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राज्य सेवाओं में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर उत्तराखंड महिलाओं का एकाधिकार समाप्त

उत्तराखंड राज्य की सेवाओं में महिलाओं को मिलने वाले 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का अधिकार समाप्त हो चुका है. उच्च न्यायालय नैनीताल द्वारा जारी एक फैसले के बाद अब तक केवल उत्तराखंड की महिलाओं को मिलने वाले इस आरक्षण का लाभ राज्य के बाहर की महिलाओं को भी मिलेगा. हरियाणा की रहने वाली पवित्रा चौहान और अन्य की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया.
(30 Percent Reservation Women Stay Order)

फैसला आने के बाद से उत्तराखंड राज्य सरकार पर न्यायालय में कमजोर पैरवी के आरोप लग रहे हैं.  इस मामले में याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि राज्य द्वारा डोमिसाइल के आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान सम्मत नहीं है. याचिकाकर्ताओं का विरोध महिलाओं को दिये जाने वाले आरक्षण से नहीं बल्कि केवल उत्तराखंड की महिलाओं को आरक्षण दिये जाने से थे. न्यायालय ने इस विरोध को तर्क सम्मत मान कर उत्तराखंड सरकार द्वारा महिलाओं को दिये जा रहे 30 प्रतिशत आरक्षण को भारत की सभी महिलाओं के लिये कर दिया.   

राज्य सरकार के वकीलों की टीम अपने राज्य की महिलाओं के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह नाकाम लग रही है. यहां संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के आधार पर याचिकाकर्ता की दलील का जवाब अनुच्छेद 16(4) है जो कहता है कि

इस अनुच्छेद में मौजूद कोई भी बात राज्य को पिछड़ी श्रेणी के नागरिकों की नियुक्तियों अथवा पदों में आरक्षण का इंतजाम करने से नहीं रोक सकती, जिनके बारे में उसका मत है कि सेवाओं में उनका प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है.

अपने राज्य की महिलाओं को क्षैतिज आरक्षण देने का एक अच्छा उदाहरण असम राज्य है. असम में महिला (सेवाओं और पदों में आरक्षण) अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं के लिए राज्य की सरकारी नौकरियों, सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की नौकरियों में तीस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण मिलता है. जब असम में महिलाओं को आरक्षण मिलता है तो उत्तराखंड में कैसे निरस्त हुआ.
(30 Percent Reservation Women Stay Order)

इसका बहुत आसान जवाब है असम की सरकार ने अपने राज्य में महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के लिये कानून बनाया है जबकि उत्तराखंड की महिलाओं को मिलने वाला यह आरक्षण एक शासनादेश के आधार पर मिलता था. राज्य की महिलाओं को उत्तराखंड की राजकीय सेवाओं में क्षैतिज आरक्षण देने का मामला इसलिए भी धराशायी हो गया क्यूंकि यह 2001 और 2006 के शासनादेश पर आधारित था. सभी जानते हैं अदालत में शासनादेश कभी नहीं टिकते.

राज्य के खिलाड़ियों के बाद राज्य आंदोलनकारियों और अब राज्य महिलाओं ने भी राज्य सरकार की सेवाओं में अपना हक़ खो दिया. सरकार चाहे तो अब भी एक कानून बनाकर अपने राज्य की महिलाओं को उनका हक दिला सकती है. पर फैसले के तीन दिन बाद भी इस बात को कोई बहस न होना नाउम्मीदी को और बढ़ा रही है.
(30 Percent Reservation Women Stay Order)

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