‘चिंता मत करो, सब हो जायेगा !’ की तसल्ली देने वाले भाई लोगों की तादाद इन दिनों एकाएक काफी बढ़ चुकी है. जिसे देखो वो तसल्ली, भरोसा और आश्वासन जबान में लिए फिरता है. और जैसे ही कोई अपना दुःखड़ा रोना शुरू करता है, वह धड़ाधड़ उसे भरोसे की डोज देना शुरू कर देता है. ऐसा लगता है, अब लोगों ने मान लिया है कि मुंह से कुछ भी बक दो. कोई पूछने वाला नहीं. बकने में क्या जाता है. जो होगा बाद में देखा जायेगा.
तसल्ली देने में माहिर भाई लोग मुख्यतः धर्म, व्यापार, राजनीति, अदालतों, सेवा क्षेत्रों और ऑफिसों के इर्द-गिर्द पाये जाते हैं. ये बड़े प्रतिभाशाली होते हैं. भरोसा देने में इन्हें महारत हासिल होती है. आप किसी काम के लिए परेशान हैं और आप को लगता है कि उसका होना अब आपके बस में नहीं है. तभी आप इनसे मिलते हैं तो ये कुछ ऐसे अंदाज में काम के मामूली होने और चुटकियों में हल करने का भरोसा दिलाते है कि आप खुशी से झूम उठते हैं.
सोचिये, जब कहीं से कोई सूरत नहीं दिख रही हो और एक आदमी आपको भरोसा दिला रहा हो कि आप का काम हो जायेगा तो ऐसे भरोसे पर कौन न मर-मिटे. लोग इनकी तसल्ली और भरोसे पर फिदा रहते हैं. समय बीतता जाता है. काम भले ही वर्षों तक न हो. भाई साहब पूरी विश्वसनीयता से आज, कल, अगले महीने, अगले साल की तसल्ली दिए जाते हैं. तसल्ली कोई कम बड़ी चीज है. कम से कम काम के नहीं होने और मन को लगाये रखने के लिए तो ठीक ही है.
कुछ लोगों को लगता है, उनके जीवन में प्रभु की कृपा नहीं हो रही. सुख को उनके करीब होना चाहिए. मगर वह उनसे दूरी बनाये हुए है. उनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई तथा नौकरी में जिस तरह से कामयाब होना चाहिए, नहीं हो रहे. प्रभु नाराज हैं. उन्हें प्रसन्न होने चाहिए. हाथ की लकीरें गलत दिशा को मुड़ रही हैं. उन्हें सही दिशा को जाना चाहिए. जैसे ही वे अपने कष्ट अपने शुभचिंतकों को सुनाते हैं. वे उन्हें ईश्वर से लाइजनिंग कर लोगों के जीवन में खुशी बिखेरने वाले महात्माओं की लिस्ट थमा देते हैं. महात्मा के पास जाते ही वे उन्हें आश्वस्त करते हैं-“बिलकुल चिंता मत करो. आप सही जगह आये हो. सब ठीक हो जाएगा. हमें पता है. कृपा कहाँ पर रुकी हुई है. ” इन महानुभाव का जीवन तो जैसा होना था, वैसा ही रहता है. बल्कि कई बार तो और भी बदतर हो जाता है. मगर इनकी वजह से महात्माओं के जीवन में सुख और कृपा की कोई कमी नहीं रह जाती.
अब राजनीति वाले भाई साहब को लीजिए ये भूमिहीनों के पास जाते हैं तो उन्हें भरोसा दिलाते हैं-“सत्ता में आते ही तुम्हें जमीन दिलवाएंगे !” सोचिये भूमिहीन के लिए यह कोई मामूली तसल्ली है कि एकदिन उसके पास अपनी जमीन का टुकड़ा होगा. दूसरे भाई साहब गरीबों के पास जाते हैं तो उनसे कहते हैं-“हम गरीबी खत्म कर देंगे. देश का सारा धन या तो विदेशों में जमा है या भ्रष्ट लोगों के पास है. हम विदेशों से अपने देश का पैसा लायेंगे और भ्रष्टाचारियों का पैसा जब्त करेंगे और उसे गरीबों के बीच बांट देंगे !” अब सोचिये गरीब के लिए यह कितने कमाल की बात है कि एक दिन आयेगा, जब अमीरों द्वारा विदेशों में जमा धन देश में आयेगा और भ्रष्टाचारियों का पैसा जब्त कर लोगों में बांट दिया जायेगा.
एक और भाई साहब बेरोजगारों के पास जाते हैं. उनसे कहते हैं, “हर साल 1 करोड़ रोजगार देंगे. कोई गरीब नहीं रह जायेगा. ” सोचिये कितना बड़ा भरोसा है. एक करोड़ बेरोजगार नहीं और एक करोड़ नौकरियां. बेरोजगार सब कुछ छोड़कर नौकरियों के सपने क्यों न देखने लग जाये.
आप दुकानदार के पास जाते हैं. वह पचास वर्ष की सेवा और अनुभव की दुहाई देता है. कहता है, हमारे वहां हर चीज ताजा और टॉप क्वालिटी की मिलती है. किसी चीज में शिकायत हो तो तुरंत वापस. आप उसकी बातों पर निहाल हो जाते हैं और जिस आटे को उन्होंने बिलकुल ताजा और आंख मूंद कर ले जाने लायक बताया होता है, जब उस पर गलती से छन्नी लगाते हो तो लपलपाते हुए कीड़े नजर आते हैं. आप सिर पकड़कर बैठ जाते हो. तय करते हो कि आइंदा उसकी दुकान छोड़कर दूसरे के वहां जाओगे. वह भी आप से ‘चिंता न करने को कहता है’ मगर उसकी दाल में भी आप को कंकड़-पत्थर इतनी खूबसूरती से घुले-मिले हुए मिलते हैं कि आप मन ही मन गाली देने के अलावा कुछ नहीं कर पाते.
अब तो यह फार्मूला निजी संबंधों में भी चलने लगा है. आप किसी दोस्तनुमा व्यक्ति से बेटी के लिए ठीक-ठाक लड़का तलाशने को कहते हैं, वे कहते हैं, चिंता मत करियेगा ऐसा रिश्ता करवाऊंगा कि आप जिंदगी भर याद रखेंगे और आप सचमुच जिंदगी भर उन्हें याद करते रह जाते हैं.
उस दिन वाशिंग मशीन खराब हुई तो मैंने भाई साहब को फोन लगाया. भाई साहब ने बड़े उत्साह और मीठी आवाज में फोन रिसीव किया. मैंने उन्हें समस्या बताई तो बोले-“सब हो जायेगा. आप बिलकुल चिंता मत करो. ”
मैंने भी यथासंभव वाणी में मिठास घोलते हुए कहा-“तुम्हारे होते हुए चिंता किस बात की है. मगर ये तो बताओ. आओगे कब ?”
“कल शाम को आता हूँ. ” उन्होंने आश्वस्त करती हुई आवाज में कहा.
“ठीक है. मैं इंतजार करूंगा. ” मैंने कहा.
शाम हुई. उसे होना ही था. मैं इंतजार करता रहा. मुझे करना ही था. मगर भाई साहब नहीं आये. मैंने फोन लगाया-“भाई साहब, सब कुछ छोड़कर आपका इंतजार कर रहा हूँ. कहाँ हो ?”
उधर से आवाज आई-“आप चिंता मत करो. आपकी ओर को निकल गया हूँ. थोड़ा देर में पहुंचता हूँ. ”
‘थोड़ा देर मतलब कितने बजे ?’ मैं पूछने ही वाला था कि उन्होंने फोन काट दिया.
तब से एक हफ्ता बीत गया और भाई साहब की थोड़ी देर पूरा होने का नाम नहीं ले रही. भाई साहब को फोन लगाओ तो घण्टी जाते ही काट देते हैं. हारकर दूसरे फोन से किया तो पकड़ में आये. इससे पहले कि शिकायत करता. बताने लगे कि कैसे भयंकर बीमार पड़ गए थे. आने को पूछा तो अगले ही दिन आने का प्रोग्राम दे दिया. इस तरह की लुका-छिपी के कोई तीन हफ्ते बाद भाई साहब जब घर आते हैं तो आप खुशी से रुंआसे होकर कभी उनको तो कभी अपनी वाशिंग मशीन को देखते हैं. वह मशीन को ठीक करने के बाद जितने का भी बिल बताते हैं, उसे उनकी व्यस्तता के सामने मामूली समझकर उनकी सेवा में अर्पित कर देते हैं.
कुछ समय पहले तक लोग किसी काम के बारे में बात करने पर इतनी बेहयाई और हल्के तरीके से वादा नहीं करते थे. उन्हें अपने शब्दों के वजन तथा अपनी विश्वसनीयता की चिंता रहती थी. वे तरह-तरह के सवाल पूछते थे. अपनी क्षमता तथा व्यस्तता का ब्यौरा देते थे. जो होता था, वह सच की परिधि के अंदर होता था. अब जो होता है, वह किसी भी परिधि में नहीं होता. हवा में कह दिया जाता है. कहने वालों की हकीकत काम शुरू होने के बाद सामने आती है
अब सवाल उठता है कि अपने देश में हवा में सपने दिखाने वाले कामयाब क्यों हैं ? लोग इनकी गिरफ्त में क्यों आ जाते हैं ? तो इसकी वजह बड़ी सीधी है. हम आस्थावान किस्म के लोग हैं तथा चमत्कारों पर यकीन करते हैं. भले ही कहीं कोई चमत्कार न हो. मगर हमें लगता है, चमत्कार जरूर होगा. चमत्कारी लोग हमारी मानसिकता को बखूबी समझते हैं और हमें सपने दिखाते रहते हैं. हम कभी नींद से नहीं जागते. जब अति मचा चुके चमत्कारियों का भांडा फूटता है, तब जाकर हमारी आंख खुलती है और हम उन्हें गाली देने लगते हैं. मगर उसी दौरान हम किसी नए चमत्कारी के चमत्कारों की गिरफ्त में होते हैं. तसल्ली, उम्मीद और चमत्कारों में हमें मजा जो आता है.
दिनेश कर्नाटक
भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत दिनेश कर्नाटक चर्चित युवा साहित्यकार हैं. रानीबाग में रहने वाले दिनेश की कुछ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. ‘शैक्षिक दख़ल’ पत्रिका की सम्पादकीय टीम का हिस्सा हैं.
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अच्छी बात कही आपने... कि वादे करो तो पूरा भी करो...
लेख पढ़ते वक्त कभी कभी ऐसा लगा कि मोदी जी की बात हो रही है... दरअसल मुझे लगता है कि हर नेता का एक चरित्र वादे करने का भी होता है...ये लोक लुभावन राजनीति का एक हिस्सा है... और अनेक बार बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाता है... फिर भी वादों पर खरा उतरना ही चाहिए...
और एक बात...कि आशा और भरोसे पर ही जीवन टिका है... ऐसा मेरा विश्वास है...।
अब आदमी कुछ दे या न दे आश्वासन की घुट्टी जरूर दे देगा