धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी के नाम से अल्मोड़ा एक लोकप्रिय नगर है. इस नगर के आस-पास बहुत से सुंदर पर्यटक स्थल हैं. कुछ प्रमुख पर्यटक स्थल के बारे में पढ़िये :
उत्तराखण्ड सरकार द्वारा जागेश्वर धाम को राज्य के पांचवे धाम के रूप में माना गया है. देवदार के सुरम्य वन में स्थित जागेश्वर की गिनती शिव मंदिरो में प्रसिद्ध द्वादस ज्योर्तिलिंगों में की जाती है. यह प्रसिद्ध तीर्थ व दर्शनीय स्थल है. यह मंदिर समूह वास्तुकला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर आरतौला नामक स्थान से 3 किमी0 की दूरी पर स्थित है.
जागेश्वर से 3 किलोमीटर दूरी पर वृद्ध जागेश्वर का मंदिर है. प्रारम्भ में जागेश्वर धाम की स्थापना यहीं पर र्हुइ थी. यह एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है.
ल्मोड़ा के कई धार्मिक स्थलों में चितई स्थित ग्वाल (गोलू देवता) का मंदिर लोक आस्था का प्रमुख केन्द्र है. गौर भैरव रूप में मान्य इस देव मंदिर में आम जनता अपनी मनौती पूरी करने की आशा के साथ आते हैं और न्याय की गुहार करते है. मान्यता है कि ग्वाल देवता के दरबार में की गयी न्याय की गुहार का प्रतिफल शीघ्र मिलता है. चंद शासकों द्वारा अल्मोड़ा में राजधानी बनाने से पूर्व इसका अस्तित्व था. भोलेनाथ, गंगानाथ व हरज्यू समेत अन्य लोक देवताओं के जागर में ग्वाल चम्पावत के राजा थे. उनके पिता राजा झालराई निःसन्तान थे. उन्होंने गौर भैरव की स्थापना की प्रसन्न होकर गौर भैरव ने स्वयं उनके पुत्र के रूप में अवतरित होने का वरदान इस शर्त के साथ दिया था कि सात रानियां होने के बावजूद भी राजा को एक विवाह कलिंगा से करना होगा. राजा के कलिंगा से विवाह के बाद कालान्तर में स्वयं गौर भैरव ने ग्वैल के रूप में उनके घर में जन्म लिया, परन्तु इर्ष्या के कारण सातों रानियों ने शिशु को नदी में बहा दिया. एक मछुवारे को यह शिशु मिला. उसी मछुआरे ने बालक का पालन पोषण किया. बड़ा होकर वह बालक चम्पावत राज दरबार के निकट पहॅ ुचा और लकड़ी के घोड़े को नौले में पानी पिलाने लगा. रानियों ने उसकी हंसी उड़ायी कि कहीं काठी का घोड़ा भी पानी पीता हैं. बालक ने जवाब दिया कि यदि कोई महिला पत्थर को जन्म दे सकती है, तो काठी का घोड़ा भी पानी पी सकता है. यह बात राजा तक पहुंचने पर उन्होंने रानियों को दण्डित किया. यहीं बालक ग्वाल कई वर्षों तक चम्पावत के राजा रहे हैं.
अल्मोड़ा मुख्यालय से 70 किमी0 की दूरी पर द्वाराहाट तहसील मुख्यालय है. यहां से 14 किमी0 की दूरी पर दूनागिरी का मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना सन् 1187 में हुई थी. पुराणों के आधार पर दूनागिरी पर्वत जिसमें वैष्णवी शक्ति पीठ है क्योंकि कहा जाता है कि रामायण काल में हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी लाते समय एक टुकड़ा इस स्थान पर गिर गया था। जड़ी-बूटियों के बारे में मत है कि उसके प्रयोग का तात्कालिक प्रभाव होता है. जनपद के दर्शनीय स्थलों में से एक है. दूनागिरी मन्दिर क्षेत्र में अनेक औषधीय पौधों का भण्डार है.
रानीखेत से 15 किलोमीटर दूरी पर सोनी के निकट बिनसर महादेव के भव्य दर्शनीय मंदिर का निर्माण ब्रहमलीन नागा बाबा मोहन गिरि ने किया था. यहां पर गीता भवन में सम्पूर्ण गीता संगमरमर के पत्थरों पर लिखी गयी है. यहांपर एक संस्कृत पाठशाला भी है. मंदिर तक जाने के लिए पक्का मोटर मार्ग भी है. अल्मोड़ा से 30 किमी दूरी पर बिन्सर अभ्यारण्य का सम्पूर्ण क्षेत्र प्राकृतिक सुषमा से भरपूर है. यहां से सूर्य उदय एंव सूर्यास्त के दृश्यों के साथ हिमालय की छटा देखने योग्य है. अल्मोड़ा के इस प्रमुख पर्यटन स्थल में एक पक्षी विहार भी है.
सुरम्य वादियों व हिम श्रृंखलाओं के मनोहरी दृश्यों को संजोए हुए यह नगर पर्यटकों को आकर्षित करता है. रानीखेत समुद्र तल से 1820 मी0 ऊॅचाई पर स्थित है, तथा प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है. सुहावने व साफ मौसम में हिमशिखरों का दृश्यावलोकन अवर्णनीय है. प्लम, वेरी, स्ट्राबेरी, चैस्टनेट, काफल, बुराश के फूलों से लदे वृक्ष तथा रंग बिरंगे ग्लाईडोनिया, जिरेनियम, जिनिया फ्यूस, गेंदा गुलदावरी, गुलाब, विगोनियां आदि पुष्पों से लदे बगीचे व पार्को के चित्ताकर्षण दृश्य पर्यटक को इस स्थल पर रूकने व पर्वतीय सौन्दर्य का आनन्द लेने को बरबस रोक लेते है.
रानीखेत से 10 कि0मी0 की दूरी पर स्थित चौबटिया गार्डन अपने प्राकृतिक सौन्दय, विभिन्न प्रजातियों के फलों एवं पुष्पों के लिए विश्व विख्यात है. उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा राजकीय उद्यान चौबटिया में ही स्थित है. यहां से नेपाल से लेकर गढ़वाल तक हिमालय श्रेणियां दिखती है.
कटारमल में प्रसिद्ध ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है. यह अल्मोडा से 14 किमी0 की दूरी पर स्थित है. इसके समीप गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान भी है.
यह स्थान रानीखेत से 63 किमी एवं चैखुटिया से 10 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां पर सुन्दर बरसाती ताल है. कुमाऊं में स्थित कुछ छोटी तालों में एक ताल तड़ागताल है. यह संभवतः अल्मोड़ा जिले की एकमात्र ताल है.
अल्मोड़ा से 47 किमी दूरी पर ताकुला के पास गणानाथ का शिव मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है इसकी चोटी पर मल्लिका देवी का मंदिर है. यह स्थान एक व्यू पाइंट के रूप में भी जाना जाता है यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रकृति के अद्भुत रंग देखने को मिलते हैं.
देवी शाक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध नैथणा देवी का मंदिर रानीखेत से 54 कि0मी0 चैखुटिया से 15 कि0मी0 और भिकियसैण से 4 कि0मी0 की दूरी पर है. रानीखेत से जालली मोटर मार्ग पर स्थित दौला नामक गांव से यहां पहुंचने के लिए 4 कि0मी0 पैदल चलना पड़ता है. धार्मिक एवं साहसिक पर्यटन हेतु यह स्थल अति उत्तम है.
रानीखेत-अल्मोड़ा मोटर मार्ग पर रानीखेत से 5 कि0मी0 दूरी पर स्थित उपट कालिका-गोल्फ कोर्स चारों ओर चीड़ के वनों से घिरा है. यहां स्थित 9 होल वाला माउण्टेन रीजन का गोल्फ कोर्स है. गोल्फ कोर्स के पास ही प्राचीन कालिका मंदिर है.
मानिला रानीखेत से 87 किमी0 एवं रामनगर से 75 किमी0 की दूरी पर स्थित मानिला नामक स्थान आत्मचिंतन, योगध्यान, वन्य प्राणी हिमांच्छादित हिमशिखरों के लिये प्रसिद्ध पर्य टक स्थल है. दर्शनीय स्थलों में प्राचीन मानिला देवी तथा शक्तिपीठ मानिला का मंदिर स्थित है.
अल्मोड़ा से 32 कि0मी0 की दूरी पर स्थित जलना नामक स्थान समुद्र सतह से 5500 फीट की ऊॅचाई पर स्थित पर्यटक स्थल है. जलना के चारों ओर सेब और अन्य पर्वतीय फलों के बगीचे बिखरे पडे़ है. यहां से हिमालय की चोटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. जलना से लगभग 2 कि0मी0 की दूरी पर बानड़ी देवी का मंदिर है.
अल्मोड़ा नगर से 8 कि0मी0 की दूरी पर कश्यप (कासाय) पर्वत के नाम से कौशिकी का मंदिर है. पुराणों के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों का नाश करने के लिए पार्वती यहां कौशिकी के रूप में प्रकट हुयी है. इसी कारण कालान्तर में यह स्थल कसारदेवी के नाम से जाना जाने लगा. इस स्थल से हिमशिखरों के दर्शन भी होते है. प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण होने के कारण यह स्थान विदेशी पर्यटकों व लेखकों के बीच प्रसिद्ध रहा है.
अल्मोड़ा से 70 किमी की दूरी पर स्थित द्वाराहाट हिमालय की द्वारिका के नाम से जाना जाता है. यह कत्यूरी राजाओं के कला प्रेमी एवं धर्मनिष्ठा का प्रतीक है. उन्होंने यहां 30 मन्दिरों एवं 365 बावड़ियों का निर्माण करवाया. रूहेलों के आक्रमण के समय एवं विशाल समय अन्तराल के बाद बचे हुए मन्दिर उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक वैभव के प्रतीक है. राहुल सांस्कृत्यायन ने इन मन्दिरों का निर्माण काल 11वीं शताब्दी बताया है. कत्यूरी राजाओं ने द्वाराहाट में उत्तरी दिशा में द्वारिकापुरी बनाने का प्रयत्न किया था. द्वाराहाट के मन्दिर समूहों में रतन देव, कचहरी, मनदवे , बूजरदेव, मृत्युंजय, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरीसिद्ध देव मंदिर समूह नामक अलग-अलग मंदिर समूह है. स्थापत्य कला की दृष्टि से यह बेजोड़ है. महामृत्युंजय और गुजरदेव मंदिर का विशिष्ट स्थान है. गुजरदेव मंदिर वास्तु शैली एवं पुरातत्व की दृष्टि से सबसे अनूठा है. इसे गुजरदेवालय के नाम से भी जाना जाता है. यह देवालय द्वाराहाट में शालदेव पोखर के पास एक ऊंची जगती पर बनाया गया हैं.
सोमेश्वर से 5 किलोमीटर दूरी पर ऐड़ाद्यो पर्वत पर बिन्देश्वर महादवे का और पर्वत की चोटी पर मां बिन्देश्वरी का सुन्दर मंदिर स्थित है. इन दोनो मंदिरो के मध्य में ऐड़ा देवी का मंदिर है. यह महादेव गिरि महाराज जी की तपोभूमि रही हैं. अधिक पढ़े : प्रकृति के वैभव के बीचोबीच है ऐड़ाद्यो का मंदिर
लोधिया से लगभग 10 किलोमीटर पैदल मार्ग पर सुन्दर कपिलेश्वर शिव मंदिर है. इस मंदिर की मूर्तियां केदारनाथ ज्योर्तिलिंग मूर्तियों के समान है.
यह स्थान अल्मोड़ा से 35 किमी दरू स्थित है. यहां पर स्याहीदेवी का प्रसिद्ध मंदिर है. भारत रत्न पं0 गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म स्थल गांव खूंट यहां से 3 किमी की दूरी पर है.
-काफल ट्री डेस्क
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Binsar Mahadev ke Sath Binsar Wildlife Sanctuary ko add krna confusion kar rha hai.. Dono ki importance Apni Apni jagah hai.
BAHUT SUNDER LIKHA HAI...