समाज

उद्यमशीलता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नाम है तुलसी देवी

उद्यमशीलता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नाम है तुलसीदेवी का. पिथौरागढ़ के नौलेरा गाँव में 1919 में भोटिया व्यापारी सीमासिंह रावत तथा सरस्वती रावत ने एक कन्या को जन्म दिया. नाम पड़ा तुलसी. पर्वतीय क्षेत्र की भोटिया जनजाति का साग-सब्जी से हरा-भरा यह छोटा सा गाँव उनका अस्थाई निवास था. जहाँ ऊन धोने, सुखाने, तकुओं पर कातने तथा ऊनी वस्त्र बुनने में महिलाएँ व्यस्त रहतीं. तुलसी देवी का शैशव ऐसे ही वातावरण में बीता. मात्र पाँच वर्ष की थीं तुलसी, कि उनके पिता और छोटे भाई काल कवलित हो गये. अतः माँ बेटी इस असहाय अवस्था में एक-दूसरे के सहारे जीने लगीं.
(Tulsi Devi Uttarakhand)

माँ ने तुलसी देवी को प्राथमिक शिक्षा दिलाई. यह माइग्रेशन वाला स्कूल था. सम्पन्न व्यापारी अपने बच्चों को इसके बाद अल्मोड़ा या पिथौरागढ भेजते थे, किन्तु पितृविहीन तुलसी आगे न पढ़ सकीं. माँ 1940 में अपने भतीजे के पास ग्वालदम चली गईं. 1943 में एक संभ्रांत व्यापारी परिवार के दीवान सिंह राणा के साथ तुलसी का विवाह हआ. इनका जीवनाध्याय नये ढंग से आरम्भ हुआ, किन्तु 17 वर्ष की तुलसी को वैधव्य की मार झेलनी पड़ी. इनके ससुराल ने परम्परानुसार उनका विवाह उनके देवर से करना चाहा, किन्तु वह और भी कुछ करना चाहती थी.

1946 में कौसानी में बापू की शिष्या सरला बहन ने महिलाओं के लिए एक संस्था ‘लक्ष्मी आश्रम’ खोला. तुलसी देवी, सरला बहन के सान्निध्य में आई. जुझारू और चिन्तनशील तुलसीदेवी ने सोचा कि अपनी भूमि केवल व्यक्तिगत सुख के लिए ही क्यों उपयोग की जाय? अतः मन में आश्रम से प्रेरणा लेकर इन्होंने 1952 में दान में प्राप्त इस भूमि पर कताई-बुनाई केन्द्र की स्थापना की. 1957 में ऊन गृह उद्योग समिति के नाम से एक संस्था गठित कर उसे पंजीकृत करवाया.

परमार्थी तुलसी देवी ने असहाय स्त्रियों को ऊन उद्योग का प्रशिक्षण देकर स्वावलम्बी बनाकर टूटते परिवारों को सहारा दिया. वे सदैव आश्रम से सम्पर्क बनाए रहतीं. उन्होंने निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए अनाथ बालिकाओं का पालन-पोषण कर शिक्षा-दीक्षा देकर उनका विवाह कर नई राह दी. बालकों को प्रशिक्षित कर आगे बढ़ाया. उदार दृष्टिकोणवादी तुलसी 1972 में जिला कांग्रेस कमेटी की महिला संयोजिका के रूप में कार्य करने लगीं तथा थराली प्रखण्ड की क्षेत्रीय सदस्या भी बनाई गई. 1974 में जिला परिषद् चमोली की अध्यक्ष रहीं. 1977 में वे उत्तर प्रदेश राज्य समाज कल्याण सलाहकार बोर्ड द्वारा सीमांत कल्याण विस्तार परियोजना, ग्वालदम की अध्यक्ष भी मनोनीत की गईं.
(Tulsi Devi Uttarakhand)

उन्होंने अपनी संस्था में 1978 से अर्द्धशिक्षित महिलाओं व लड़कियों के लिए एक ‘कंडेस्ड कोर्स’ चलाया. उन्होंने 1980 में ‘ट्राइसेम योजना’ के अन्तर्गत प्रशिक्षण देना शरू किया. जो 1987 तक चला. उन्होंने इन प्रशिक्षित महिलाओं को ‘हाडा’ योजना के तहत ऋण दिलवा कर करघे-कंघी आदि बुनाई के साधन दिलवाए. उन्होंने बालवाड़ी के कार्यक्रम भी चलाए.

आविष्कारक प्रवृत्ति की तुलसी देवी ने 1976 में एक नए प्रकार का शाल बनाया, जिसे उन्होंने ‘तलसी रानी शॉल’ नाम दिया. इसका प्रथम निर्माण आस्ट्रेलियन ऊन पर किया जो उतना सफल न रहा. बाद में अंगोरा ऊन से यह शॉल बनाया, जो अपनी सुन्दरता के कारण लोगों को बहुत पसन्द आया.

1983 में इस शॉल के निर्माण हेतु उन्होंने तुलसी रानी शॉल फैक्टरी बनाई. तुलसीदेवी का महिलाओं के लिए संदेश है- रोओ नहीं आगे बढ़ो. यदि शिक्षित नहीं हो तो अपने हाथों व दिमाग का उपयोग करो. हारो नहीं, भगवान ने तुम्हें शक्ति दी है, उसको बढ़ाओ, अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ.
(Tulsi Devi Uttarakhand)

वीणापाणी जोशी

यह लेख वीणापाणी जोशी के लेख ‘सामजिक हलचलों में महिलाएं‘ का एक हिस्सा है.

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

4 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago