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उत्तराखंड में शराब सस्ती करने का फैसला सरकार को पड़ेगा मंहगा !

उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने पिछले साल आबकारी नीति के नाम पर एक तानाशाही वाला फैसला लिया था. उसे तब राजस्व में बढ़ोतरी करने का इससे बढ़िया विकल्प नहीं दिखाई दिया. Alcohol Price Decreased in Uttarakhand

इसका नतीजा यह हुआ कि जो शराब माफिया राजनीतिक संरक्षण से अपनी दुकानें चला रहे थे. उन्होंने अपने इन आकाओं को ही सबक सिखा दिया. उन्होंने शराब की टेंडर प्रकिया (नीलामी) में शराब की 139 दुकानें खरीदी ही नहीं, जिससे सरकार की टेंडर प्रक्रिया विफल हो गई.

सरकार को वित्तीय वर्ष 2019-20 में वह भारी-भरकम राजस्व हासिल नहीं हुआ जिसकी उसे अपेक्षा थी. सरकार के सामने इस बजट में बढ़ा राजस्व हासिल करना तो दूर राजस्व नुकसान की भरपाई तक नहीं कर पाई. इस कारण से शराब कारोबारी तो इससे खूब पनपे लेकिन सरकार ठन-ठन गोपाल हो गई.

अब सरकार की मुश्किलें कम नहीं हो रही थी तो उसने व्यावहारिक रास्ता अपनाते हुए पुराने लॉटरी सिस्टम को लागू करने का ऐलान कर दिया. हालांकि अपने चेहतों के लिए उसने और भी विकल्प रखे हैं.

जैसे 15 फीसदी अधिक राजस्व पर सरकार से दुकान खरीदना. इसका फायदा बड़े शराब कारोबारी उठाएंगे, खासकर वो जो सरकार के नजदीकी हैं. सरकार, नई आबकारी नीति को लेकर बुरी तरह घिर गई है.

विपक्ष इसे मुद्दा बना रहा है, जबकि आज जो हालात हैं उसकी जिम्मेदार कांग्रेस भी है. उसे भी शराब बेचकर अपना खजाना भरना आता था. जनता भी शराब के रेट घटाने के टी.एस.आर. सरकार के फैसले से नाराज हैं, इसकी वजह उसे बजट की ज्यादा जानकारी नहीं हैं. खासकर गाम्रीण क्षेत्र की महिलाएं क्योंकि उनके परिवार शराब की वजह से बर्बाद हो चुके हैं. लेकिन सरकार के सामने नई आबकरी नीति में शराब के रेट कम करना उसकी मज़बूरी थी.

पहाड़ में शराब की दूसरे राज्यों से बड़ी मात्रा में काला बाजारी और ओवररेट ने सरकार के सामने चुनौतियाँ खड़ी कर रखी थी. ऐसे में उसके पास शराब के रेट अन्य पड़ोसी राज्यों के बराबर या कम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व हासिल करना था तो उसने सारी आलोचनाओं की परवाह किए बिना ये फैसला लिया. हालांकि शराब माफियाओं का जैसा सिंडीकेट काम कर रहा है, उसे देखते हुए ये नई नीति धरातल पर कितनी कारगर होगी देखना होगा. Alcohol Price Decreased in Uttarakhand

इससे बड़ा सवाल ये है कि क्या अगले साल चुनाव से पहले सरकार क्या फिर कोई नई आबकारी नीति लाएगी या फिर इसे ही लागू करेगी.

विविध विषयों पर लिखने वाले हेमराज सिंह चौहान पत्रकार हैं और अल्मोड़ा में रहते हैं.

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