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अल्मोड़ा: एक लाइव रोमांस

जिंदगी में प्यार का कोई कारण नहीं होता. प्यार कभी भी, किसी से भी हो सकता है. यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर अग्रमस्तिष्क और अवचेतन का कोई नियंत्रण नहीं होता. यह कहीं और से ड्राइव होता है. अल्मोड़े में कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ. (Almora a Live Romance)

दूर-दूर तक मझोले कद के पहाड़ियों और पहाड़ों से घिरा यह शहर मान्यता के अनुसार तीन देवियों की निगहबानी में है – स्याही देवी, बानड़ी देवी, कसार देवी. यहा के अल्प प्रवास में इन देवियों का इतिहास भले ही नहीं पता चल पाया हो परंतु इनकी चौबीस घंटे की निगहबानी का प्रभाव शहर में जरूर महसूस किया है. (Almora a Live Romance)

इसके साथ महसूस किया है उस ताप को, उस ऊर्जा को जो इस शहर की रग रग में से फूटती है. आपको अपने आगोश में लेती है और दूर दुनिया के किसी फंतासीलोक की सैर कराकर अपने रोमांस की गिरफ्त में ले लेती है.

यह शहर और यहां के बाशिंदे,यहां के जंगल, मोहल्ले, गली, कूचे, सब अपने आप में एक कविता हैं या प्रेम की किसी लम्बी कविता के अंश. यह सब किसी दूर पहाड़ी पर बैठे चरवाहे की बंसी की धुन पर नाचती कविता की तरह है जिसके शब्दों के, स्वरों के धुनों के, कोई मायने नहीं होते. इनके मायने खोजना भी एक अवैध प्रयास होता है. यह शहर कानों से सुना नहीं जा सकता, आंखों से देखा नहीं जा सकता, इस शहर को, यहां की शहरीअत को, यहां की ऊर्जा को, यहां के काव्यात्मक स्वाद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है.

अल्मोड़े की व्याख्या नहीं हो सकती है. यहां की सभ्यता, तहजीब, गलियां, इमारतें, विचार, जीवन शैली सब में एक खास महीन ठसक है. एक अल्मोड़िया ठसक. इसे समझने के लिए मुक्त होना, उन्मुक्त होना अनिवार्य होता है. तभी समझ में आता है अल्मोड़ा.

अल्मोड़ा के फालतू साहब और उनका पीपीपी प्लान

शहर के प्रभाव को अपने आप पर धीरे-धीरे पड़ता देखा है. धीरे-धीरे महसूस किया है कि कुछ है जो जाने अनजाने में खींच रहा है, बुला रहा है, आवाज दे रहा है, जैसे शायद कोई परिंदा दुनिया के कई महाद्वीपों की यात्रा करके, सर्दियों में अपने घर आया हो.

चारों तरफ फैले देवदार के पेड़, उनकी पत्तियों से छन छन कर आती धूप, एक नए अस्तित्वलोक का सृजन करती है, जो एकदम विनम्र है, एकदम शांत है, प्राकृत है, निरावृत है. यह सिर्फ अनुभव हो सकता है. यह न कहा जा सकता है न सुना जा सकता है. न ही इसकी व्याख्या हो सकती है. यह सिर्फ महसूस किया जा सकता है.

कभी कभी अनगढ़, अतुकांत कविता लगने वाला यह शहर, अक्सर देर में समझ में आता है. यहां शब्दों के मायने अलग होते हैं. अल्मोड़ा शब्दों में, उनकी शब्दिता में, उनके प्रभाव में, उनके संप्रेषण में, कम विश्वास रखता है. यह भाव भाषा, शारीरिक भाषा, मानसिक भाषा, वाला शहर है. यहां शब्द संदेश संप्रेषण में पीछे रह जाते है.

अल्मोड़े के पान और पान वाले

शहरों में बसे मोहल्ले, मोहल्ले में बसे घर, घरों में रहने वाले लोग सब के सब किसी अज्ञात रोमांस का हिस्सा हैं.

संस्कृति, इतिहास, भाषा, कला, कविता, गद्य, विचार, उन्मुक्तता, सब अल्मोड़ा के स्व की अभिव्यक्ति का अंश मात्र है. जो प्रकट है वो आंखों से दिखता नहीं है, और जो दिखता है वह प्रकट नहीं होता. किसी भी अनजान व्यक्ति को यह शहर पहले पहल हल्का तिलिस्मी जान पड़ता है. पर ऐसा है नहीं अल्मोड़े को, यहां के प्रभाव को, यहां के महत्व को समझने के लिए यहां आना पड़ेगा, यहां शांत होकर किसी देवदार के किनारे बैठना पड़ेगा. अंदर से, बाहर से मौन होना पड़ेगा फिर जो सुनाई देगा वह होगा उस वीणा के स्वरों का अनुवाद जिसे स्वर्ग लोक के किसी कलाकार ने जमीन पर उतर कर, देवदार के पेड़ को काटकर बनाया था. जिसे अज्ञेय जी ने असाध्य वीणा का नाम दिया होगा. (Almora a Live Romance)

यह अपने आप में एक उच्चतम श्रेणी का रोमांस है. यह इतना साफ, महीना और पवित्र है कि रोमांस और अध्यात्म के बीच का पर्दा हटता सा दिखता है. पर जरूरी है कि अल्मोड़ा के ऊपर यह पर्दा पड़ा रहे नहीं तो आप यहां से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे.

अल्मोड़े का हरिया पेले

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विवेक सौनकिया युवा लेखक हैं, सरकारी नौकरी करते हैं और फिलहाल कुमाऊँ के बागेश्वर नगर में तैनात हैं. विवेक इसके पहले अल्मोड़ा में थे. अल्मोड़ा शहर और उसकी अल्मोड़िया चाल का ऐसा महात्म्य बताया गया है कि वहां जाने वाले हर दिल-दिमाग वाले इंसान पर उसकी रगड़ के निशान पड़ना लाजिमी है. विवेक पर पड़े ये निशान रगड़ से कुछ ज़्यादा गिने जाने चाहिए क्योंकि अल्मोड़ा में कुछ ही माह रहकर वे तकरीबन अल्मोड़िया हो गए हैं. वे अपने अल्मोड़ा-मेमोयर्स लिख रहे हैं

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  • बहुत सुंदर
    कभी कन्हैयालाल नंदलाल बाल मिठाई वालों के बारे में कुछ लिखें।

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