50 वर्ष पहले 20 जुलाई 1969 को चांद की सतह पर मानव के वे पहले कदम पड़े थे. 8 बज…
कहानी की कहानी-5 आज जब करीब पचपन वर्ष बाद ‘कहानी’ कथा-पत्रिका में देवेन नाम से छपी अपनी इस कहानी ‘अलगाव’…
न जाने नक्षत्रों में है कौन! हां, कौन जाने अंतरिक्ष में जगमगाते असंख्य नक्षत्रों के किस अनजाने लोक में न…
कहानी की कहानी - 4 बखतऽ तेरि बलै ल्यूंल. तेरी बलिहारी जाऊं बखत (वक्त). कितना कुछ चला जाता है बखत…
कहानी की कहानी उर्फ़ बकरा बलि का ईजा (मां) बीमार थी. उसका बहुत मन था कि देबी खूब पढ़े हालांकि…
मेरी कहानी ‘दाड़िम के फूल’ की भी एक मजेदार कहानी है. आनंद तब आए जब इससे पहले मेरे दोस्त बटरोही की कहानी ‘बुरांश…
एक दिन मुझे पछेटिया बन कर सचमुच शिकार पर जाने का मौका मिल गया. पछेटिया मतलब शिकारी के पीछे-पीछे चलने…
“पूरी कथा सुना दी हो देबी तुमने तो.” “पूरी कथा? अभी कहां पूरी हुई?” “क्यों रिटायरमेंट तो हो गया?” “रिटायमेंट…
बचपन से आज तक ईजा (मां) को कभी नहीं भूला. वह 1956 में विदा हो गई थी, जब मैं छठी…
कहो देबी, कथा कहो – 46 पिछली कड़ी – कुमारस्वामी और काम के वे दिन वह दिन था 2 जून…