क्या महामारी कानून-व्यवस्था का प्रश्न है? आज जिस तरह से पूरा देश एक तरह से छावनी में तब्दील हो चुका है, लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं, जैसे कोरोना वायरस न होकर जेल से भागा कोई कैदी हो! The World will be Different after Corona
माना जा रहा है कि यही इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है. कोविड-१९ एक संक्रामक बीमारी है. ये और न बड़े इसके लिए जरूरी है कि लोग कम से कम एक दूसरे के संपर्क में आएं. और यही बात इसे कानून-व्यवस्था का प्रश्न बनाती है. The World will be Different after Corona
पर क्या लॉकडाउन धरातल पर भी इतना ही असरदार है? क्या ये सच नहीं है कि लॉकडाउन के बाद भी लाखों की संख्या में मज़दूर देश के एक हिस्से से दूसरे में गए? और ज़रा निजामुद्दीन के जमातियों को याद कीजिये.
पर आप शायद एक को तो इस आधार पर खारिज कर देंगे कि होने वाला नुकसान मामूली था, बिलकुल उन मज़दूरों की तरह! और दूसरे को कि ये तो कौम ही मूर्खों की है और मूर्खता का कोई इलाज़ नहीं!
हालाँकि न तो मूर्खता पर किसी संप्रदाय-विशेष का एकाधिकार है, और न ही मूर्खता महामारी के समय अवकाश पर जाती है. और फिर अगर इसमें आप लॉकडाउन के कारण होने वाले दूसरे नुकसानों को भी जोड़ दें, तो फिर ये तरीका उतना असरदार नहीं रह जाता. The World will be Different after Corona
पर शायद धरातल हमारे सवाल का जवाब ढूढ़ने की सही जगह नहीं है. धरातल पर हर आदमी का अपना दृष्टिकोण होता है, जो इस पर निर्भर करता है कि वो वहाँ देखना क्या चाहता है.
फिर भी इतना तो मानना पड़ेगा कि दुनिया के सारे राष्ट्र आज एक बात पर सहमत हैं, कि अगर कोविड-19 जैसी महामारी से लड़ना है तो लॉकडाउन ही सबसे अच्छा उपाय है. कई तो इसे विकल्प मान रहे हैं.
भारत जैसे कई देशों में जहाँ कई हफ़्तों का लॉकडाउन जारी है, लोग अपने अपने घरों में क़ैद हैं और केवल आवश्यक कामों के लिए ही बाहर जा रहे हैं. स्कूल, कॉलेज, ऑफ़िस सब बंद हैं.
ये अभूतपूर्व है! इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ जब राज्यों ने इस क़दर अपने नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किया हो, फिर चाहे उनकी भलाई के नाम पर ही क्यों न हो.
पर ऐसा भी नहीं है कि लॉकडाउन हमारे लिए बिलकुल ही नया हो (हालाँकि शब्द इस तरह से प्रयोग में पहली बार आया है). परंपरागत तौर पर महामारियों के दौरान ऐसे कदम उठाये जाते रहे हैं. फिर चाहे वो 14 वीं शताब्दी का यूरोपियन प्लेग हो या 1918 का स्पेनिश फ़्लू. क्वारंटाइन शब्द तो पहली बार आया ही प्रयोग में यूरोपियन प्लेग के दौरान. पर एक तो उनका दायरा बड़ा सीमित था. दूसरा, उन्हें विकल्प के तौर पर नहीं देखा जाता था.
लॉकडाउन विकल्प कैसे बना? कैसे राज्यों को ये लगने लगा कि वे इस क़दर अपने नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकते हैं?
