Featured

आदमी ने ऐसी दुनिया बना डाली है जिसे अब वह खुद नहीं समझ सकता

मानव सभ्यता का अगला पड़ाव: ऑटोमेशन, नई नैतिकता और एक ‘वैश्विक निकम्मा वर्ग’

हमारे भविष्य की तस्वीर कैसी होगी- एक सदी नहीं बल्कि महज दो दशकों के बाद? (Yuval Harari Future of Mankind)

इजरायली इतिहासकार और ‘सेपियंस’ व ‘होमो डियूस’ जैसी चर्चित पुस्तकों के लेखक युवाल नोह हरारी की मानें तो भयावह. उनकी ये दो दुस्साहसी पुस्तकें मनुष्य के इतिहास के व्यापक चित्र उकेरती हैं और आने वाले दिनों की संभावित तस्वीर भी पेश करती हैं: अल्गोरिथम और टेक्नोलॉजी का आगामी युग जो हमारे ईश्वरीय गुणों से संपन्न “महामानव”  में बदलने का गवाह बनेगा.

‘द न्यू यॉर्क टाइम्स’ और ‘हाउ टू एकेडमी’ के आयोजन में टाइम्स के स्तम्भकार थॉमस एल. फ्रीडमैन के साथ बातचीत में हरारी भविष्य की संभावित तस्वीर उकेरते हैं. वह आगाह करते हैं कि “मनुष्य ने इतनी जटिल दुनिया निर्मित की है कि जो कुछ घट रहा है उसे समझ पाना उसके बूते के बाहर हो चला है.” पेश हैं उनके साक्षात्कार के कुछ अंश.

आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन से होगा एक ‘वैश्विक निकम्मे वर्ग’ का जन्म

जिस प्रकार कभी औद्योगिक क्रांति ने मजदूर वर्ग को जन्म दिया था, उसी प्रकार मौजूदा ऑटोमेशन एक “वैश्विक निकम्मे वर्ग” को जन्म देगा. आने वाले दशकों का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास इस नए वर्ग की आशंकाओं व उम्मीदों के इर्द-गिर्द घूमेगा. जिन विघटनकारी तकनीकों के सहारे यह प्रचंड प्रगति हासिल हुई, वह हाथ से छूटते ही विनाशकारी साबित हो सकती हैं.

प्रत्येक टेक्नोलॉजी में अच्छी और बुरी दोनों संभावनाएं निहित होती हैं. परमाणु युद्ध स्वाभाविक रूप से भयावह है. कोई इसे नहीं चाहता. सवाल यह है कि इसे रोका कैसे जाय. विघटनकारी तकनीक के साथ खतरा ज्यादा बड़ा है, क्योंकि इसमें बेमिसाल संभावनाएं भी छुपी रहती हैं. कई ताकतें इन विघटनकारी तकनीकों के विकास के लिए हमें लगातार धकेल रही हैं. पहले से यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि समुदाय के स्तर पर, लोगों के संबंधों के स्तर पर और राजनीति के स्तर पर इसके क्या परिणाम होंगे.

नई टेक्नोलॉजियां हमारे लोकतंत्र और यहां तक कि हमारे आत्मबोध को भी हर लेंगी.

बायोटेक और आईटी का गठजोड़ उस मुकाम तक पहुंच सकता है, जहां यह ऐसे सिस्टम व अल्गोरिथम तैयार कर लेंगे जो हमें उससे बेहतर समझने में कामयाब होंगे, जितना हम स्वयं को समझते हैं.

”एक बार कोई बाहरी गैर आपको उससे बेहतर समझने लगे, जितना आप ख़ुद को समझते हैं, तो उदार लोकतंत्र, जिसे हम पिछली सदी से जानते हैं, का अंत हो जाएगा.” हरारी भविष्यवाणी करते हैं.

“उदार लोकतंत्र मनुष्य की भावनाओं के भरोसे पर चलता है. यह तभी तक काम करता है जब तक आपको कोई दूसरा आपसे या आपकी मां से बेहतर न समझता हो.” आगे वह कहते हैं, “और एक बार जब ऐसी अल्गोरिथम आ गया जो आपको आपसे या आपकी मां से ज्यादा समझने लगे (और ऐसा होने वाला है), तो उदार लोकतंत्र की हैसियत कठपुतली शो जितनी रह जाएगी.” वह पूछते हैं, “क्या होगा अगर आपक दिल किसी और का जासूस बन जाए, एक डबल एजेंट जो किसी और के लिए काम करता हो, जिसे पता है कि आपकी भावनाओं के बटन कैसे दबते हैं, जिसे पता हो कि आप को किस बात पर गुस्सा आता है, कौन सी बात आपका हौसला बढ़ा देती है और कौन सी बात आपको खुशी से भर देती है ? आने वाले दिनों में हम इस तरह के ख़तरे की शुरुआत देख सकते हैं, उदाहरण के लिए चुनाव और जनमत संग्रह जैसी घटनाओं में.”

अब टेक्नोलॉजी भेदभाव का नया औज़ार बनेगी- जो समूहों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि व्यक्ति के खिलाफ काम करेगी.

बीसवीं सदी में पक्षपात पूर्ण विचारों के आधार पर समुदायों के साथ अन्याय और भेदभाव होता था. यह अन्याय लचीला था क्योंकि ये विचार सही नहीं थे और उत्पीड़ित लोग राजनितिक कार्रवाई के लिए एकजुट हो सकते थे. लेकिन आने वाले वर्षों और दशकों में हरारी कहते हैं, “हम व्यक्तिगत स्तर पर भेदभाव और अन्याय होते हुए देखेंगे और आपके साथ यह भेदभाव आपके बारे में एक सटीक मूल्यांकन के आधार पर होगा.”

अगर किसी कंपनी के लिए काम करने वाला अल्गोरिथम आपके फेसबुक प्रोफाइल या डीएनए , स्कूल दिनों को खंगाल कर या आपके पेशेवर रिकॉर्ड के आधार पर आपका मूल्यांकन करेगा तो वह आपके बारे में लगभग पक्के तौर पर जान लेगा कि आप क्या हैं. “आप इस आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को लेकर कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि इसमें ख़ास आपके मूल्यांकन को आधार बनाया गया है.” हरारी कहते हैं. “वे आपके यहूदी या समलैंगित होने की वजह से आपको उत्पीड़ित नहीं करेंगे, बल्कि जो आप सचमुच हैं उसके आधार पर करेंगे. इसमें सबसे बुरी बात यह होगी कि यह सच होगा. आपको यह मज़ाक लग रहा होगा लेकिन यह भयावह है.

समय तेज़ी से ‘भाग’ रहा है.

हमारे पूर्वजों की कारगुजारियों के अच्छे-बुरे परिणामों को हम तक पहुंचने में सदियां बल्कि कहिये तो हजारों साल लग गए. उदाहरण के लिए गेहूं की खेती की खोज कितने लम्हे अंतराल के बाद हरित क्रान्ति तक पहुंची. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.

हरारी कहते हैं, “समय अब तेज़ी से भाग रहा है.” अब लंबे समय को सदियों सा सहस्राब्दियों में नहीं गिना जाएगा- बल्कि यह 20 वर्षों के गुणकों में होगा. वह कहते हैं, “इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि हम अंदाज़ भी नहीं लगा पाएंगे कि अगले दो-एक दशक बाद ज़माना कैसा आएगा.”

“हम एक तरह से इतिहास के ऐसे अभूतपूर्व  मुकाम पर खड़े हैं कोई नहीं जानता कि आने वाले 20 या 30 साल में बुनियादी तौर पर दुनिया की तस्वीर कैसी होगी. हम न केवल भू-राजनीति को नहीं समझेंगे बल्कि यह अंदाज़ भी नहीं लगा पाएंगे कि जॉब मार्केट कैसा होगा, किस तरह के कौशलों की ज़रूरत पड़ेगी, परिवार का ढांचा किस तरह का होगा और लैंगिक सम्बन्ध क्या स्वरूप लेंगे. इसका मतलब यह कि इतिहास में पहली बार हमें ज़रा भी अंदाज़ नहीं होगा कि स्कूल में क्या पढ़ाया जाय.”

नेतागण अतीतोन्मुखी होते हैं क्योंकि उनके पास भविष्य का कोई अर्थपूर्ण विज़न नहीं होता.

नेतागण और राजनीतिक दल अब भी 20वीं सदी में अटके हुए हैं. वाम के खिलाफ दक्षिण विचारधारात्मक मोर्चा खोले हुए है. पूंजीवाद बनाम समाजवाद की लड़ाई जारी है. इन लोगों के पास कोई विश्वसनीय विचार नहीं है कि दो दशकों के बाद जॉब मार्किट की दशा क्या होने वाली है. हरारी कहते हैं, “क्योंकि ये लोग देख नहीं सकते.”

