आज छू उस कभैं नी छी. मानव सभ्यताक इतिहास में कब्भैं लै नी छी.
पैली टैम में सब भाई-बंद एक कुटुंब में रौंछी और के कूनीं अग्रे,जी में जॉइंट फैमिली सिस्टम चलछी. यौ सिस्टम में कत्तुकै परिवार ख़तम है जांछी किले कि उमें क्वे न क्वे हिटलर लै बण जांछी और सब काम अपुण स्वार्थक लिजी करछी. अब संयुक्त परिवार वालि व्यवस्था ख़तम है गे. परिवार में च्यल हो या च्येली द्वीनों कैं बराबर समझी जां. सुख-सुविधा ख़ूब है गेईं. विज्ञानल हमर लिजी कास-कास चीज बाजार में उतारी हालीं. आजक आदिमक पास खाली बखत लै रूं जो पैली टैम में सोची लै नी जै सकछी.
(Column in Kumaoni by Ashok Pande)
यौ सब तो ठीक छू महराज पर यौ जमान कैं के है गो? जीवन ठुल है गो पर मैंस भौते नान बण गेईं. खाणपीणक ख़ूब झरफर है गे पर मैंसल एकलकट्टू हुण सीख हालौ. द्याप्तांक थान ख़ूब ठुल-ठुल बण गेईं पर द्याप्त पत्त नै कथाप हरे गेईं.
शेरदा अनपढ़ कूंछी:
आई राताक रातै हुनई, आई दिनाक दिने छन
त्वील के समजि राखौ शेरदा, आई भगवान ज्यूनै छन!
अशोक पांडे का यह लेख नवभारत टाइम्स में पहले प्रकाशित हो चुका है. काफल ट्री में यह लेख नवभारत टाइम्स से साभार लिया गया है.
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