गायत्री आर्य

भ्रूण संभवतः दुनिया की सबसे मजबूत और शक्तिशाली नींव है

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – सत्रहवीं किस्त

पिछली क़िस्त का लिंक: अच्छे दोस्त जिंदगी की सबसे बड़ी नेमत होते हैं

तुम्हारी उपस्थिति मेरे भीतर दर्ज होने लगी है मेरी बच्ची! 18-19 दिसम्बर तक मुझे पीरियड्स नहीं हुए और फिर 31 दिस. की सुबह मुझे पहली उल्टी हुई.  उल्टी होते ही मैं घबरा गई, क्योंकि मुझे पिछली बार वाली अपनी हालत याद आ गई थी.  उल्टियों और दस्त का भयंकर दौर. उल्टियां तो इतनी कि मैं बता नहीं सकती अपनी वो हालत. शायद पूरा एक सप्ताह हो गया था खाना भीतर गए, पीया हुआ पानी तक उल्टी में निकल जाता था और फिर खाली पेट के कारण हुआ गैस का दर्द. सारी रात उकड़ू बैठकर मैंने आंखों में गुजारी थी. वो दर्द…उफ्फ!…उफ्फ! काश तुम ऐसे दर्द से कभी न गुजरो मेरी बच्ची!

कल पहली बार मुझे सबसे ज्यादा उल्टियां हुईं.  सो डर के मारे मेरी खाना खाने की भी हिम्मत नहीं हुई. थोड़ा सा दूध और एक सेब खाया दवाई लेने के कारण. तुमने तो आते ही मेरी हालत खराब कर दी है यार! सिवाय मेरे गर्भ में (लगभग) 100-150 ग्राम वजन के, तुम्हारा कहीं कोई अस्तित्व नहीं है. तुम बस मांस का एक छोटा टुकड़ा भर होओगी अभी, लेकिन तुमने धमाकेदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. मान गई मैं तुम्हें! तुम अभी कहीं नहीं हो ढंग से, लेकिन फिर भी तुमने अभी से मेरे व्यक्तित्व पर अपना रोब जमाना शुरू कर दिया है.

मेरा बैडमिंटन खेलना बंद हो गया है. मैं नाच नहीं सकती. शुरू के तीन महीने तो खासतौर से नहीं और उसके बाद तो वैसे ही नहीं! मुझे ज्यादा सफर नहीं करना है, ज्यादा वजन नहीं उठाना, मानसिक और शारीरिक तनाव देने वाले कामों से बिल्कुल दूर रहना है. भागादौड़ी से हरसंभव बचना है, बस में आराम से चढ़ना-उतरना है. कहीं कोई हड़बड़ी नहीं.  पपीता गलती से भी नहीं खाना.  बाकि फल, जूस, खूब खाने हैं.  खाना अच्छे से खाना है,…खास बात ये कि बिना भूख भी खाना है. (बिना भूख खाने की सलाह शायद सिर्फ बीमारी और प्रेगनेंसी में ही दी जाती है) तुम्हारे मेरे भीतर आने भर से मेरी जिन्दगी में तमाम तरह के ‘डूज’ एंड ‘डोंट्स’ शुरू हो गए हैं.

लगभग 8-10 दिनों से मेरी भूख मर चुकी है. अजीब बात ये है कि जब तुम्हारे कारण मुझे ज्यादा खाना है, तो मेरी सामान्य सी भूख भी तुम्हारे आने से क्यों मर गई? इंसान की भूख मारकर उसके सामने अच्छे से अच्छा खाना, मिठाई, मंहगे फल-फ्रूट रखकर उससे कहो कि खाओ. क्या टॉर्चर नहीं है ये? है न?…फिर तुम अपनी मां के साथ ऐसा क्यों कर रही हो मेरी बच्ची? तुम चुनौती बन रही हो मेरे लिए. अभी तक तुम्हारे लिए मेरे मन में प्यार जैसा कुछ नहीं फूटा है, मैं सिर्फ झेल रही हूं. मातृत्व के सुखद अहसास ने अभी जन्म नहीं लिया है.  मैं उसका इंतजार कर रही हूं और इस काम में तुम्हारे सहयोग का भी.

बच्चे का वजूद सच में मां के वजूद पर कितना भारी पड़ता है. सोचो जरा तुम अभी कितनी सी हो, मांस की एक मोटी बोटी जितनी.  लेकिन अभी से मेरे दिन के चौबीस घंटे और दिनभर की गतिविधियां तुम्हीं से नियंत्रित होने लगी हैं.  नौ महीने तुम्हारा मेरे पेट में रहना सिर्फ तुम्हारे लिए ही जरूरी नहीं है, अब समझ में आ रहा है कि ये एक स्त्री के लिए भी कितना जरूरी है.  सोचो जरा, अभी तो मेरी कुछ ही चीजें, काम, व्यवहार, खाना नियंत्रित हुआ है और मैं कितना छटपटा रही हूं. पेट से बाहर आने के बाद तो मेरा हर लम्हा, सारे छोटे-बड़े काम, हर हरकत तुम ही तय करोगी. उस हालत में तो मैं पागल ही नहीं हो जाती क्या भला? इसलिए तुम्हारे विकास के लिए तुम्हारा नौ महीने मेरे भीतर रहना जितना जरूरी है, उतना ही मेरा खुद को तुम्हारे हिसाब से ढालने के लिए भी जरूरी है.

धीरे-धीरे तुम ज्यादा से ज्यादा मेरा मुझसे छीनती जाओगी. मेरी आदत, पसंद-नापसंद, व्यवहार, सब कुछ तुम अपनी जरूरत और सुविधा के हिसाब से मुझसे करवाती जाओगी और मैं करती जाऊंगी.  क्योंकि तुम्हारे मामले में मैं पहले भी विकल्पहीन ही थी और अब जबकि तुम मेरे भीतर हो, तो भी तुम्हारी जरूरतें पूरी करने के मामले में भी मैं विकल्पहीन ही हूँ.  तुम्हें जिस-जिस चीज की जरूरत होगी तुम्हारे बिना बोले, कहे भी मैं वो सब करती जाऊंगी.  मेरा परिवार, समाज, सभी तो हैं मुझे तुम्हारी जरूरतें बताने के लिए.  मुझे लगता है पूरी दुनिया में और कोई भी ऐसी चीज, ऐसा मिशन, ऐसा प्रोग्राम या ऐसा कुछ भी नहीं जिसकी सिर्फ नींव भर (वो भी अदृश्य), पूरे परिवेश पर इतना ज्यादा, गहरा, व्यापक और महत्वपूर्ण असर डाले, जितना की एक बच्चे का सिर्फ जरा सा भू्रण अपनी मां पर असर डालता है! विज्ञान और प्रोद्यौगिकी के बड़े से बड़े प्रोजेक्ट की क्या सिर्फ आधी-अधूरी या कहूं सिर्फ नींव का पहला पत्थर इतना गहरा असर डालता होगा किसी पर? उन वैज्ञानिकों पर, उस संस्था पर, उस समाज पर या देश पर? शायद नहीं.  मां के भीतर बच्चे का भ्रूण संभवतः दुनिया की सबसे मजबूत और शक्तिशाली नींव है, जिसका पहला पत्थर ही भारी उथल-पुथल मचा देता है.

मैं तुम्हारी इस ताकत और उपस्थिति से अभिभूत तो शायद नहीं हूं अभी तक, लेकिन थोड़ी सहमी हुई जरूर हूं. मैं चाहती हूं तुम मेरे सपनों को न छू पाओ, उन पर हावी मत होना मेरे बच्चे प्लीज! जो तुम्हें चाहिए मैं वो सब करूंगी, पर मेरे सपनों से छेड़खानी मत करना वरना मैं टूट जाऊंगी तुम यदि मेरे सपनों में मेरी सहयोगी बनी, तो मैं और भी ज्यादा ख़ुशी से तुम्हारा साथ दूंगी, ज्यादा प्यार दे पाऊंगी…और भी बारी-बारी जाऊँगी तुम पर, मेरी बच्ची. ये तुम्हारी मां का वादा है तुमसे. आखिर मैं भी तो तुम्हें तुम्हारे अपने सपने बुनने और उन्हें पूरा करने में मदद करूंगी न! तो तुम्हें भी अपनी मान के सपनों को पूरा करने में उसकी मदद करनी चाहिए न! है कि नहीं?

मेरे भीतर की गर्मी में तुम्हें जरा सा भी अंदाजा नहीं है कि आज बाहर, यहां कितनी ठंड है.  मैं आज अपने हॉस्टल आ गई हूं जे.एन.यू में.  मैंने ऊन के मोजे पहने हैं और रजाई में बैठी हूं, फिर भी मेरे पैर ठंड से मरे जा रहे हैं. बाहर की जमा देने वाली सर्दी का एक कतरा भी तुम तक नहीं पहुंच रहा. तुम्हें भीतर की गुनगुनी गर्मी मुबारक हो मेरे भ्रूण!

उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

माँ का सिलबट्टे से प्रेम

स्त्री अपने घर के वृत्त में ही परिवर्तन के चाक पर घूमती रहती है. वह…

22 hours ago

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

3 days ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

4 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

4 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

5 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

5 days ago