Featured

चम्पावत जिले के 26 स्कूलों में पढ़ने वाले वाले 2500 बच्चों के लिये नहीं है पीने का पानी

सिर पर पानी की बाल्टी में पानी ले जाती स्कूली बच्चियों की यह तस्वीर चम्पावत जिले की है. 2016 में इस तस्वीर के साथ अमर उजाला ने चम्पावत के स्कूलों में पानी की समस्या पर अपनी एक रिपोर्ट छापी थी. आज 2019 है और आज भी चम्पावत जिले के 26 स्कूलों में पेयजल के कनेक्शन नहीं हैं.

दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार बाराकोट विकासखंड में 3, चम्पावत में 5, लोहाघाट में 10 तथा पाटी में 8 विद्यालयों में पेयजल कनेक्शन ही नहीं है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले कुल छात्रों की संख्या लगभग ढाई हज़ार के करीब है.

दैनिक जागरण में छपी विनय कुमार शर्मा की एक रिपोर्ट के अनुसार खुद लोहाघाट के भाजपा विधायक पूरन फर्त्याल के गृह क्षेत्र कर्णकरायत जीआइसी पेयजल विहीन है. कर्णकरायत के स्कूल में करीब 229 बच्चे हैं.

जाहिर है जब स्कूलों में पेयजल के कनेक्शन नहीं होंगे तो हर दिन स्कूलों में पानी को लेकर बहुत समय नष्ट होता होगा. स्कूलों में मिड-डे मिल भी इससे प्रभावित होती होगी. इन स्कूलों में मिड-डे मील की गुणवत्ता भी जरुर प्रभावित होती होगी.

इन दिनों बरसात का मौसम है सो इस बात की पूरी संभावना है कि जिन जुगाड़-जन्तरों से पूरे साल पानी लाया जाता है उनका पानी शुद्ध तो बिलकुल नहीं होता होगा. ऐसे में स्कूलों में बच्चों को किस गुणवत्ता का सामान मिल रहा होगा वह सोचने वाली बात है.

आज भी चम्पावत जिले के स्कूलों के बच्चे पीने के पानी के लिये आस-पास के प्राकृतिक स्त्रोतों पर निर्भर हैं. ऐसा नहीं है कि चम्पावत जिले में पानी की समस्या नई है यहां हर साल बरसात के दिनों लोगों के घरों में आने वाला पानी मटमैला होता है. जिसे सरकार सालों से हल्का मटमैला पानी कहकर टाल देती है.

-काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

View Comments

  • अगर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के आज के हालातों को देखते हुए कहूं तो उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य बनना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण अगर किसी के लिए साबित हुआ तो वह हैं उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिले... आज खून के आंसू रो रहे हैं यहां कि वह आंदोलनकारी जिन्होंने अपना तन मन धन सब न्योछावर कर दिया था एक अलग पर्वतीय राज्य गठन करने के लिए और भटक रही हूं कि वह आत्माएं जिन्होंने प्राणों की आहुति दे दी अलग उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए...
    आज सत्ता की चासनी का मजा वह ले रहे हैं जिनके खानदान में देश सेवा और या सामाजिक आंदोलन में किसी की भागीदारी ना रही हो... शायद इसीलिए सता में बैठे इन सता के लोभियों को पर्वतीय जिलों की कठिनाइयों और समस्याओं की जानकारी मिलने के बावजूद भी इन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती है इन्हें तो बस अपने स्वार्थ और कमीशन से मतलब है इसलिए यह पर्वतीय जिलों में शराब की फैक्ट्री लगा सकते हैं नए नए ठेके खुलवा सकते हैं यह शराब मोबाइल वैन से बिकवा सकते हैं!
    कुछ ऐसी ही पानी और पगडंडियों की समस्याओं से चार पांच साल पहले तक पिछले दस पंद्रह साल से हमारा गांव भी जूझ रहा था बार-बार जनप्रतिनिधियों और ब्लॉक ऑफिस में शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी आखिरकार हम प्रवासी ध्यानी बंधुओं ने अपने स्तर पर ग्राम विकास फंड का गठन किया और उससे अपने गांव की पुरानी बेतरतीब और गलत तरीके से बिछाई गई पाइप लाइन के स्थान पर मुख्य जल स्रोत से (जो कि हमारे गांव से लगभग दो-तीन किलोमीटर दूर हैं) एकदम नई पाइपलाइन गांव के एक प्राइमरी स्कूल से होते हुए अपने घरों तक बिछाई जिस का खर्चा लगभग 35 से 40 हजार रुपए के आसपास आया था और इस कार्य के हो जाने के एक डेढ़ साल बाद जल विभाग से फिटर हमारी पुरानी शिकायत पर सर्वे करने आया जिसमें उसने हमारी शिकायत को सही पाया और साथ ही साथ आश्वासन देकर चला गया था कि मैं आपको आपके द्वारा बिछाई गई नई पाइप लाइन का कुछ खर्चा सरकार से दिलवा दूंगा इस बात को भी आज 3 साल पूरे हो गए हैं और उस फिटर के भी तीन-चार ट्रांसफर हो गए होंगे या फिर हो सकता है कि उन पैसों से फिटर साहब या उनके अफसरों के घरों में स्विमिंग पूल बन गए होंगे! या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तत्कालीन ग्राम प्रधान से सांठगांठ करके कोई सेटलमेंट हो गई होगी! खैर हमें इन सब से कुछ लेना देना नहीं क्योंकि हमारा मुख्य मुद्दा था कि हमारे गांव के प्राइमरी स्कूल के बच्चे पढ़ाई करने के समय में पानी लेने स्कूल से दो-तीन किलोमीटर दूर ना जाए बल्कि उन्हें स्कूल में ही पानी मिल जाए और हम जैसे प्रवासियों को साल 2 साल में हफ्ते भर गांव जाने की पर गांव में पानी की समस्या ना हो! क्योंकि मेरा मानना है कि हम संपन्न प्रवासी जरूर हैं मगर अर्पणता ही संपन्नता की निशानी है!

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

8 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

9 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

11 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

1 day ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago