आज से काफल ट्री के पाठकों के लिए गायत्री आर्य का कॉलम शुरू किया जा रहा है. ये कॉलम एक खत के रूप में है. जिसमें एक आधुनिक माँ प्रेगनेंसी से लेकर लेबर रूम तक के अपने अनुभवों को ख़त के माध्यम से अपने बच्चे से शेयर करती है. यह खत महिलाओं के प्रति समाज का रवैया, कामकाजी माँ के ऊपर घर, ऑफिस के दबाव, परिवार के भीतर और सार्वजनिक जगहों पर यौन हिंसा, आतंकवाद, आरक्षण, दंगे, मिलावट, महंगाई आदि मुद्दों को समेटता है. यह खत एक आधुनिक माँ की नजर से भारतीय समाज के हर एक समसामयिक मुद्दे पर बहुत ही जीवंत और मार्मिक तरीके से नज़र डालता है. यह ख़त, हर किसी को अपनी मां के दिल की असीम गहराइयों में झांकने में मदद करेगा. (संपादक)
4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम-पहली क़िस्त
ये खत मैं तुम्हें कई बरस पहले से लिखना चाह रही थी… मैं तुम्हें वो सब लिखना चाहती हूं मेरी जान जो मैंने जिया है, जो मुझे पता है और जो मुझे नहीं भी पता! या जो मैं सोचती हूं और मेरी चिंता में शामिल है… मैं बिल्कुल नदी की तरह ही बहना चाहती हूं. मेरी बच्ची मैं जो लिखूंगी वह बिल्कुल सच होगा… और जहां सच कहने की हिम्मत नहीं बटोर पाऊंगी तब चुप ही हो जाऊंगी उस बारे में. ये एक माँ का अपने बच्चे से वादा है.
ये जीवन बहुत-बहुत जटिल है मेरी बच्ची. बहुत मुश्किल है… पर फिर भी बड़ी बात है इसमें. तमाम परेशानियों, घनघोर दुखों, तकलीफों, भयानकता, संत्रास और घोर अभावों को झेलकर भी हम जीना चाहते हैं. जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा बीमार से बीमार व्यक्ति, बेहद त्रस्त इंसान भी जिंदगी की आखिरी सांस तक जीना चाहता है… जीवन की आखरी बूंद तक निचोड़ लेना चाहता है. मैं कह सकती हूं कि धरती के तमाम बड़े से बड़े नशों से भी बड़ा है जीने का नशा! कैसी भी कीमतें चुकाकर, हर दर्द सहकर, बड़ी से बड़ी तकलीफ झेलकर भी इंसान इस नशे को करना चाहता है. ये ऐसा इकलौता नशा है मेरी जान! जिसके करने का कोई बुरा नहीं मानता और जिसे करने की सलाह सब देते हैं. एक बार जीने के नशे को चखने के बाद दुनिया में ऐसा कोई नहीं, जो किसी भी कीमत पर इस नशे को न करते चले जाना चाहता हो.
इंसान इस जीने के नशे का स्वाद सिर्फ सालों नहीं, बल्कि सदियों तक लेना चाहता है. यहां तक की वह मरना ही नहीं चाहता. फिर चाहे जीने के लिए किसी को तकलीफ ही क्यों न देनी पड़े, धोखा देना पड़े, झूठ बोलना पड़े या फिर किसी की जान ही क्यों न लेनी पड़े! ये सब सुनकर तुम्हें भी जीवन के इस नशे को, चखने की गहरी तलब हो रही होगी…है न? स्वाभाविक ही है, पर…
‘पर’ सुनके तुम्हें ठिठकने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ये ‘पर’ टेम्परेरी है… कुछ दिनों और महीनों के लिए है. उसके बाद सारे पर, लेकिन, किंतु-परंतु को ठेंगा दिखाती हुई तुम आ ही जाओगी. हर कोई चाहता है कि तुम आओ, जल्दी से जल्दी आओ… सिवाय मेरे और तुम्हारे पिता के! असल में हम अभी तुम्हारे लिए तैयार नहीं हैं! लेकिन तुम घबराओ नहीं, तुम फिर भी आओगी क्योंकि हम एक संयुक्त भारतीय परिवार में रहते हैं. यहां परिवार से बहुत दूर रहते हुए भी इस तरह के बड़े निर्णय परिवार और रिश्तेदार मिलकर लेते हैं… हमें (जिन पर कि तुम्हें जन्म देने और पालने-पोसने की वास्तविक जिम्मेदारी है) सिर्फ उस निर्णय को मानना भर होता है!
लेकिन एक जरूरी बात बता दूं तुम्हें, वे (रिश्तेदार, खासतौर से मेरे ससुराल वाले) तुम्हारा इंतजार नहीं कर रहे…कन्फ्यूज हो गई न? समझाती हूं, ये लोग असल में बच्चा नहीं, बस ‘लड़का‘ चाहते हैं! उदास मत हो मेरी बच्ची, तुम्हारी मां और तुम्हारे पिता तुम्हें ही चाहते हैं या फिर कहूं कि तुम्हें या तुम्हारे भाई को बराबर चाहते हैं… बस तुम स्वस्थ होओ.
सच तो ये है कि मैं (हम दोनों ही) तुम्हारे डर में हैं! अच्छा इसे छोड़ो, पहले ये तो सुनो कि मुझे कैसे पता चला कि वे लोग तुम्हारे बजाए तुम्हारे भाई का जन्म चाहते हैं?
कल ही मैं अपनी सास से बात कर रही थी फोन पर तो वे बोली ‘‘जल्दी से एक पैदा कर लो, नई दुल्हन आती है तो उसकी गोद में एक बच्चा (लड़का) डालते हैं, (तुम्हारी ताई आने वाली हैं.) फिर कुछ देर में उन्होंने सीधे-सीधे कह दिया ‘‘लड़का डालते हैं गोद में. कोई छोटा तो हो घर में.’’ मुझे इतनी कुढ़न हुई कि क्या ही कहूं. …खीज गई मैं. लड़का! लड़का! लड़का! लेकिन चुप रही. तुम जरूर जानना चाहोगी कि तुम्हारी चाहत कम क्यों है? पर मैं इसका कोई संतोषजनक जवाब तुम्हें नहीं दे पाऊंगी मेरी बच्ची, मुझे ही नहीं मिला इसका कोई संतोषजनक जवाब आज तक. जबकि देख रही हूं कि लड़कियां तो ‘कामधेनु गाय‘ हैं. पर फिर भी उनकी चाहत नहीं किसी को भी.
दरअसल हमारे धर्म और धर्मग्रंथों में भी लड़के को ही ज्यादा अच्छा, श्रेष्ठ, पूजनीय और महत्वपूर्ण बताया गया है; सिर्फ उसी की इच्छा की गई है संतान के रूप में! अब तुम पूछोगी ‘धर्म और धर्म ग्रंथ क्या होता है?’ अब ये मैं साफ-साफ तुम्हें नहीं बता सकती. तुम्हारी मां कोई विद्वान या दार्शनिक नहीं है. जब तुम आओगी इस दुनिया में तो जान जाओगी कि धर्म और धर्मग्रंथ क्या बला हैं. ‘बला’ इसलिए कह रही हूं क्योंकि इन धर्मों और धर्मग्रंथों ने इस समय जीना हराम किया हुआ है पूरी दुनिया में…!
बस इतना जान लो मेरी सुग्गा, कि जैसे दुनिया में कई तरह के पंछी हैं, वेसे ही बहुत तरह के धर्म भी हैं, और सब लोग अलग-अलग धर्मों को मानते हैं. दुनिया के ज्यादातर लोग जीने के लिए किसी न किसी धर्म को मानना जरूरी समझते हैं. हर कोई इस नहीं तो उस धर्म में यकीन करता है, जैसे बिना धर्म के जीवन असंभव हो! ये भी एक नशे जैसा ही है. तुम पूछ सकती हो ‘कौन सा नशा बड़ा है मां? जीने का या धर्म का?’ कैसे-कैसे सवाल करती हो तुम, …बड़े और भयानक. हूँऽऽऽ? यूं तो जीने का नशा सबसे बड़ा है मेरी बच्ची! पर कोई-कोई धर्म का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ा लेता है, तो उसके ऊपर जिंदगी से ज्यादा धर्म हावी हो जाता है…समझी?
लेकिन एक बात तुम जान लो मेरी मिठ्ठी! कि ये धर्म का नशा होता बड़ा खतरनाक है. यूं तो हर धर्म ने यही प्रचारित किया है, कि ‘इंसान का जीवन सबसे पहले व सबसे जरूरी है’, …पर सच ये है मेरी बच्ची कि ये महाझूठ है! असल में यहां जीवन से बड़ा धर्म हो गया है!
तुम्हें पता है बेटू, कई औरतों को एक ही बार में दो, तीन या उससे भी ज्यादा बच्चे पैदा हो जाते हैं. मशहूर डांस डायरेक्टर फराह खान को एक ही बार में तीन बच्चे होने की खबर जब मैंने पढ़ी, तो ख़ुशी के इस बंपर पैकेज की कल्पना भर से मेरा खून सूख गया. मैंने मन ही मन कहा, ‘हे भगवान! मुझे इतनी ज्यादा खुशी से दूर ही रखना… ऐसी मंहगाई में एक ही बच्चा ठीक से पालना मुश्किल है. (…जारी)
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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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