समाज

हल्द्वानी के सिनेमाघरों का इतिहास

नगर से महानगर हो चुके हल्द्वानी ने अपने आसपास के गांवों को भी अपने में सम्मिलित कर लिया है. मुखानी क्षेत्र में पर्वतीय रामलीला कुछ दिनों तक आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी जो अब बंद हो चुकी है. शहर के मोहल्लों व गांवों में अब यह परंपरा विस्तार पा चुकी है.
(Cinema House History Haldwani)

हल्द्वानी नगर में रामलीला, रासलीला, नौटंकी या कठपुतलियों के खेल, होली, दिवाली, जन्माष्टमी, गुरुपुरब, ईद मिलन के अलावा विभिन्न लोगों के सामूहिक रूप से आयोजन की समृद्ध परंपरा तो थी ही. वहीं मनोरंजन के साधनों में नाहिद वह दिलरुबा टॉकीज में परिवार के साथ फिल्म देखना भी शामिल था. जनसंख्या में वृद्धि के साथ आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हो जाने तथा टेलीविजन के जीवन में प्रवेश के कारण सिनेमा हालों की स्थिति कमजोर हो गई है. आजादी से पहले रेलवे बाजार में नाहिद सिनेमा हाल था.

बताया जाता है कि सन 1935 में भवाली के पास 5-6 लोगों ने कोरोनेशन सिनेमा हॉल की स्थापना की थी. जिसे बाद में नाहिद सिनेमा कहा जाने लगा. सिनेमा हॉल वाली बिल्डिंग अल्ताफ हुसैन की थी. पीलीभीत के अल्ताफ हुसैन की बिल्डिंग में सिनेमा हॉल को रामपुर के नवाब मुकसुफल जफर अली खान चलाया करते थे. आपसी विवाद के चलते न्यायालय ने इस भवन को तीन हिस्सों में नीलामी का आदेश दिया. नीलामी में गोकुल चंद अग्रवाल और राजकुमार सेठ ने इसे खरीद लिया, लेकिन इस बिल्डिंग पर नवाब साहब कब्ज़ा रहा. खेमचंद अग्रवाल ने इसे लाला जी से खरीदा और नवाब से कब्जा भी छुड़ाया.

इसी के समकक्ष कच्चा सिनेमा हॉल रामपुर रोड में दिलरुबा टॉकीज के नाम से चला करता था. लाला बालमुकुंद की बिल्डिंग में शेख साहब इस टॉकीज को किराए पर चलाया करते थे. सन 1952 में खेमचंद ने सिनेमा हॉल को लक्ष्मी नाम से चलाना शुरु किया.
(Cinema House History Haldwani)

सन 1959 में जब इस कच्चे सिनेमाघर को तोड़कर पक्का सिनेमा हॉल बनाने का कार्य चला तो उस समय 7 माह तक सिनेमा विष्णुपुरी मोहल्ले में टेंट लगाकर चलाया गया. सन 1960 में पक्का सिनेमा हॉल बनने के बाद लक्ष्मी का नाम ‘न्यू लक्ष्मी सिनेमा’ रख दिया गया. तब इसमें पहली फिल्म कश्मीर की कली दिखाई गई थी.

खेमचंद अग्रवाल मूल रूप से बुलंदशहर में कुटरावली के रहने वाले थे. इनके बहनोई उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास थे. खेमचंद को घूमने का काफी शौक था जिसके चलते वह एक जगह रुक नहीं पाते थे. सबसे पहले आगरा में चित्रा और ताज सिनेमा हॉल का उन्होंने संचालन किया.

आगरा के पास सादाबाद, बरेली जिले की आंवला तहसील में, दिल्ली शाहदरा में राधू पैलेस, पीलीभीत, बिलासपुर, फर्रुखाबाद, पिलखुवा, उझानी, गदरपुर में भी इन्होंने सिनेमा हॉलों का संचालन किया. नैनीताल में रॉक्सी सिनेमा हॉल का नाम बदलकर लक्ष्मी सिनेमा नाम से उन्होंने संचालित किया. वर्तमान में यहां नटराज होटल है. सिनेमा हॉल संचालन का लंबा अनुभव रखने वाले खेमचंद ने हल्द्वानी नगरी को अपनी कर्मभूमि बनाया और वर्तमान में शहर के चारों सिनेमा हॉल इनके हैं.
(Cinema House History Haldwani)

2 जनवरी 1963 को लक्ष्मी सिनेमा हॉल में रात्रि शो के दौरान राज नारायण अग्रवाल गोली लगने से घायल हो गए. 3 फरवरी 1990 को आतंकी घटना में लक्ष्मी सिनेमा हॉल में बम विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हो गई. हॉल में फिल्म दाना पानी चल रही थी.

नाहीद व लक्ष्मी सिनेमा हॉलों के बाद प्रेम सिनेमा हॉल का शुभारंभ 23 फरवरी 1972 को हुआ. जिसमें पहली फिल्म हाथी मेरे साथी लगी थी. यह जमीन 1968 में देवी दत्त छिम्वाल से खरीदी गई थी.

10 मई 1990 को रामपुर रोड में सरगम सिनेमा हॉल का शुभारंभ हुआ. मुनगली परिवार के सहयोग से शुरू किए गए इस सिनेमा हॉल में पहली फिल्म इज्जतदार दिखाई गयी. शुरुआती दौर में अठन्नी में पीछे की सीट व चवन्नी में आगे की सीटों के लिए टिकट हुआ करता था.
(Cinema House History Haldwani)

स्व. आनंद बल्लभ उप्रेती की पुस्तक हल्द्वानी- स्मृतियों के झरोखे से के आधार पर

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