आज ही के दिन 20 साल पहले भारत ने करगिल युद्ध में विजय प्राप्त की थी. करगिल की यह वीरगाथा उत्तराखंड के वीरों के बिना अधूरी है. उत्तराखंड के लोगों ने युद्ध के इन महीनों में अपने जीवन भर की प्रार्थनायें कर दी थी.
देश की रक्षा के लिये करगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 बेटों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिये. पूरे देश में किसी राज्य से शहीदों की यह संख्या सर्वाधिक है. करगिल युद्ध के बाद जब गढ़वाल रेजीमेंटल सेंटर के परेड ग्राउंड पर हेलीकॉप्टर से शहीदों के नौ शव एक साथ उतारे गए तो पूरे राज्य के लोगों की आंखों से उनके सम्मान और याद में आंसू निकल आये.
उत्तराखंड के जवानों ने करगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटी में दुश्मन से जमकर लोहा लिया. करगिल युद्ध में अदम्य साहस के लिये उत्तराखंड के 30 सैनिकों को वीरता पदक से दिया गया.
युद्ध के बाद मेजर राजेश सिंह अधिकारी और मेजर विवेक गुप्ता को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. ग्रुप कैप्टन एके सिन्हा, ऑनरेरी कैप्टन खुशीमन गुरुंग, नायक ब्रजमोहन सिंह, नायक कश्मीर सिंह, राइफलमैन कुलदीप सिंह को वीर चक्र प्रदान किया गया. लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग, ऑनरेरी कैप्टन चंद्र सिंह और ऑनरेरी कैप्टन ए हेनी माओ, नायक शिव सिंह, नायक जगत सिंह, लांसनायक देवेंद्र प्रसाद, लांसनायक सुरमन सिंह, सिपाही चंदन सिंह, राइफलमैन ढब्बल सिंह को सेना मेडल से नवाजा गया.
उत्तराखंड में लगभग हर परिवार से कोई न कोई सेना में होता है. यहां के युवाओं का सपना होता है सेना में भर्ती होना. आज भी आइएमए से पासआउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है और भारतीय सेना का हर पाचवां जवान भी उत्तराखंड से है.
करगिल जिले के द्रास कस्बे में करगिल वॉर मेमोरियल बनाया गया है. 2016 में नरेंद्र सिंह परिहार द्वारा करगिल वार मेमोरियल की कुछ तस्वीरें देखिये :
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मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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उत्तराखंड के वीरों ने देश पर सर्वस्य न्यौछावर कर, हर उत्तराखंडी का सर गर्व से ऊंचा कर दिया है । शत शत नमन शहीदों को ।