एक तो राज्यों का सर्वशक्तिमान बन जाना ही है. आधुनिक राज्य सर्वशक्तिमान हैं. समुदाय, जो कभी महामारियों के खिलाफ लड़ाइयों के केंद्र में हुआ करते थे, आज कहीं नहीं हैं. राज्यों ने उनकी शक्तियों का अतिक्रमण कर लिया है, जैसा कि और कई संस्थानों के साथ किया है. The World will be Different after Corona
यही वजह है कि आज कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में राज्य अग्रणी, और कहीं कहीं तो एकमात्र, भूमिका में हैं और समुदाय घरों में बंद ताली बजा रहा है. कभी इसी समुदाय ने हमें फ्लोरेंस नाइटिंगेल दी थी!
राज्य सर्वशक्तिमान कैसे बने? कुछ हद तक इसके लिए सत्ता के प्रति हमारे नज़रिए में हुआ बदलाव जिम्मेदार है.
कभी लोग सत्ता को शक के नज़रिये से देखा करते थे. राजा कितना ही उदार क्यों न हो, उसके उदारता की एक कीमत होती है, ये वो जानते थे. सत्ता की सवारी को शेर की सवारी समझा जाता था.
पर आज ऐसा नहीं है. आधुनिक राज्यों ने अपने को पूरी तरह से पुनर्भाषित कर लिया है. परंपरागत नज़रिये के विपरीत, आज सत्ता के प्रति हमारा नज़रिया वही है जो एक बच्चे का अपने अभिभावक के प्रति होता है, पूर्ण-निर्भरता का.
राज्यों की शक्ति का मुख्य आधार होता है, पशु बल यानी ब्रूट फ़ोर्स. दूसरा, राज्यों के पास असीमीत संसाधन होते हैं वहीं समुदायों के पास सीमित.
यही कारण है कि जब तक समुदाय कोविड-19 जैसी महामारियों से लड़ाई के केंद्र में थे, तब तक लॉकडाउन विकल्प नहीं बना था और न ही बन सकता था.
पर आज जब राज्य केंद्रीय भूमिका में हैं, लॉकडाउन विकल्प बन गया है. खासकर कि उन देशों में जहाँ गरीबी ज्यादा है और किसी और प्रकार के हस्तक्षेप की गुंजाईश उतनी ही कम. The World will be Different after Corona
ताज़ा आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 अभी तक डेढ़ लाख के करीब ज़िंदगियाँ लील चुका है. उम्मीद की जानी चाहिए कि ये आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं बढ़ेगा.
पर जो लोग बच जायेंगे, जो दुनिया उनका इंतजार कर रही है वो कैसी होगी? जहाँ अभी-अभी दुनिया के सभी राज्यों ने एक अभूतपूर्व शक्ति-प्रदर्शन में हिस्सा लिया है. क्या ये उन्हें और भी अधिक शक्तिशाली बनने के लिए प्रेरित नहीं करेगा? क्या आप ऐसी दुनिया में रहना चाहेंगे? The World will be Different after Corona
-निखिल पाण्डे
निखिल पाण्डे हल्द्वानी में रहने वाले युवा लेखक हैं. अधिकतर लेखन अंग्रेज़ी में करने वाले निखिल ने दिल्ली से अपनी पढ़ाई की और फिलहाल पूर्णकालिक लेखन करते हैं.
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एक मित्र द्वारा कुछ दिनों पूर्व काफल ट्री वेब पत्रिका की पोस्ट शेयर की गई और फिर आपसे जुड़ने का अवसर मिला। बहुत शानदार काम कर रहे हैं आप लोग बहुत ही ज्यादा। निखिल पांडेय का यह आर्टिकल व्यवस्थाओं के आधुनिकीकरण के नाम पर साजिशन सामाजिक समुदायों के उन्मूलन से उतपन्न परिस्थितियों की विडम्बनाओं की तरफ स्पस्ट इसारा करता है। आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में बिना सोचे समझे सम्मिलित होना बैलगाड़ी से सीधे जेट प्लेन में सवार होने जैसा है जिसमे दुर्घटना की दशा में किसी के भी जिंदा बच जाने की संभावनाएं बहुत कम हैं।