“कवि हैं, अच्छे वाले?”
“बहिनी कौन सा, नया, कि पुराना?”
“भैया पिछली बार पुराने कवि ले गई थी, सब मीठे निकल गए. इस बार नया दो.”
“कितना तौलूँ?”
“घर में छोटा सा कार्यक्रम है, बीस-पच्चीस लोगों का, कितना ठीक रहेगा?”
“ढाई-तीन किलो में हो जाएगा. ऐ सलमा बिटिया, दीदी के लय ढाई किलो कबि तौल दे नई वाली डलिया से.”
“भैया छोटे-छोटे क्यों रखवा रहे हो, बड़े-बड़े रखवाओ.”
“बहिनी, बड़े-बड़े तो इक-दो पीस चढ़ेंगे. छोटे-छोटे लिहो तो सबके हिस्सा मा एक-आध कबि आजइये.”
“अच्छा शायर भी चाहिये थोड़े से, हैं क्या?”
“सायर तो ढेर हय. क्या करना है, भुर्ता बनाना है या कटमा.”
“कुछ भुर्ते के हिसाब से दे दीजिये, कुछ काट के पका लूँगी.”
“सलमा, दीदी के लय दो किलो बड़ा सायर और एक किलो छोटा तौल देओ. और दीदी?”
“कवयित्री में क्या-क्या है?”
“बहुत वैराइटी हय. किटी वाला है. मुसायरा वाला है. सोसल मिडिया है. सोसल मिडिया वाला तो पूरा नया माल आया हय लकडाउन में. एक से एक बढ़िया.”
“किटी वाला दिखाओ जरा.”
“सलमा, ऊ पीछे डलिया है न, अरे ऊ नहीं, सिफॉन वाला, हाँ उहे, दो-तीन कबितरी ला कय दिखाय दो दीदी को. और ऊ खादी वाली डलिया में न हाथ लगावय, सब माल सड़ गया है ऊका…. सोसल मिडिया भी तौल दूँ बहिनी? एकदम्मे नया माल आया है लकडाउन में. बेबीनार बहुतै बढ़िया बनता है.”
“अरे बहुत वेबिनार बन गया भैया, सब बोर हो गए, आप हर बार नया माल बता कर तौल देते हो. सोशल मीडिया में कवि हैं अच्छे?”
“अब बहिनी ऊके नाम में ही नार जुड़ा हय- बेबीनार. और बेबी भी जुड़ा हय. तो बिना नार के कइसे अच्छी बेबीनार बनी, बतावा तनिक? कबि तो सौ ग्राम ही डलै न, बाकी तो कबितरी ही मिलावा पड़ी. आधे किलो तौल दे रहे हैं. फुर्सत में बना लेव. सस्ती लगा दिहें.”
“अच्छा भैया जैसे कभी इकट्ठे ज़रूरत पड़े तो…”
“सब मिलय बहिनी, बस थोड़ा पहिले बता दो. सब मुसायरा, कबीसमेलन, सब की सप्लाई हमारे यहाँ से है. बस तीन-चार दिन पहिले बता दो कि कितना कुंटल कबि लगेगा. हम मंगा कय धर लेंगे.”
“कच्चे तो नहीं निकलेंगे न?”
“अब बहिनी अइसे तो कोई भीतर नहीं बइठा है, एक-आध, दो तो कच्चा निकलय जाता है.”
“अच्छा, आलोचक भी हैं क्या?”
“हय न. ऐ सलमा, अलूचक त निकाल के लावा तनी.”
“भैया, कड़वा नहीं होना चाहिये. पिछली बार सारे आलोचक कड़वे निकले.”
“कबि मीठा नहीं चहिये और अलूचक कड़वा नहीं. ऐसा है बहिनी, अलूचक के चीरा लगा के, नमक के पानी मे छोड़ देयो रात भर. सबेरे तक सब कड़वाहट ख़तम हुई जाई. और कुछ रिपोर्ताज, निबंध दिखाएं?
“नहीं भैया, बस पैक कर दो.”
“सलमा, दीदी का समान बांध दो. एक गुच्छा बयंगकार भी धर देना फ्री वाला.”
प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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