उत्तराखण्ड के (Uttarakhand) बागेश्वर (Bageshwar) में लगने वाला उत्तरायणी (Uttarayani) का मेला ऐतिहासिक महत्व रखता है.
पुराने समय में यह मूलतः व्यापार आधारित था. दूर दराज से लोग खरीदारी करने यहाँ आते थे. तिब्बत से व्यापार करने वाले शौका व्यापारी भी यहाँ पहुँचते थे.
सरयू नदी के तट पर बसे बागेश्वर की चहल पहल इस समय देखने योग्य होती थी.
उत्तराखण्ड का लोकपर्व उत्तरायणी
पहाड़ों में रहने वाले उत्तराखण्ड निवासियों को एक समय अंग्रेजों को कुली बेगार सहन करना पड़ता था.
अंग्रेजों के इस अत्याचारी कानून के अंतर्गत यहाँ के हर नागरिक को अंग्रेज अफसर की सेवा करनी होती थी. इसके लिए धन, संपत्ति और श्रम अर्पित करना होता था.
इस कुप्रथा जो अंत करने के लिए उत्तराखण्ड में एक लंबा आन्दोलन चला. इसकी परिणति बागेश्वर में हुई थी.
कुली बेगार का अंत
1921 में यहाँ उत्तरायणी (Makar Sankranti) का मेला लगा हुआ था.
14 जनवरी 1921 के दिन बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे हुए थे. हरगोविंद पन्त, चिरंजीलाल और बद्रीदत्त पांडे जैसे जनप्रिय नेताओं की उपस्थिति थी. उनकी अगुवाई में कुली-बेगार से सम्बंधित सारे रजिस्टर और कागजात सरयू नदी में बहा दिए गए.
बागेश्वर के बागनाथ मंदिर के आँगन से शुरू हुआ जयघोष पहाड़ की जनता की विजय में जा कर समाप्त हुआ.
यहीं से देश की आज़ादी के संग्राम में उत्तराखण्ड के योगदान को नई राह मिली. महात्मा गांधी ने भी इस कृत्य को सराहा था.
कुली बेगार का अंत किया गया था बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में
उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों में आज भी मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन उत्तरायणी (Uttarayani) का मेला लगता है.
इस मेले में जनता की भागीदारी के अलावा लोक कलाकारों का मजमा भी जुटता है.
हमारे साथी जयमित्र सिंह बिष्ट द्वारा खींची गईं बागेश्वर के इस मेले की कुछ नयनाभिराम छवियाँ देखिये.
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…