क्या आपने कभी सोचा कि क्यों महीनों की संख्या 12 और राशियां भी 12 ही हैं! और हम अक्सर जिन संक्रांति यों का नाम सुनते हैं जैसे कर्क संक्रांति मकर संक्रांति और विषुवत संक्रांति, तो ये संक्रांतियां क्या हैं और इनका इतना अधिक क्या भौगोलिक महत्व है कि ये हमारे धार्मिक सांस्कृतिक जीवन तक में दिखाई देता है. हमारे तीज त्योहार और फसल चक्र इसी से निर्धारित होते हैं. भारत के संदर्भ में इन संक्रांतियों का कुछ ज्यादा ही प्रभाव दिखाई देता है. हमारा मानसून चक्र तक इनसे जुड़ा है जो भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रकार से जीवन रेखा भी है.
(Zodiac Signs)
आपने कभी न कभी अखबारों में छपने वाले दैनिक भविष्यफल में राशियों के बारे में पढ़ा होगा. और आपको संभवतः अपनी राशि मेष, वृषभ, मिथुन आदि पता भी होगी. खैर आपकी राशि क्या है यह यहां पर ज्यादा महत्वपूर्ण विषय नहीं है, बल्कि मुझे आकाश में स्थित राशियों में अधिक रुचि है जिसे प्राचीन समय के जिज्ञासु खगोलविदों ने आकाश को कुछ व्यवस्था में समझने के लिए अपनी कल्पना से गढ़ा था. दरअसल वे सूर्य, चंद्रमा और तारों की गति में कुछ नियमितता देखकर चकित थे.
जैसे सूरज रोज पूर्व में उदय होकर एक निश्चित पथ पर गतिकर्ता हुआ पश्चिम में अस्त हो जाता है. सूर्य के ही पदचिह्न पर उसी मार्ग पर रात्रि में चंद्रमा गमन करता दिखाई देता है. और अधिक गौर करने पर तारे जिन्हें भूलवश स्थिर समझ लिया जाता है वे भी लगातार पूर्व से पश्चिम की ओर गतिमान रहते. हां सूर्य चंद्रमा की गति अधिक तीव्र और स्पष्ट दिखाई देती है क्योंकि वे हमसे अपेक्षाकृत ज्यादा नजदीक हैं.
(Zodiac Signs)
तो सूर्य और चंद्रमा तारों की पृष्ठभूमि में लगातार एक ही पथ पर गतिमान रहते हैं, और धरती के चारों ओर यह वृत्ताकार पथ क्रान्तिवृत या जोडियेक कहलाता है. तभी राशियों को भी अंग्रेजी में जोडिएक साइन कहते हैं.
इस जोडियेक पर स्थित तारों को प्राचीन ज्योतिषियों ने कुल 27 हिस्सों में बांट दिया था जिससे कि उनमें स्थित तारों का सुविधाजनक अध्ययन किया जा सके. इन 27 हिस्सों को नक्षत्र कहा गया. जैसे आपने कुछ प्रसिद्ध नक्षत्रों के नाम सुन होंगे जैसे आर्द्रा, कृतिका, चित्रा, विशाखा, स्वाति आदि जो कि लड़कियों के बड़े सुंदर नाम भी हैं. और आपने यह भी पढ़ा होगा कि गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था.
तो ये जो नक्षत्र हैं उनमें से हर किसी के चार चरण माने गए. तो सभी नक्षत्रों के कुल मिलाकर हुए 108 चरण. नक्षत्रों को एक निश्चित क्रम में रखकर उनमें हर 9 चरण को मिलाकर एक राशि की कल्पना की गई. इसलिए 108 को 9 से भाग करने पर मिला 12. इस तरह कुल 12 राशियां चलन में आती हैं.
अब आपको प्राचीन भारतीय ज्योतिष पर गर्व भी हो रहा होगा इस खोज पर मगर वे प्राचीन ज्योतिषी भारतीय नहीं बेबिलोनी थे जिन्होंने पहले पहल राशियों की कल्पना की थी.
भारतीय समाज वैदिक काल में राशियों की परिकल्पना से वाक़िफ नहीं था, मगर उसमें कुछ नक्षत्रों का ज़िक्र जरूर है. 27 नक्षत्रों की सूची कुछ बाद के ग्रंथों मसलन तैत्तिरीय ब्राह्मण में मिलती है. मगर आज की ही तरह ज्ञान तब भी साझा किया जाता था और एक जगह से दूसरी जगह जाते यात्री, व्यापारी और विद्वान इस ज्ञान को दूसरे स्थान पर पहुंचाते थे. जैसे भारतीय अंक पद्यति आज पूरी दुनिया में गणनाओं में प्रयुक्त होती है.
(Zodiac Signs)
अब ये बारह राशियां हमें मिल गई और अवलोकन से यह मिला कि सूर्य प्रत्येक राशि के साथ एक माह तक दिखाई देता है. और पूरे वर्ष भर वह सभी राशियों में एक एक माह तक रहता है. इस अवधि को सौर मास कहते हैं. सूर्य जिस दिवस को किसी एक राशि पर प्रवेश करता है उसे संक्रांति कहते हैं. जैसे मकर संक्रांति को सूर्य मकर रेखा में प्रविष्ट होगा और कर्क संक्रांति को कर्क राशि में.
अब इन्हीं नामों से धरती पर विषुवत रेखा के क्रमशः उत्तर में 23.5 अंश पर कर्क रेखा और दक्षिण में 23.5 अंश पर मकर रेखा है. सूर्य वर्ष भर में इन्हीं दोनों के बीच गति करता है. अगर सूर्य मकर रेखा को छू कर उत्तर की ओर गतिमान हो तो उत्तरायण और कर्क तक पहुंच कर दक्षिण को गतिमान हो तो दक्षिणायन कहा जाता है.
कर्क रेखा भारत के बीचों बीच गुजरती है जिससे उत्तरायण में भारतीय उपमहाद्वीप में दिन की अवधि प्रतिदिन बढ़ती है और गर्मियों का मौसम आता है और दक्षिणायन में दिन छोटे होते जाते हैं और जाड़ों के मौसम का आगमन होता है. अब आप समझ गए होंगे कि क्यों पहाड़ी इन संक्रांतियों को इतना महत्व देते हैं.
(Zodiac Signs)
पिथौरागढ़ के रहने वाले कमलेश उप्रेती शिक्षक हैं. शिक्षण क्षेत्र की बारीक़ समझ रखने वाले कमेलश को उनके ब्लॉग कलथर में भी पढ़ा जा सकता है.
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बेबीलोनिया सभ्यता 2300 ईपू थी, इससे पहले सुमेर और सुमेर से पहले मेसोपोटामिया सभ्यता थी। रामायण काल ही आज से 7000 ईपू की है, उस काल में ही राम के जन्म तिथि में ग्रह नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है । महाभारत ग्रंथ में भी भीष्मपितामह के मरने और महाभारत युद्ध की तिथियों में ग्रह नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है। फिर यह कैसे सम्भव है कि राशियों का ज्ञान बेबीलियनों ने दिया ? लेखक अपने ज्ञान को परिमार्जित करे ।
आदरणीय उप्रेती जी ने बहुत अच्छी जानकारी दी है। उनके लिए साधुवाद।
लेकिन मै राघव जी की टिप्पणी से भी संतुष्ट व सहमत हूं।
गृह नक्षत्रों मे रूचि लेने वाले जिज्ञासु के लिहाज से प्रारंभिक जानकारी देता हुआ यह लेख अपने सफ़ल को प्राप्त करता है अब कालक्रम एवं ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि की कसौटी पर कितना सटीक है ये तो ज्ञाता ही बता सकते हैं
गृह नक्षत्रों मे रूचि लेने वाले जिज्ञासु के लिहाज से प्रारंभिक जानकारी देता हुआ यह लेख अपने सफ़ल को प्राप्त करता है अब कालक्रम एवं ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि की कसौटी पर कितना सटीक है ये तो ज्ञाता ही बता सकते हैं