कला साहित्य

उत्तर भारत का दिल हिंदी में धड़कता है – वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल (5 अगस्त 1947 – 27 सितम्बर 2014) समकालीन हिन्दी कविता के सबसे लोकप्रिय कवियों में गिने जाते हैं. साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता इस कवि के तीन कविता संग्रह – ‘इसी दुनिया में’, ‘दुश्चक्र में सृष्टा’ और ‘स्याही ताल’ प्रकाशित हुए. हाल ही में उनकी सम्पूर्ण कविताएँ नवारुण प्रकाशन से छपकर आई हैं.  2007 में वीरेन डंगवाल का ध्रुव रौतेला द्वारा लिया गया एक साक्षात्कार :

भाषा के वर्तमान परिवेश में हिन्‍दी की क्‍या दशा और दिशा है

हिन्‍दी का भविष्‍य अब बहुत उज्‍जवल है क्‍योंकि भारत के उत्तरी भाग का दिल इसी भाषा में धड़कता है. हिन्‍दी में ही सारे स्‍वप्‍न और संघर्ष अभिव्‍यक्‍त होते हैं इसलिए इसका भविष्‍य सुरक्षित है, कोई चिंता की बात नहीं. हिन्‍दी लगातार प्रगति की ओर बढ़ रही है क्‍योंकि इसमें निरन्‍तर नए प्रतिभावान रचनाकार उभरकर सामने आ रहे हैं.

आज साहित्‍य में महिला सशक्तिकरण और स्‍त्री विमर्श का दौर चल रहा है यह कितना सार्थक है

स्‍त्री विमर्श बहुत ही महत्‍वपूर्ण मुद्दा है क्‍योंकि 20वीं शताब्‍दी के आखिरी दिनों से स्‍त्री चर्चा का विषय बनी हुई है. यह प्रमुख सामाजिक प्रश्‍न बनकर सामने आया है. उसको यानि स्‍त्रीवाद को सिर्फ देहवाद तक सी‍मि‍त कर देना यह स्‍त्री के साथ ही विमर्श का भी अपमान है. आज हिन्‍दी में कई उर्जावान, महिला रचनाकार सामने आ रही हैं जिनमें कात्‍यायनी, मैत्रेयी पुष्‍पा, पुत्तर मांझी, अनीता वर्मा, निलेश रघुवंशी शामिल हैं. इन सभी ने अपना अलग मुकाम बनाया है.

आप कवि हैं, साहित्‍य में कविता का कितना महत्‍वपूर्ण योगदान मानते हैं

कविता सदैव ही साहित्‍य की आत्‍मा रही है जिसकी कोई सानी नहीं है. यह एक उत्कृष्ट विधा है. प्रारम्‍भ से मैंने भी गद्य में काफी लिखा, लेकिन जो मजा काव्‍य में आया वह और कहीं नहीं. कविता में आत्‍मीयता है और रचनाकार की भावना इससे सीधे जुड़ी रहती हैं, मैं काव्‍य लेखन में एक अनूठी अनुभूति महसूस करता हूं, जो रचना के माध्‍यम से अभिव्‍यक्‍त होती है.

 आप उत्तराखण्‍ड के रहने वाले हैं यहां हिन्‍दी का क्‍या भविष्‍य है

आज देश में उत्तरांचल हिन्‍दी के क्षेत्र में सबसे ज्‍यादा गतिशील व तेजस्‍वी प्रदेश बनकर उभरा है. यहां सपनों और आदर्शों से युक्‍त समाज हैं जिसमें अभूतपूर्व क्षमता व प्रतिभाशाली नौजवानों की भरमार है. मुझे खुशी होती है कि अगली पीढ़ी के सुन्‍दर चंद ठाकुर और माया गोला जैसे रचनाकार इस प्रदेश से उभरकर सामने आ रहे हैं. युवाओं से अपेक्षा है कि वह हिन्‍दी को अपनी आत्‍मा से जोड़ते हुए इसके सुख को महसूस करें.

देश का सर्वोच्‍च साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार मि‍लने पर कैसा अनुभव कर रहे हैं और आप किसे इसका योगदान देना चाहेंगेॽ

मैं सभी दोस्‍तों की भागीदारी मानता हूं जिन्‍होंने मुझे प्रत्‍यक्ष या अप्रत्यक्ष कविता लिखने की तमीज दी. वह सभी लोग जो मरे साथी शिक्षक हैं, छात्र हैं,परचून वाले से लेकर लोहा पीटने वाले तक को मैं इसका श्रेय देना चाहूंगा. वह पूरा समाज जिसमें मैंने कविता को पाया है. पुरस्‍कार मिलने पर चकित हुआ क्‍योंकि मैं बरेली जैसे शहर में रह रहा हूं जहां साहित्‍य में रुचि सीमित है, काफी आश्‍चर्य हुआ. धन्‍यवाद उन लोगों का जिन्‍होंने मुझे इस काबिल समझा.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव रौतेला देश के कई नामी मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

3 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

7 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

7 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago