समाज

क्या आप जानते हैं हुड़किया बौल और गुड़ौल गीत के बीच अंतर

उत्तराखंड के ग्रामीण परिवेश से थोड़ा बहुत भी ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति हुड़किया बौल शब्द जानता होगा. हुड़किया बौल कुमाऊं के सबसे लोकप्रिय कृषि गीत हैं. इसी का एक भाग है गुड़ौल गीत. (Uttarakhand Traditional Music)

हुड़किया बौल और गुड़ौल गीत दोनों कृषि से जुड़े गीत तो हैं. इन गीतों के बोल में लगभग कोई अंतर नहीं होता है लेकिन कृषि कार्य दोनों में अलग-अलग है. (Uttarakhand Traditional Music)

बुआई के कुछ समय बाद खेतों में छोटी-छोटी घास इत्यादि जम जाती है. इस घास को खेतों से जब हाथो के द्वारा हटाया जाता है तो इसे नराई कहते हैं. पहाड़ों में नराई के अलावा कृषि से संबंधित एक और शब्द है गुड़ाई.

गुड़ाई भी खेतों में फ़सल के साथ जमी घास को हटाने से संबंधित है. लेकिन गुड़ाई में घास को कुटले (एक कृषि उपकरण) से हटाया जाता है. गुड़ाई बेहद हल्के हाथों से की जाती है ताकि छोटे पौधे न उखड़ जायें.

यह काम बेहद श्रम का तो है ही साथ में बोझिल भी है. लगातार कमर को झुकाकर बेहद हल्के हाथ से कुटले से घास को हटाने के समय ही गाये जाते हैं  गुड़ौल गीत.  गुड़ौल गीत शब्द इसी गुड़ाई से बना है.   

इस तरह  गुड़ौल गीत निराई और गुड़ाई दोनों के समय गाया जाने वाला कृषि गीत है.  गुड़ौल गीत और हुड़किया बौल में लय लगभग समान होती है.

इन गीतों के समय जब गायक महसूस करता है कि लोग थक गये हैं तो वह अपनी गति को तेज करता है. पूरे उत्तराखंड में यदि देखा जाये तो मडुए के खेतों में गुड़ाई के समय सबसे अधिक रूप से गुड़ौल गाये जाते थे. मडुवे की खेती में कमी के साथ-साथ गुड़ौल की परम्परा में भी कमी आती गयी.

कुल मिलाकर हुड़किया बौल और गुड़ौल गीत दोनों एक ही है लेकिन दोनों के गाये जाने का समय और कृषि गतिविधियों में अंतर है. नरसिंह धोंनी भड़ौ में ही हियाँ रानी के रूप का वर्णन पढिये –

कुस्यारु क ड्वक जसि, सुरज कि जोति.
छोलियाँ हल्द जसि, पालङा कि काति
सितो भरि भात खायोत उखालि मरन्यां
चूल भरि पॉणि खायोत नङछोलि मरन्या

जेठ के आडू से लदे डोके जैसी, सूर्य की ज्योति जैसी, कच्ची हल्दी जैसी, पालक की कली जैसी, हियाँ रानी इतनी नाजुक है कि सीते भर भात (चावल का एक पका हुआ दाना) भी खा ले तो उल्टी कर देती है अंजुली भर पानी पी ले तो उसे जुकाम हो जाता है.

-काफल ट्री डेस्क

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

9 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

6 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

2 weeks ago