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हिमालय की समस्याओं व धारक क्षमता की कसौटी में मसूरी सम्मेलन

मिरतोला आश्रम (पनुआनौला) में ऑस्ट्रेलिया से आ बसे अर्थशास्त्र के मनीषि, योजना आयोग के सदस्य, कृष्ण भक्त स्वामी माधवाशीष ने 90 के दशक में डॉक्टर जैक्सन के साथ धारक क्षमता (कैरीइंग कैपिसिटी) के विचार को हिमालयी अर्थतंत्र के लिए प्रासंगिक व व्यावहारिक ठहराया था. पंतनगर विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री अल्मोड़ा वासी सरल- सौम्य- सज्जन डॉक्टर शंकर लाल शाह ने अपनी स्टडीज से इस विचार का अनुभवसिद्ध अवलोकन किया. उनका निष्कर्ष था कि ग्रामीण क्षेत्र में अवलंब क्षेत्र (सपोर्ट एरिया)  के सिकुड़ने से हिमालय के जल- जमीन और जंगल पर विपरीत व विनाशकारी प्रभाव पड़ने आरंभ हो गए हैं. अब ग्रामीण अर्थाव्वास्थाएं प्रकृतिदत्त संसाधनों की बर्बादी से ग्रस्त हो रही है. प्रकृति के कोप उफ़न रहे हैं. नए पनपते कस्बे व शहर उचित नियोजन के अभाव व प्रवास से पैदा ऐसे दुष्चक्रों से घिर रही हैं जिनका खामियाजा अंततः आम आदमी को भोगना है. गांव में उत्पादन सिकुड़ रहा है.परंपरागत शिल्प चौपट हो रहा है. शहरों में अकुशल  श्रमिकों की फौज जमा है. कमाने के चक्कर में उसका शारीरिक और मानसिक  शोषण जारी है और जारी रहेगा… अगर.

केंद्रीय वित्त आयोग के अध्यक्ष एन. के. सिंह पूर्ववत आर्थिक विषयों पर आम आदमी की समझ में आने वाला दमदार लेखन करते रहे हैं. वह एक वरिष्ठ नौकरशाह रहे हैं तो अर्थतंत्र की चूलों पर उनकी गहरी पकड़ भी है. मसूरी में उत्तराखंड सरकार की पहल पर हुए हिमालयी सम्मेलन को ऐतिहासिक घटना बनाते हुए उन्होंने कहा कि ‘ हिमालय सी समस्याओं व उनके प्रभावी समाधान का एक बेहतर मंच तैयार हो गया है.’ इस सम्मेलन में रखी गई हिमालयी समाज और अर्थव्यवस्था की समस्याओं के प्रति वित्त आयोग संवेदनशील है.

लोकथात के पारंपरिक वाद्य यंत्रों, ढोल-दमाऊ की धमक- गमक व लोक संस्कृति से पारंपरिक वस्त्रों में सुशोभित लोक गायकों ने ‘दैणा हुय्यां खोलि का गणेश हेss, दैणा होया मोरिका नारेण हेंsss,’ मंगल गीत से हिमालय के प्रति संवेदनशील नीति नियंताओं का स्वागत किया. तो केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पर्वतीय राज्यों को 2500 किलोमीटर से विस्तृत सीमांत रेखा के समुदायों को देश की सुरक्षा, सम्प्रभुता के प्रति आंख और कान की संज्ञा दे हिमालयी राज्यों का मान बढ़ा दिया. पर्वतीय राज्यों  के लिए कथित रूप से केंद्रीय बजट में व्यवस्था करने पर भी वह सहमत हुई. अभी तक राज्य केंद्र से आधारभूत संरचना के लिए ‘ फ्री फ्लोट फंड’ की मांग करते रहे हैं. पर पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों के भिन्न होने से अधिकांशतः केंद्र पोषित योजनाओं को एक रूप में क्रियान्वित करना संभव नहीं होता. मौसम की प्रतिकूलताएं भी आड़े आती हैं  व अवस्थापना की कमियां भी. दुरूह व दुर्गम प्रदेशों में अंतर्संरचना के विकास को तय की गई लागते भी काफी बढ़ जाती हैं. ऐसे में कई बार कोषों की कमी होती है तो कई बार लक्ष्य व आपूर्ति के मायाजाल में आवंटित धन का सदुपयोग नहीं हो पाता. संसाधनों का आवंटन एवं इनकी गतिशीलता क्षेत्रीय परिस्थितियों के प्रसंग में तय होने की चाह रखती है. ऐसे में  स्थानीयता व आंचलिक दशाओं के परिवेश में बजट आवंटित होने पर हिमालयी अर्थतंत्र की दुर्बलताओं को दूर किया जाना संभव प्रतीत होता है.

 वित्त मंत्री, हिमालय की मनोदशाओं को समझीं, जिनसे विकास अवरूद्ध रहा है. उन्होंने सीमांत क्षेत्र से पलायन पर अंकुश लगाने के लिए काम-धंधों में वृद्धि कराने, स्थान स्टार्टअप, पर्वतीय क्षेत्र में जैविक खेती व पर्यावरण की सुरक्षा पर जोर दिया. पर्वतीय क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं के महत्व को भी उन्होंने रेखांकित किया. योजनाओं को व्यावहारिक रूप से धरातल पर उतारने के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी व उनके सशक्तीकरण पर उन्होंने विशेष बल दिया. हिमालयी राज्यों में औरतों की दिनचर्या उनका परिवार में योगदान और उनका कठोर परिश्रम उन्हें वह प्रतिफल नहीं दे पाया, जिसकी वह हकदार हैं. इसलिए समुदायों के सशक्तिकरण के लिए भावी प्रयास जरूरी है.

 नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने सम्मेलन से होने वाले भावी संवाद व हिमालयी राज्यों के आपसी विचार विमर्श तालमेल बनाए रखने को जरूरी माना. उन्होंने नवीन योजनाओं को बनाने व इन्हें साझा कर नीति आयोग के आगे रखने को जरूरी बताया. उन्होंने हिमालय में खेती की बढ़ती लागत को कम करने व पर्यटन की व्यापक संभावना के बावजूद असंतुलित दशाओं के उपजने से एकतरफा विकास होने पर भी चिंता प्रकट की.

मिजोरम के मंत्री टीजेला लनुनल्लुंगा प्राकृतिक व जैव विविधता के संरक्षण में व्यक्तियों की भागीदारी पर, तो अरुणाचल के मुख्यमंत्री चोवनामेन ने सीमांत क्षेत्रों में अंतर्संरचना के विकास पर जोर दिया. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्युरियों ने हिमालयी राज्यों में विकास की लागत की अधिकता के कारण अधिक बजट की जरूरत बताई. मेघालय के मुख्यमंत्री कोंगकल संगमा ने दायित्वपूर्ण पर्यटन पर बल दिया. साथ ही पर्वतीय राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान से बेहतर समझ विकसित होने की आशा जताई. हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हिमालयी राज्यों में सीमित वित्तीय संसाधनों के रहते अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त होने की बात की. साथ ही कनेक्टिविटी के लिए रेल हवाई सुविधा के विस्तार को जरूरी बताया.

 हरित अनुदान मिलने पर सभी हिमालयी राज्य एकमत रहे. साथ ही प्रकृति की मार झेलने को आपदा प्रबंधन के लिए मौजूदा तंत्र को अधिक प्रभावी बनाए जाने की वकालत की गई. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने जल संचय व जल संरक्षण के लिए मिलकर काम करने की बात रखी. हिमालयी राज्यों द्वारा केंद्र के जल शक्ति संचय मिशन में प्रभावी योगदान, नदियों के संरक्षण व पुनर्जीवन को केंद्रीय पोषित योजनाओं से अधिक बजट मिलने के साथ नए पर्यटन स्थल विकसित करने को, केंद्र से आर्थिक सहायता मिलने व पर्वतीय क्षेत्र की परिस्थितियों के हिसाब से योजनाओं का निर्माण किया जाना जरूरी समझा गया.

समेकित विकास व पर्यावरण संरक्षण संवर्धन के प्रति संतुलन बनाने में मानवीय विकास को प्राथमिकता देते हुए हिमालयी राज्यों का मसूरी सम्मेलन, विकास के गुणात्मक पक्षों को भी प्रकट करता रहा. आर्थिक समीक्षा 2019 नैतिक आचरण और व्यवहार के मापदंडों की भरपूर वकालत की गई है तो प्रधानमंत्री जी विकास व पर्यावरण के मध्य छिड़े द्वन्द्व को आम जनता के सामने रख रहे हैं. केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव परमेश्वरमन स्वीकार करते हैं कि देश से 50% से अधिक जलापूर्ति हिमालयी राज्य करते आए हैं  व यहां की वन संपदा का लाभ पूरा देश उठाता है. गंगा- जमुना व ब्रह्मपुत्र नदी के साथ अन्य  अन्य सभी सहायक धाराओं पर देश की अधिकांश आबादी का अवलंब है इसलिए पहाड़ में जल संरक्षण व हिमालय की हर नदी का पोषण संवर्धन करने की फिक्र भी होनी चाहिए.

उत्तराखंड सरकार की ओर से ग्रीन बोनस रपट प्रो. मधु वर्मा की ओर से सम्मेलन में प्रस्तुत की गई. इसमें बताया गया कि उत्तराखंड 95000 करोड़ से अधिक की पर्यावरण सेवाएं प्रदान कर रहा है. सिक्किम के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ महेंद्र पी. लामा ने इकोसिस्टम सेवाओं के बदले विशेष सहायता जरूरी समझा. अब 15वें वित्त आयोग की संस्तुतियां नवंबर 2019 में आएगी. उसमें यह तय होगा कि केंद्र के कुल संसाधनों में पर्वतीय राज्यों की हिस्सेदारी क्या होगी? 14वें वित्त आयोग से उत्तराखंड को बस वन संपदा के रूप में 7.5% का अधिमान देकर ही संतुष्ट कर दिया गया था. अब सम्मेलन में यह स्पष्ट रूप से जता दिया गया है कि पहाड़ में लागतें अधिक हैं सो अधिक  वित्त भी चाहिए. फिर यह भी सीमा रेखा खींची है कि देश के 11 राज्यों से लोकसभा में पहुंचे सदस्यों की संख्या 40 से अधिक नहीं हैं जबकि अकेले उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से इसके दुगने सदस्य सदन में पहुंच जाते हैं ऐसे में हिमालय की आवाज भी मंद्र सप्तक में ही गूंजती है.

 फिलहाल नीति आयोग ने हिमालयी राज्यों के लिए ऋण योजनाओं व अधिक वित्त प्रदान करने की मांग को स्वीकार कर लिया है. पर्वतीय परिषद भी बनेगी व हिमालयी राज्यों की ओर से मांग आने पर प्रस्तावों का मूल्यांकन भी होगा.

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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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Girish Lohani

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