उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने राज्य के आपदा न्यूनीकरण केंद्र को चमोली की नीति घाटी ग्लेशियर टूटने से एक झील बनने की जानकारी दी है. रायकांडा और पश्चिमी कामेट ग्लेशियर के संगम पर बनी यह झील नीति गाँव से 14 किमी ऊपर स्थित है. यूसैक ने सेटेलाईट से मिली फोटो सरकार को सौंप दी हैं. यूसैक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि झील से अभी कोई खतरा नहीं है लेकिन अगर झील में पानी बढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में यह खतरनाक हो सकता है.
यह झील 2001 से बनना शुरू हो गयी है लेकिन 2018 तक इसके आकार में बहुत वृद्धि हो चुकी है. यहीं से अलकनंदा की एक प्रमुख सहायक नदी धौलीगंगा निकलती है. झील का आकार में प्रति वर्ष 500 से 700 मीटर तक बढ़ रहा है. ग्लेशियर के मुहाने पर बनी झील हमेशा खतरनाक होती है च्यूंकि इनकी क्षमता बहुत कम होती है.
देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान ने 2015 में उत्तराखंड की बड़ी ग्लेशियर झीलों की एक सूची प्रकाशित की. सूची के मुताबिक़ अकेले उत्तराखंड में ग्लेशियरों के ऊपर बनी हुईं या उनसे सटी हुई क़रीब 1266 झीलें हैं. अलकनंदा घाटी 635 झीलें जबकि भागीरथी की घाटी में 306 हैं जो ग्लेशियरों के ऊपर बनी हुईं हैं. वासुकी ताल, केदार ताल और हेमकुण्ड ग्लेशियरों के पिघलने से बनीं हुई झीलें ही हैं. सूची में गौरी गंगा घाटी की 92 झील, धौली गंगा घाटी की 75 झील, टौंस घाटी की 52 झील, कुटियांग्टी घाटी की 45 झील, भिलंगना घाटी की 22, मंदाकिनी घाटी की 9, यमुना घाटी की 13 और पिंडर घाटी की 7 झीलें शामिल की गई हैं.
केदारनाथ त्रासदी के बाद से उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र इस झील पर निगरानी रखे है. जलवायु परिवर्तन और बढ़ती ग्लोबल वार्मिग के चलते सरकार ग्लेशियर टूटने से तो नहीं बचा सकती लेकिन ऐसी घटनाओं से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को सचेत कर जान माल की हानि को कम कर सकती है.
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