“2110 में इंसान कहां खड़ा होगा, इस सवाल पर अर्थपूर्ण विज़न विकसित करने के बजाय ये अतीत की कपोल कल्पनाओं  को नई बोतल में परोसते रहते हैं.” वह कहते हैं. “और इनके बीच में एक तरह की प्रतियोगिता चलती रहती है: कौन ज्याद पीछे जा सकता है. ट्रंप 1950 के दशक में जाना चाहते हैं; पूतिन मूलतः ज़ार साम्राज्य के दौर में पहुंचना चाहते हैं. और आपके सामने इस्लामिक स्टेट वाले भी हैं जिनकी आंखों में 17वीं सदी के अरब के ख़्वाब तैर रहे हैं. इधर इजराइल हैं- जिन्होंने सभी को पीछे छोड़ दिया है. उन्हें 2,500  साल पीछे बाइबिल के ज़माने में जाना है ताकि जीत हासिल कर सकें. हम इजराइल वालों की पश्च दृष्टि सबसे लम्बी है.”

“पहले से कोई तयशुदा इतिहास नहीं है.”

“आज हम अपरिहार्यता की अंतिम कहानी की निरर्थकता के साथ जी रहे हैं.” वह कहते हैं. 1990 दशक के वषों में यह विचार भी काल के गाल में समा गया कि इतिहास का अंत हो गया है, कि 20वीं सदी के महा वैचारिक युद्ध में उदार लोकतंत्र और मुक्त-बाज़ार पूंजीवाद की विजय हुई.

यह विश्लेषण अब अति-सरलीकृत लगता है. “आज हम जिस मुकाम पर हैं, वह चरम मोहभंग और विभ्रम का है, क्योंकि हमें ज़रा सा भी अंदाज़ नहीं कि चीज़ें आगे कहां की ओर जाने वाली हैं. ऐसे में बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हम भविष्य के ढलान के प्रति और नई टेक्नोलॉजी के खतरनाक परिदृश्य के प्रति सजग रहें. कारपोरेशन, इंजीनियर और प्रयोगशालाओं में बैठे लोग जाहिर तौर पर इन टेक्नोलॉजियों के संभावित बेहिसाब फ़ायदों पर अपनी नज़रें गड़ाए हैं और यह इतिहासकारों, दार्शनिकों और समाज विज्ञानियों की ज़िम्मेदारी है कि उन सब रास्तों की बारे में विचार करें जो ग़लत दिशा की ओर जाते हैं.”

एक जटिल, अंतरसम्बंधित दुनिया में नैतिकता को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत है.

“अच्छे कर्म करो, इतने भर से अच्छे मूल्य पैदा नहीं होने वाले हैं.” हरारी कहते हैं, “आपको कार्य-कारण की समूची शृंखला को समझना पड़ेगा.”

उदाहरण के लिए चोरी आज की दुनिया में बेहद जटिल मसला चीज़ हो गया है. हरारी कहते हैं कि बाइबिल काल में अगर आप चोरी कर रहे होते, तो आप अपनी करतूतों और पीड़ित पर होने वाले उसके परिणाम के प्रति भी सचेत होते. लेकिन आज चोरी एक मुनाफे के लिए किए गए निवेश से भी हो सकती है- यहां तक कि अनजाने में भी- एक बेहद फायदेमंद लेकिन अनैतिक कॉर्पोरेशन जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है और वह मुकदमों व क़ानूनों से  ख़ुद को बचाने के लिए वकीलों व दलालों की पूरी की पूरी फौज उतार देता है.

“क्या मैं एक नदी को चुराने का गुनाहगार हूं?” अपने उदाहरण को ज़ारी रखते हुए हरारी पूछते हैं. “अगर में सचेत भी रहूं, मुझे नहीं पता कि कॉर्पोरेशन किस तरह से पैसा बनाते हैं. मुझे इस बात का पता लगाने में महीनों और यहां तक कि सालों लग सकते हैं कि मेरा पैसा क्या कर रहा है. और जिस वक़्त मैं इतने सारे गुनाहों के लिए ज़िम्मेदार रहा होऊंगा, उनके बारे में मुझे कुछ पता नहीं होगा.”

वह कहते हैं, समस्या दुनिया में “कार्य और कारण की बेहद जटिल शृंखला” को समझने की है. “मुझे डर है कि होमो सेपियंस इन चीज़ों के लिए नहीं बने हैं. हमने ऐसे जटिल दुनिया की रचना कर दी है जिसमें अब हम समझ ही नहीं पा रहे हैं कि चल क्या रहा है.”

न्यू यॉर्क टाइम्स से साभार.

अनुवाद: आशुतोष उपाध्याय

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago