पहाड़ों में ज्यादा मात्रा में अनाज को भकार में रखा जाता. तुन, चीड़ और देवदार के तख्तों या पटलों से भकार बनाये जाते. इसमें कई खाने बना दिये जाते और हर खाने में अनाज की अलग-अलग किस्म रख कर लकड़ी के बने ढक्कन से बंद कर देते. Bhakar Traditional Storage Box in Uttarakhand
लकड़ी को सफेदा, बिरोजा, तारपीन के तेल के बने पेंट से पोत दिया जाता. लकड़ी को सुरक्षित रखने के लिए चीड़ के लीसे में तेल मिला कर भी पोता जाता.
छह तख्तों या पटेलों से बना भकार छः पटेलिया भकार कहा जाता. इसके बीचों-बीच तख्ते की बाड़ लगा एक ओर अनाज तो दूसरी ओर दन्याली – दूध , दही, घी रख देते. इसे धड्याव या ढढयाओ कहते.
खास बात यह कि इसे लकड़ी की बनी कीलों से ही ठोका जाता. लोहे का कोई सामान उपयोग में नहीं लाते. अनाज को सुरक्षित रखने के लिए गोबर के कंडो जिन्हें गुपटोल कहते हैं, की राख भी डाल दी जाती.
थारू और बोक्सा जनजाति द्वारा अनाज रखने के लिए बांस निंगाल से कुट्टे बनाये जाते जो गोबर मिट्टी से लीपे जाते. दालों पर सरसों का तेल चुपड़ दिया जाता जिससे उनमें छेद करने वाले कीड़े न घुस पाएं. थोडा बहुत अन्न, दाल, मिर्च -मसाले मिट्टी गोबर से लीपे हुए काठ-लकड़ी के बक्सों में रखे जाते. संदूक, पिटार या पिटारी कहे जाते.
ऐसे ही बड़ी कंडी को डवक और डोकको कहा जाता. जानवरों के लिए सूखे पत्ते जमा करने की काफ़ी बड़ी कंडी पतेलिया डवक कहलाती.
गगरी व फॉँण्लै जो पीतल तथा ताँबे से बने होते, जब पिचक जाने टूट जाने पर पानी सारने के काम में नहीं आते तब इनका उपयोग भी चीज-बस्त रखने में किया जाता. भरने के बाद इनका मुंह भी पत्थर या लकड़ी के फट्टे से ढाप दिया जाता. फटे पुराने कपड़ों या लुनतूरों का बूजा भी लगा दिया जाता. कनस्तर, कंटर भी ढक्कन बना कर काम में लाये जाते. Bhakar Traditional Storage Box in Uttarakhand
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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