सिनेमा

तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे

जो तुमको हो पसंद, वही बात कहेंगे

तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे

जो तुमको …

चाहेंगे, निभाएंगे, सराहेंगे आप ही को

आँखों में दम है जब तक, देखेंगे आप ही को

अपनी ज़ुबान से आपके जज़्बात कहेंगे

तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे

जो तुमको हो पसंद …

देते न आप साथ तो मर जाते हम कभी के

पूरे हुए हैं आप से, अरमान ज़िंदगी के

हम ज़िंदगी को आपकी सौगात कहेंगे

तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे

जो तुमको हो पसंद …

जो तुमको हो पसंद …

झांसी में जन्मे इन्दीवर (असली नाम श्याम लाल बाबू राय) ने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक गीत दिए. अब इसी फिल्म की बात लें, तो जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर… (टाइटल सॉन्ग) जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए… हम थे जिनके सहारे… हिंदी सिनेमा ऐसे नगमे हैं, जिन्हें दर्शक भुलाए नहीं भूल सकते.

खुली गाड़ी में फिरोज खान, शर्मिला टैगोर. पार्श्व में कम ऊँचाई वाली महाबलेश्वर की पहाड़ियाँ, कम वनस्पति वाला टेरेन.

बॉलीवुड के काऊ बॉय (फिरोज खान) अपने स्टाइलिश अंदाज में नजर आते हैं. वे ड्राइव करते हुए नायिका को रिझाने के लिए बड़ा मोहक सा गीत गाते हैं.

राजेश खन्ना की फिल्मों के बारे मे एक मिथक तेजी से बनता जा रहा था कि, उनकी फिल्मों के गीत पंचम (आरडी बर्मन) की धुनों पर चलते हैं. इस मिथक को कल्याणजी-आनंदजी (सफर) ने तोड़ दिया. कार के हॉर्न का संगीत में इस्तेमाल, इतने खूबसूरत अंदाज़ में कम ही हुआ होगा.

इंदीवर को ये कमाल हासिल था कि, वे ऐसे गीत लिखने में माहिर थे. मुकेश के लिए तो उन्होंने कालजयी गीत लिखे-

 चंदन सा बदन चंचल चितवन…

 फूल तुम्हें भेजा है खत में…

 छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए… (सरस्वती-चंद्र)

 हमने तुझको प्यार किया है इतना…

 जो प्यार तूने मुझको दिया है… (दूल्हा-दुल्हन)

जिस दिल में बसा था प्यार तेरा… (सहेली)

दर्पण को देखा तूने… (उपासना)

  कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे… (पूरब और पश्चिम)

मन्ना डे के लिए, कसमे वादे प्यार वफा…

हर खुशी हो वहाँ (उपकार)

किशोर कुमार के लिए

रूप तेरा ऐसा दर्पण में ना समाए… (एक बार मुस्कुरा दो)

तेरे चेहरे में वो जादू है… (धर्मात्मा)

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा… (अमानुष)

उनकी रेंज देखें तो हैरत होती है; उन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट इरा से लेकर पॉप-युग तक क्या खूबसूरत नगमे लिखे हैं.

 बड़े अरमान से रखा है सनम तेरी कसम… (मल्हार)

आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए…

हम तुम्हे चाहते हैं ऐसे… (कुर्बानी)

मिडिल सिनेमा के गीतों में भी उन्होंने कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी—

होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो…

दुश्मन ना करे दोस्त ने ये काम किया है…

मधुबन खुशबू देता है…

उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago