कॉलम

प्रसिद्ध कथाकार डॉ. पानू खोलिया को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार डॉ. पानू खोलिया का कल 01 जनवरी 2020 को लम्बी बीमारी के बाद हल्द्वानी के मल्ली बमौरी स्थित आवास पर 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. कल ही उनकी अन्त्येष्टी रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर कर दी गई. वे गत वर्ष दीपावली के बाद से ही अस्वस्थ चल रहे थे. (Story writer Panu Kholiya)

कुमाऊँ ने हिन्दी साहित्य संसार को अनेक प्रसिद्ध लेखक, कवि, कथाकार दिए हैं. जिनमें से एक नाम प्रसिद्ध नाम पानू खोलिया का भी था. हिन्दी कथा संसार में पानू खोलिया की अपनी एक अलग जगह रही है. वे अलग मिजाज के कथाकार रहे हैं. उनकी कहानियॉ हिन्दी के लगभग सभी सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. पानू खोलिया हिन्दी कथा साहित्य के किसी खेमे से नहीं जुड़े रहे. शायद यही कारण रहा कि उन्हें जो सम्मान हिन्दी कथाकार के तौर पर मिलना चाहिए था वह नहीं मिला. उनकी लगभग पचास कहानियॉ हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिकाओं धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी, आजकल, मधुमति, मंगलदीप, सारिका, उत्कर्ष, रविवार, ज्ञानोदय, वातायन, नई कहानियां, योजना, अलकनंदा, माध्यम, नई सदी, माया, विकल्प, हिमप्रस्थ, त्रिपथगा, सैनिक समाचार, मध्य प्रदेश संदेश, परिकथा आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई. पानू खोलिया के तीन कहानी संग्रह और दो उपन्यास प्रकाशित हुए.

हिन्दी कथा साहित्य को अपनी बेजोड़ कहानियां देने वाले पानू खेलिया का जन्म 13 जून 1939 को अल्मोड़ा के निकटवर्ती गांव देवली में हुआ. उनकी मॉ का नाम कौशल्या देवी और पिता का नाम देव सिंह पानू था. वे एक भाई व चार बहनों में सबसे बड़े थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गॉव में ही हुई. उन्होंने अल्मोड़ा इंटर कॉलेज से 1952 में हाई स्कूल व 1954 में इंटर किया. इसके बाद उन्होंने देवीलाल साह डिग्री कॉलेज अल्मोड़ा से 1956 में बीए और 1957 में बीटी की शिक्षा प्राप्त की. यह कॉलेज वर्तमान में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सोबन सिंह जीना परिसर के नाम से जाना जाता है. उसके बाद उन्होंने 1958 से 1959 तक देवलीखेत के हाई स्कूल में अध्यापन का कार्य किया. बाद में उन्होंने अध्यापन छोड़कर अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज में एमए ( हिन्दी ) में प्रवेश लिया और 1961 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया. इसके बाद उन्होंने “हिन्दी कहानी में वस्तुपरकता” शीर्षक से 1976 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.

फोटो: आधारशिला से साभार

इसके बाद उन्होंने कई जगहों पर अध्यापन के अलावा और कई दूसरी नौकरियां की. इसके बाद राजस्थान लोक सेवा आयोग से चयनित होने पर 10 सितम्बर 1962 को उन्होंने सेठ बॉगड़ राजकीय महाविद्यालय डीडवाना (राजस्थान) में हिन्दी प्रवक्ता के रुप में अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया. इसके बाद अगस्त 1991 में डॉ. खोलिया की पदोन्नति हुई और वे डूँगर महाविद्यालय बीकानेर में उप प्राचार्य बने. इसके बाद वे प्राचार्य, उच्च शिक्षा विभाग में संयुक्त निदेशक रहे और जून 1997 में सेवानिवृत्त हुए. सेवानिवृत्ति के बाद वे उत्तराखण्ड वापस लौटे और हलद्वानी में रहने लगे. सेवानिवृत्ति के बाद जीवन के अंतिम समय तक वे लेखन में सक्रिय रहे.

जब वे मात्र 19 साल के थे तो उनका विवाह अल्मोड़ा के खत़्याड़ी निवासी लाल सिंह की पुत्री पद्मा से हो गया. जिनकी उनकी चार पुत्रियां अलका, मीनल, ऋचा और शिप्रा पैदा हुई. इस बीच 10 फरवरी 1981 को बडियार बिष्ट निवासी करम सिंह बिष्ट की पुत्री लीला से उन्होंने दूसरा विवाह किया. जो अध्यापन से जुड़ी थी. लीला से उनका एक पुत्र गौरव हुआ. श्रीमती लीला पानू प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत्त हुई. वर्तमान में डॉ. पानू खोलिया हल्द्वानी में अपनी पहली पत्नी श्रीमती पद्मा पानू के साथ रह रहे थे.

डॉ. पानू खोलिया अपने लेखन की प्रेरणा प्रसिद्ध कहानीकार शैलेश मटियानी को मानते थे. उनकी चर्चित कहानियों में ऊँघ, दसवें महीने, पनचक्की, पेड़, एकलहा, दंडनायक, आदमकद शीशा, तुम्हारे बच्चे, रोशनी वाला छेद शामिल हैं. उनका पहला कहानी संग्रह 1981 में ” अन्ना ” नाम से प्रकाशित हुआ. इसमें कुल 12 कहानियां संग्रहित हैं. दूसरा कहानी संग्रह ‘दंडनायक’ 1986 में, तीसरा कहानी संग्रह ‘एक किरती और’ 1988 में प्रकाशित हुआ. उनके दो उपन्यास ‘सत्तर पार के शिखर’ 1978 में और ‘टूटे हुए सूर्य बिम्ब’ 1980 में प्रकाशित हुए.

प्रसिद्ध उपन्यासकार व कथाकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही ने उन्हें एक विलक्षण कथाकार बताते हुए कहा कि उनकी कहानियों में पहाड़ के लोकजीवन का दर्द दिखायी देता है. आधारशिला पत्रिका के सम्पादक दिवाकर भट्ट ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका रचना संसार अपने आप में अलग तरह का था. इसी को देखते हुए दो साल पहले 2018 में ‘आधारशिला’ का ‘पानू खोलिया का कथा संसार’ नाम से विशेषांक प्रकाशित किया गया था. जो बेहद चर्चा में रहा.

हिन्दी कथा संसार के प्रसिद्ध कथाकार डॉ. पानू खोलिया को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!

बम्बइया पिक्चर की कहानी, दिल्ली की थकान और कुमाऊं का लोकगीत: देवेन मेवाड़ी की स्मृति में शैलेश मटियानी

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

View Comments

Recent Posts

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

2 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

1 day ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

1 day ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

6 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

2 weeks ago