समाज

आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ खै जा

आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ खै जा,
मैकेणी म्येर इजैकी की खबर दी जा.
आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ ली जा,
मैकेणी म्येर घर गौं की खबर दी जा.
आ कौआ,अपण दगड़ी और लै पंछी ल्या,
सबुकैं घुघुती त्यारै की खबर दी आ.

इस बार में घुघुती के प्रचलित गीत को एक नए सुर में गाना चाहती हूं, मेरी उम्र के असंख्य बच्चे जो आज खाने कमाने की दौड़ में बड़े-बड़े महानगरों में व्यस्त हो गए हैं, और व्यस्क होकर जीवन की ढलान में बढ़ रहे हैं, वे इन त्योहारों की आहट पर अपने देश, गांव लौट जाना चाहते हैं. जैसे पक्षी लौट आते हैं दूरदराज से वापस अपने देश. (Uttarayani Festival 2023)

घुघुती के त्योहार के दिन हम महानगरों में किसी चिड़िया को खोजने लगते हैं. कौवे को बुलाने की कोशिश करते हैं, पर वे नही दिख रहे हैं. जब हम छोटे थे, आज के दिन असंख्य कौए घर के आसपास घूमने लगते थे और घर की मुंडेर, आंगन में घुघुती बड़े रखते ही फुर्र से उठाकर उड़ जाते थे. चारों ओर से बच्चों में जैसे होड़ लग जाती थी, सब अपने अपने घर से कौवे को आवाज लगाकर बुलाते और कौवे के झुण्ड को देखते ही खुशी से चिल्लाते थे.

इसे भी पढ़ें :  मकर संक्रान्ति का त्यौहार

परंपरा के अनुसार माघ मास के पहले दिन घरों में लोक संस्कृति से जुड़ा घुघूती पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है. कुमाऊं में लोक संस्कृति से जुड़े उत्तरायणी पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा हैं. हमारे लिए ये त्योहार बहुत बड़ा त्योहार रहा है.

गांव घरों की महिलाएं दिन से ही घुघुते बनाने की तैयारी करने लगती हैं, बच्चे, बूढ़े और जवान सब घुघुती बनाने में सहयोग करते थे. पहले घुघुती, बड़े कौवों के हिस्से में निकाले जाते हैं. आज के दिन खूब घुघुती बड़े बनते हैं. क्योंकि अड़ोस-पड़ोस से लेकर शहर कस्बों में रहने वाले खास रिश्तेदारों तक घुघुती पहुंचाई जाती है. कई-कई दिन तक बच्चों का चाय के साथ नाश्ता भी घुघुती के बड़े ही होते थे.

मकर संक्रांति पर्व पर मनाया जाने वाला घुघुती के त्योहार में मीठे आटे में सूजी मिलाकर घुघुते, खजूरे, तलवार, डमरू चक्र आदि कई चीजें बनायी जाती हैं. घुघुते मुलायम रहें, इसमें घी के मोयन के साथ दूध, सौंफ आदि मिलाकर खूब भूरा होने तक पूरी की तरह से उन्हें तला जाता है. घुघुती का आटा गुथना मशक्कत का काम होता है. आटा थोड़ा सख्त गूँथा जाता है, ताकि न तो वह घुघुते बनाने में टूटे और न इतना गीला हो कि तलने पर घुघुते कड़कड़े हो जायें अथवा तलने से पूर्व ही आपस में चिपकने लगें. घुघुते करारे और खसखसे बने तो बहुत स्वादिष्ट होते हैं.

सुबह कौओं के घुघुते खाने के बाद घुघुतों को घर में अन्य लोगों को बांटा जाता है. इस पर्व में खासकर बच्चों में अधिक उत्साह देखने को मिलता है. घुघुतों की माला में घुघुतों के अलावा पूरी, बड़ा तथा एक दाना नारंगी का भी गच्छाया जाता है. घर के बच्चे इन घुघुतों की मालाएं बनाकर गले में लटकाते हैं और इच्छानुसार इन्हें तोड़ कर खाते रहते हैं और गाते है — ‘काले कौआ काले घुघुति माला खा ले.’ काले कौआ काले, घुघुति माला खा ले.’ ‘लै कौआ भात में कै दे सुनक थात.’ ‘लै कौआ लगड़ में कै दे भैबनों दगड़.’ ‘लै कौआ बौड़ में कै दे सुनौक घ्वड़.’

ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की आवाज से पूरा गांव गूंज उठता है. लोग एक दूसरे के घरों में जाकर घुघुतों की मालाएं बांटकर बधाई देते हैं. इस दौरान कई जगहों पर मंदिरों व घरों में पूजा अर्चना होती है एवम् मकर संक्रान्ति के अवसर पर कुमाऊँ-गढ़वाल क्षेत्र के कई नदी घाटों एवं मन्दिरों पर उत्तरायणी मेले लगते हैं. गोमती, सरयू व अदृश्य सरस्वती संगम पर स्थित बागेश्वर में पहले यह मेला कई दिनों के लिए लगता था. नदी घाटों में पवित्र स्नान का दौर भी चलता है.

उतरैणी के एक दिन पूर्व ततवाणी होती है, जिस दिन तात् पाणि यानि गर्म पानी से नहाने की परम्परा है. उतरैणी के त्योहार के दिन सुबह सिवाणी यानि ठण्डे पानी से स्नान होता है. ठंडे पानी से स्नान वाले दिन से माना जाता है कि उतरैणी के दिन से ठंडे पानी का स्नान शुरू हो जाता है.

कुमाऊं के गांव, घरों में इस त्योहार से संबंधित कई कथाएं भी प्रचलित है. विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊँ के अलावा शायद कहीं नहीं मनाया जाता है. यह त्यौहार विशेष कर बच्चो और कौओ के लिए बना है.

वास्तव में हमारे पूर्वज एक समावेशित समाज की कल्पना करते थे यह हमारे त्योहारों के विभिन्न रिवाजों और परंपराओं को देखकर पता चलता है. समाज में रहने वाले प्रत्येक जीव को सोचकर उत्सव एवम त्योहार आदि मनाए गए हैं जिनमें बच्चे, पशु पक्षी, युवा, वृद्ध जन आदि सभी को किसी न किसी तरह से शामिल किया गया है. (Uttarayani Festival 2023)

नीलम पांडेय ‘नील’ देहरादून में रहती हैं.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

3 days ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

3 days ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

6 days ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

1 week ago

उत्तराखण्ड के मतदाताओं की इतनी निराशा के मायने

-हरीश जोशी (नई लोक सभा गठन हेतु गतिमान देशव्यापी सामान्य निर्वाचन के प्रथम चरण में…

1 week ago

नैनीताल के अजब-गजब चुनावी किरदार

आम चुनाव आते ही नैनीताल के दो चुनावजीवी अक्सर याद आ जाया करते हैं. चुनाव…

1 week ago