पिछली कड़ी – खीम दा की खिमली और प्रधानी का चुनाव
लोकमणि और खीम दा को हरदत्त ज्यू की बातें सपने में भी परेशान करने लगी. चुनाव में अब कुछ ही दिन शेष रह गये हैं लेकिन सारा माहौल ये हरदत्त की वजह से खराब हो गया ठैरा-लोकमणि झल्लाये हुए बोले. खीम दा को भी हरदत्त अब फूटी आँखों नहीं सुहा रहे थे. वो भी उनके खिलाफ अपने छोटे बच्चों के सामने ही अनाप-सनाप बकने लगा. खीम दा का ड्रामा देखकर उधर से खिमली भी बोल पड़ी-जब आपनी बाल्टी टोटि भैत पानि कैहे भरील बता (जब अपनी ही बाल्टी में छेद हो तो पानी कहॉं से भरेगा बताओ). खीम दा को खिमली की बात चुभ गई और वो आब तू देख-आब तू देख (अब तू देख) कहता हुआ घर से बाहर चला गया.
उधर लोकमणि की बहू ममता ने कहा-सौर ज्यू ये बारि रनदिना (ससुर जी इस बार रहने देते हैं). अगली बार अनारक्षित सीट आएगी तो आप फिर से प्रधान बन ही जाएँगें. इतना सुनना था कि लोकमणि आग बबूला हो गए और बोले-तू चुप रौ (तू चुप रह). यहॉं मेरी चप्पलें घिस गई हैं तेरे लिए टिकट का जुगाड़ करने में और तू कहने वाली हुई रहने देते हैं. चुपचाप अपना काम कर. बाकी में देखता हूँ क्या तिकड़म लगानी है. ममता चुपचाप रसोई में चली गई. लोकमणि भी गंभीर सोच में डूबे बरामदे में इधर-उधर घूमने लगे.
घर से निकलकर खीम दा सीधा लच्छू फौजी की दुकान में पहुँचा और हमेशा की तरह पिरम्या और उसके लफंडर दोस्तों को हाथ में चिलम लिए फालतू की हीही-ठाठा करते हुए देखा. खीम दा के आते ही सबने उसे उदास मन से सलामी ठोकी. पिरम्या बोला-खीम दा कौत हरदत्त ज्यू कै ठीक कर दिना? (खीम दा कहो तो हरदत्त ज्यू को ठीक कर दें?). खीम दा कुछ कहता इतनी देर में तिल्लू बीच में बोल पड़ा-गजब बात करते हो यार दाज्यू. ऐसा कुछ किया तो रही-सही जो उम्मीद है जीतने की वो भी जाती रहेगी इसलिए ऐसा तो सोचना भी नहीं ठैरा. हमें बहुत ही सावधानी और होशियारी से खेलना होगा. खीम दा बोला-यार तिल्लू म्यार त के समझ में ना उन्ने कि करी जौ आब? (यार तिल्लू मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या किया जाए अब?). शाम को महफिल जमाओ यार दाज्यू फिर बताता हूँ-तिल्लू ने जवाब दिया.
शाम को पिरम्या और तिल्लू हिल टॉप की बोतल लेकर खीम दा के घर पहुँचे. वाह! खूशबू त गजबे ऊने यार (वाह! खूशबू तो गजब की आ रही है यार), लगता है खीम दा ने शिकार बनाया है-पिरम्या खुशी से बोला. खीम दा ने कहा-हॉं शिकार तो बना है लेकिन मिलेगा तब जब जीतने का मंत्र दोगे. तिल्लू ने कहा-खीम दा पैसे से कौन हारा है आजतक बताओ तो? हर जीत का एक ही मंत्र ठैरा-पैसा. जितना पैसा उड़ाओगे उतनी देर तक नचनिया नाचेगी. ये बात खीम दा के सिर के ऊपर से बाउंसर की तरह निकल गई. वो बोला-यार तिल्लू साफ-साफ समझा तो आखिर कहना क्या चाह रहा है? तिल्लू बोला-खीम दा ये जो वोटर होने वाला हुआ ना ये छड़िक खुशी और आज में जीने वाला हुआ. आज तुम पैसे के दम पर इन्हें खुश कर के इनके अगले कई साल अपने नाम कर सकते हो. कहने का मतलब साफ है खीम दा पैसा, दारू, मुर्गा, साड़ी आदि के दम पर तुम किसी का भी वोट खरीद सकते हो. बड़े-बड़े नेता ऐसा कर के संसद और विधान सभा पहुँचे ठैरे.
