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विश्व में सबसे ऊंचा शिव मंदिर है तुंगनाथ

समुद्र की सतह से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ (Tungnath) मंदिर की गिनती पञ्चकेदार में होती है. उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह मंदिर चमोली और गोपेश्वर से क्रमशः 55 व 45 किलोमीटर की दूरी पर है.

यहाँ पहुँचने हेतु सबसे पहले रुद्रप्रयाग जिले के सुन्दर स्थल चोपता पहुंचना होता है. चोपता रुद्रप्रयाग से गोपेश्वर के रास्ते में 24 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. इस मार्ग पर चोपता पहुंचकर फिर साढ़े तीन किलोमीटर की ऊंची चढ़ाई चढ़कर तुंगनाथ पहुंचा जा सकता है. यह चढ़ाईदार रास्ता बेहद सुन्दर है.

चोपता के निकट बुग्याल. फोटो: अमित साह

तुंगनाथ में भगवान् शिव का मंदिर तो है ही, साथ में भगवती उमादेवी के मंदिर के अलावा यहाँ ग्यारह लघुदेवियाँ भी स्थापित हैं. इन देवियों को द्यूलियाँ कहा जाता है. माघ के महीने में तुंगनाथ का डोला अर्थात दिवारा निकाला जाता है जो पंचकोटि गाँवों का फेरा लगाता है. इस डोले के साथ गाजे-बाजे और निसाण होते हैं और भारी संख्या में लोग इसमें शिरकत करते हैं.

चोपता से तुंगनाथ जाने के लिए सवारियों की प्रतीक्षा करते घोड़े. फोटो: अमित साह

तुंगनाथ के रास्ते. फोटो: अमित साह

बहुत ही रमणीक रास्ता है तुंगनाथ का. फोटो: अमित साह

पौराणिक समय से मान्यता है कि तुंगनाथ में शिवलिंग का रूप धारे केदारनाथ यानी भगवान शिव के बाहु की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि रावण ने इसी स्थान पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था. बदले में भोले बाबा ने उसे अतुलनीय भुजबल प्रदान किया था. इस घटना के प्रतीक के रूप में यहाँ पर रावणशिला और रावणमठ भी स्थापित हैं.

इस मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. मंदिर के भीतर भगवान शिव, व्यास ऋषि और आदिगुरु शंकराचार्य की मूर्तियाँ हैं. भूतनाथ का मंदिर भी इसी परिसर में है.

तुंगनाथ के रास्ते एक साधु. फोटो: अमित साह

तुंगनाथ से थोड़ी दूर करीब दो सौ मीटर अधिक की ऊंचाई वाली एक दूसरी पहाडी पहाड़ी पर चंद्रशिला है. मना जाता है कि भगवान् राम ने यहाँ तप किया था. इस स्थान से चौखम्भा और केदारनाथ के शिखर के अपूर्व दर्शन होते हैं. शीतकाल में यहाँ की मूर्तियों को सांकेतिक रूप से रुद्रप्रयाग जिले के ही ऊखीमठ, मक्कूनाथ में स्थापित किया जाता है और वहीं उनकी पूजा अर्चना होती है.

तुंगनाथ मंदिर. फोटो: अमित साह

तुंगनाथ का मंदिर अपने सौन्दर्य और वास्तुशिल्प के लिए भी जाना जाता है. उत्तराखंड राज्य के चार धामों के कपाट खुलने के समय ही यानी अप्रैल-मई में महीने में तुंगनाथ के कपाट भी खोले जाते हैं. मंदिर दीपावली के बाद बंद कर दिया जाता है.

कोहरे में तुन्गनाथ. फोटो: अमित साह

तुंगनाथ के दर्शन के लिए सबसे उचित समय मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर माना जाता है. जुलाई और अगस्त के महीनों में भारी बारिश के कारण यहाँ पहुँचने में परेशानी हो सकती है. इधर के वर्षों में शीतकालीन महीनों में भी यहाँ जाने का चलन बढ़ा है. भक्ति और साहसिक पर्यटन दोनों दृष्टिकोणों से यहाँ की यात्रा बहुत संतोषकारी होती है.

चन्द्रशिला. फोटो: अमित साह

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  • कुछ गलत जानकारी दे रखी हैं आपने
    तुङ्गनाथ मन्दिर जाने के लिए सर्वोत्तम रास्ता रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि होते हुए उखीमठ (जहाँ पर भगवान केदार एवम बाबा मदमहेश्वर का शीतकालीन प्रवास स्थल भी है) से चोपता (मिनी स्विट्जरलैंड) सड़क मार्ग से पहुँचा जाता है, चोपता से पैदल मार्ग से जाया जाता है न कि पोखरी से ।
    बाबा तुङ्गनाथ का शीतकालीन पूजा स्थल मार्कण्डेय मन्दिर मक्कूमठ में है न कि मक्कूनाथ में।

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