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अक्टूबर जैसा अक्टूबर आया ही नहीं इस बार पहाड़ों में

पहाड़ों में पर्यटन का दूसरा बड़ा सीजन होता है अक्टूबर सीजन. एक ज़माने में इस दौरान आने वाले बंगालियों की बड़ी संख्या के कारण इसे बंगाली सीजन कहे जाने की शुरुआत हुई. बंगाल में इस दौरान चल रही दुर्गा पूजा की लम्बी छुट्टियों के कारण ऐसा होता भी था. यह नाम आज भी चल रहा है. यह अलग बात है कि इस मौसम में आने वाले गैर-बंगाली पर्यटकों की संख्या में हाल के वर्षों में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है. (Autumn Delayed due to Pollution)

अक्टूबर सीजन का मतलब होता था शरद का मौसम. बारिश के मौसम के बीत जाने के कोई महीने भर बाद शुरू होने वाला यह सीजन साल के सबसे चमकदार दिन लेकर आता था. साफ़ और मुलायम धूप निकलती थी, तापमान न बहुत अधिक होता था न कम और आसमान का नीलापन तो क्या कहने. (Autumn Delayed due to Pollution)

सबसे पहले तो इस बार बहुत अनियमित बारिश हुई. उसका पूरा चक्र गड़बड़ा गया और वह कई स्थानों में तो अक्टूबर के दूसरे-तीसरे हफ्ते तक अपनी आमद दर्ज कराती रही.

बारिश के आखिरकार बंद हो चुकने के बाद भी शरद यानी ऑटम का सीजन आने का इन्तजार होता ही रहा और नवम्बर का महीना आ गया.

पहाड़ पर भ्रमण हेतु जाने वाले पर्यटकों के लिए इस मौसम का सबसे बड़ा आकर्षण हुआ करता था हिमालय का बेहतरीन नजारा. फोटोग्राफरों के लिए भी अक्टूबर के हिमालय का अपना अलग महत्व होता था.

इस साल स्थिति यह रही कि हिमालय के दर्शन बमुश्किल हो पाते हैं. धुंध और धूल की गहरी मोटी परत आसमान पर लगातार घिरी रही, जिसके हाल ही में निबटे दीवाली के त्यौहार के मद्देनजर और भी गहराने की आशंका है. फिर कोहरा आ जाएगा.

हल्द्वानी जैसी अपेक्षाकृत गर्म जगहों में भी अक्टूबर में तापमान में अच्छी कमी आ जाती लेकिन लेकिन वहां अब भी पंखे चल रहे हैं. पहाड़ों में जहाँ अब तक अच्छी खासी ठण्ड होने लगती थी उसके निशान गायब हैं.

पिछले कुछ दशकों से लगातार जारी की रही पर्यावरण प्रदूषण से सम्बंधित चेतावनियों को सरकारों, तमाम तरह की कार्यदायी संस्थाओं और नागरिकों के तौर पर हम लोगों ने कितनी गंभीरता से लिया, इसका सबूत देखना हो तो साल 2019 के अक्टूबर को हमेशा याद रखा जाना चाहिए. ग्लोबल वार्मिंग को भूल जाइए अब ग्लोबल वार्निंग का समय आ चुका है.

पर्यावरण जो दुनिया भर में सबसे बड़ा मुद्दा बन कर बड़े देशों की नीतियों-कार्य योजनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा बनकर उभरा है, अभी हमारी सरकारों के लिए कोई बड़ा एजेंडा है ही नहीं. और हमारे मन-मस्तिष्क में यह धारणा जब तक बनी रहेगी कि यहाँ सारे काम सरकार ही करती है तब तक ऐसे ही दुष्परिणाम सामने आते रहेंगे. तैयार रहिये! (Autumn Delayed due to Pollution)

यह भी पढ़ें: प्रदूषण नियंत्रण में लापरवाही बरतने से उत्तराखण्ड निवासियों की औसत आयु दो से छः साल कम हुई

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