लेकिन हरदत्त ज्यू की बातों और उस पर गॉंव के लोगों के समर्थन का क्या?-खीम दा ने वाजिब सवाल किया. तिल्लू बोला-खीम दा पैसे के सामने इस हिल टॉप का नशा क्या ही होगा यार? पैसा बहुत कुत्ती चीज ठैरी. इसके लिए तो आदमी अपना जमीर तक बैच देने वाला हुआ फिर वोट क्या चीज हुआ? बाकी गॉंव के लोगों की आमदनी और बेरोजगारी का हाल तुम देख ही रहे हो. इस चुनाव में जो कमाल तुम्हारा पॉंच सौ का एक नोट दिखा सकता है ना वो सैकड़ों हरदत्त मिलकर भी नहीं दिखा सकते. अब बात खीम दा को बखूबी समझ आने लगी. तीनों ने मिलकर हिल टॉप की बोतल शिकार के साथ हजम की और कल मिलने का वादा कर के पिरम्या और तिल्लू वहॉं से खिसक लिए.
लोकमणि अपनी चुनावी कोशिशों में अलग ही सिर खपा रहे थे. गॉंव के चार-पॉंच लोग उनके साथ हुए लेकिन बाकी गॉंव वाले उनकी पिछली प्रधानी से निराश ही ठैरे. लेकिन लोकमणि वो सारे पैंतरे जानने वाले हुए जो तिल्लू खीम दा को सिखा रहा था. इन्हीं पैंतरों के इस्तेमाल से तो वो पिछला चुनाव जीते ठैरे. उधर हरदत्त ज्यू व कुछ गॉंव वालों के जोर देने पर पाण्डे मास्साब की बेटी पुष्पा ने भी प्रधानी का पर्चा भर दिया. वैसे पाण्डे मास्साब गॉंव वालों की मानसिकता को भली तरह से जानने वाले हुए लेकिन गॉंव की भलाई का सोचकर उन्होंने पुष्पा की उम्मीदवारी के लिए हामी भर दी. अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया. पाण्डे मास्साब, पुष्पा और हरदत्त ज्यू घर-घर जाकर लोगों को उनके वोट की ताकत समझाने लगे. उनकी बातें सुनकर सब पुष्पा को वोट देने की हामी भरते गए. गॉंव में कुल वोट 410 ठैरे जिनमें से 100 वोटर गॉंव से बाहर दिल्ली और हल्द्वानी जैसे शहरों में रहने वाले हुए. इन बाहरी वोटरों को गॉंव तक ला पाना बहुत टेढ़ी खीर ठैरा.
प्रचार अब अपने अंतिम दौर में पहुँच गया. गॉंव में दिन भर बस चुनाव की चर्चा होने वाली हुई. पुष्पा गॉंव के लोगों को प्रधानी का महत्व व गॉंव के विकास की अपनी रणनीति समझाती रहती जो सुनने में गॉंव वालों को बहुत अच्छी लगने वाली हुई. गॉंव की बुजुर्ग औरतें पुष्पा के सिर में हाथ फेरते हुए कहती-देखलिए चेली तूई जितली (देख लेना बेटी तू ही जीतेगी). सबको लग भी रहा था कि पुष्पा आसानी से जीत जाएगी. लोकमणि अभी तक बस लोगों से मिलकर ही वोट देने की अपील कर रहे थे लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी समय में उन्होंने गॉंव के लौंडों को जमकर हिल टॉप पिलाई और ख़ूब मुर्ग़ा खिलाया. बुजुर्गों के पैरों में लगभग गिड़गिड़ाते हुए सबको पॉंच सौ का एक-एक लिफाफा पकड़ाया. कुछ बुजुर्गों ने मना भी किया तो लोकमणि ने भावुक होकर कहा-तुमरी ब्वारी त ठड़ी रे चुनाव में वीक तरफ बठे शगुन समझ बेर राख ली (आपकी ही तो ब्वारी खड़ी है चुनाव में उसकी तरफ से शगुन समझ कर रख लीजिये). लोकमणि की दारू पार्टी देखकर गॉंव की औरतों ने नाराजगी जाहिर की. उनका कहना था कि शराब की वजह से ही उनके परिवार के मर्द किसी काम के नहीं रह गए हैं. ऊपर से उनके बच्चे भी अब शराब के नशे में डूबने लगे हैं.
इस सब पर बहुत बारीकी से नजर रखे हुए थे खीम दा के खबरी पिरम्या और तिल्लू. तिल्लू ने खीम दा से कहा देखो दाज्यू अगर गॉंव की औरतें नाराज हो गई तो जीतना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए बहुत सोच समझकर चलना होगा. खीम दा बोला-जस करन छ तुई बतौ यार (जैसा करना है तू ही बता यार). तिल्लू ने खीम दा को पूरा प्लान समझाया. खीम दा ने किसी को पार्टी के लिए नहीं बुलाया बल्कि बना बनाया शिकार और हिल टॉप के अद्धे गॉंव के सब बेवड़ों के घर खुद पहुँचा के आया और पूरे गॉंव में किसी को कानों-कान खबर तक नहीं लगने दी. तिल्लू के दिये आइडिया के तहत खीम दा ने खिमली के हाथों गॉंव की हर औरत को एक साड़ी और उसमें पॉंच सौ रूपए का नोट भिजवा दिया. बुजुर्गों को लोकमणि के पॉंच सौ के मुकाबले हजार रूपए के लिफाफे पकड़ा दिये. खीम दा यहीं नहीं रूका उसने गॉंव से बाहर रह रहे 100 वोटरों को गाड़ी से लाने, वापस ले जाने और खाने पीने तक का सारा इंतजाम भी कर दिया.
खीम दा की इस कूड़ बुद्धि में गॉंव वालों को उसकी मेहनत नजर आ रही थी. बाकी पढ़े-लिखे व शहर में रह रहे वोटरों को रिझाने के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप में उसकी मेहनत की झूठी वाहवाही करने के लिए दमची दोस्तों का एक छोटा सा आईटी सेल था ही. जो सुबह से शाम तक गॉंव के व्हाट्सऐप ग्रुप में खीम दा और खिमली के लिए प्रचार करता और झूठी तारीफों के पुल बाँधता रहता. खीम दा को भी अब यकीन होने लगा था कि उसका पैंतरा काम कर जाएगा. पाण्डे मास्साब और पुष्पा गॉंव के वोटरों से मिलकर और उन्हें समझाकर निश्चिंत थे कि वोट उन्हीं को मिलेगा. वहीं लोकमणि को भी अपने पूर्व राजनैतिक अनुभव से यकीन हो चला था कि ममता चुनाव जीत जाएगी. सबको उम्मीद थी कि मुकाबला बहुत कड़ा होगा. हरदत्त ज्यू ने तो पुष्पा की जीत का एक्जिट पोल तक जारी कर दिया. लोकमणि को प्रधानी का पूर्व अनुभव होने के कारण कुछ लोगों को लग रहा था कि ममता, पुष्पा को टक्कर दे सकती है.
आखिर चुनाव का दिन आ ही गया और पूरे गॉंव से 410 में से 390 वोट पड़े. वोटों की गिनती हुई और जिस अनहोनी का डर था वही हुआ. जीत की प्रबल दावेदार मानी जाने वाली पुष्पा को मात्र 80 वोट मिले. लोकमणि की बहू ममता को 130 वोट मिले और 180 वोट पाकर खीम दा की कूड़ बुद्धि के चलते खिमली चुनाव जीत गई. खीम दा की खुशी का तो ठिकाना ही नही रहा. खिमली को घर में छोड़ खीम दा ढोल नगाड़ों के साथ अपने दमची दोस्तों संग पूरे गॉंव में जश्न मनाने लगा.
दारू पीकर, मुर्गा खाकर, वोट के बदले नोट लेकर तथा खीम दा की भिजवाई गई साड़ियॉं पहनकर गॉंव वाले खिमली की जीत पर ऐसे अचरज में हैं जैसे कोई दूसरे ग्रह से आकर वोट डाल गया हो. जिससे भी पूछो कि किसको वोट दिया तो हर कोई सिर्फ यही कहने वाला हुआ कि और किसको देते! हमने तो पुष्पा को ही वोट दिया ठैरा. ये सुनकर हरदत्त ज्यू बोले-ठीके कुन्वाहा तुम सब (ठीक ही कह रहे हो तुम सब). इन कागज वाले वोटों में भी शायद ईवीएम वाली बिमारी लग गई होगी. वोट तो तुम सबने पुष्पा को ही दिया होगा लेकिन चला खिमली और ममता को गया होगा.
पाण्डे मास्साब बोले इसीलिए मेरी राजनीति में कोई दिलचस्पी नही ठैरी क्योंकि इस देश का वोटर कुत्ते की पूँछ की तरह है. कितनी ही कोशिश कर लो टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी. पुष्पा ने लोगों के बीच जाकर खूब मेहनत की थी लेकिन उसको यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन के मुर्गे, दारू और चंद पैसों के लिए गॉंव वाले अपने आने वाले पॉंच साल यूँ ही गिरवी रख देंगे. हरदत्त ज्यू भी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. दारू व पैसे के नशे में अपना वोट लगभग बर्बाद कर आए गॉंव वालों के चेहरे में पछतावा व मन में शंकाएं पैदा होने लगी हैं कि क्या होगा गॉंव का भविष्य? क्या होगा खीम दा का गॉंव के विकास के प्रति रवैया? क्या वह खिमली की प्रधानी के नाम पर गॉंव के लिए कुछ कर पाएगा? या फिर पूर्व प्रधान लोकमणि की तरह ही अपनी जेब भरेगा? वैसे तो खीम दा से किसी को ज्यादा उम्मीद नहीं ठैरी लेकिन उसके झाँसे में आकर खिमली को जिताने वालों की नजर अब खिमली रूपी रबर स्टैंप प्रधान के पति खीम दा पर टिकी हुई हैं.
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…
View Comments
बहुत बढ़िया. लगता है अपने गाँव पन्याली की सत्य कथा पढ़ रहा हूं.
बढ़िया लिखा है। पंचायती चुनाव को सामने रख दिया आपके लेख ने ?