अमित श्रीवास्तव

खटीमा में हुए एक पुराने पुलिस एनकाउंटर की कहानी

[उत्तराखण्ड के जनपद उधमसिंहनगर में साल 2009 में घटे एक लाइव एनकाउंटर की यह कथा हमारे सहयोगी अमित श्रीवास्तव ने बयान की है. इन दिनों जब पुलिस एनकाउंटर की पूरी प्रक्रिया कई तरह के प्रश्नों के दायरे में है, यह कथा एक अलग तरह का नैरेटिव पेश करती है. घटना में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से एक यानी खटीमा के तत्कालीन सीओ फिलहाल हल्द्वानी नगर में एस.पी. सिटी के तौर पर तैनात हैं और उनका नाम भी अमित श्रीवास्तव है. दिलचस्प तथ्य यह है कि ये दोनों अमित श्रीवास्तव अपनी पुलिस ट्रेनिंग के दौरान रूम पार्टनर भी थे. यह अलग बात है कि एनकाउंटर इधर के समय में एक बदनाम शब्द बन चुका है लेकिन पोस्ट के आखिर में हम इसी घटना का एक पुराना वीडियो भी दे रहे हैं जिसे देखने के बाद आप हैरत कर सकते हैं कि अमित श्रीवास्तव और उनकी टीम को उनके साहस के लिए बहादुरी अवार्ड क्यों नहीं दिया गया. यह बात भी समझ में आती है कि इस तरह के अवार्ड पाने के लिए आपको शायद खुद ही अपना ढोल पीटना होता है. -सम्पादक Story of an Old Police Encounter]

तमंचा उसने महिला की कनपटी पर सटा रखा था. बहुत स्पष्ट था कि ज़रा सी छेड़-छाड़ करने पर वो महिला की खोपड़ी उड़ा देता. Story of an Old Police Encounter

जब थाने पर झनकइया चौकी इंचार्ज ने फोन पर ये सूचना दी कि किसी ने एक महिला को अगवा कर लिया है तब बमुश्किल सुबह के सात बजे थे और छोटे से उस सीमांत क़स्बे खटीमा का थाना भी कस्बे की तरह ही ठंडी ओस में लिपटा अलसाया हुआ सा पड़ा था. ये ख़बर एक सनसनी की तरह आई क्योंकि किडनैपर वही था जिसने कुछ ही दिनों पहले एक आदमी की हत्या की थी और फरार हो गया था. मुक़दमा दर्ज हुआ था और तफ़्तीश जारी थी. Story of an Old Police Encounter

उस हत्या की एकमात्र चश्मदीद गवाह ये महिला थी. ये मामला हत्यारे, मरहूम शख्स और महिला की बहन के प्रेम-त्रिकोण का था. और अब महिला हत्यारे की गिरफ्तारी में पुलिस की मदद कर रही थी. इस जानकारी के बाद ही वो हत्यारा आज इस गवाह को मारने के उद्देश्य से ही वहाँ आया था लेकिन मारने से पहले ही शायद महिला जाग गई थी, शोर कर दिया था और कुछ लोग वहाँ पहुंच गए थे. उन लोगों की वजह से अपराधी ने महिला को तमंचे की नोक पर बंधक बना लिया था और पकड़े जाने के भय से अगवा कर कुछ दूर निकल गया था, गाँव से डेढ़ किलोमीटर दूर.

जब पुलिस पार्टी वहाँ पहुंची तो महिला की कनपटी पर तमंचा सटाए उसे दबोचे हुए वो एक शटर बंद दुकान के बाहर खड़ा था. उसकी पोजीशन इस तरह की थी कि किसी भी हाल में दुकान की छत या कहीं पीछे से एप्रोच नहीं किया जा सकता था. आगे या अगल-बगल से आने पर उस सबकुछ साफ-साफ दिखता और वो कुछ भी प्रतिक्रिया कर सकता था. इसके बाद तकरीबन दो घण्टे तक पुलिस और मुजरिम के बीच बात-चीत चलती रही. दो घण्टे तक. उसे समझाया जाता रहा कि वो महिला को छोड़ दे उसे जाने दिया जाएगा मगर वो बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं था. आस-पास के बहुत सारे लोग इकट्ठा हो चुके थे. उसे मनाने की कोशिशें जारी थीं. ये डर सबको था कि इधर की हल्की सी हरकत जानलेवा हो सकती है क्योंकि वो गोली चला देने पर आमादा हुआ जा रहा  था.

इस बेहद तनावपूर्ण स्थिति में दो घण्टा एक बहुत बड़ा वक्फा होता है. कुछ भी हो सकता था. पुलिस का धैर्य जवाब दे सकता था, उसके सब्र का बाँध टूट सकता था, महिला की तरफ से भी कोई हरकत हो सकती थी लेकिन उसे बात करने या कहें कि बातों में उलझाए रखने के सिवा और कोई चारा भी नहीं था.

पुलिस के कुछ लोग दाहिने और बाएं से बहुत धीरे-धीरे इंच दर इंच आगे बढ़ रहे थे. एक तरफ से लोग उससे बात करते, महिला को छोड़ देने की चिरौरी करते तो दूसरी तरफ के लोग कुछ इंच आगे सरक आते. उस व्यक्ति की मानसिक अवस्था ऐसी थी कि वो किसी भी व्यक्ति पर, किसी भी दिशा में गोली चला सकता था.

दो घण्टे की साँस थाम देने वाली इस मशक्कत के बाद पुलिस के कुछ लोग उससे कुछ पांच-सात फ़ीट की दूरी तक पहुंच गए थे. ये जानते, समझते, महसूस करते हुए कि सामने एक जुनूनी मुजरिम था, एक हत्या को अंजाम दे चुका हुआ, उसके कब्ज़े में एक निर्दोष महिला थी, खुद को बचाने के लिए जिसे वो किसी भी पल मार सकता था, उसके हाथ में एक तमंचा था, चाकू, तमंचा या कोई और असलहा होने की पूरी गुंजाइश भी थी, वो उनपर भी हमला कर सकता था, उसका हाथ इंच भर किसी कोण पर फिसलता और किसी की भी खोपड़ी उड़ सकती थी, फिर भी.

अमित श्रीवास्तव, तत्कालीन सी.ओ. खटीमा (वर्तमान में एस.पी. सिटी हल्द्वानी)

उसे अचानक कुछ आभास हुआ शायद उनके इतने करीब आ जाने का, पकड़े जाने का या कुछ और, उसने फायर कर दिया!

लेकिन. लेकिन उसके आभास होने और फायर चलाने के बीच दो-तीन पुलिस वाले उसके ऊपर कूद चुके थे. एक ने उसकी बाँह पर इतना मुकम्मल झटका दे दिया था कि गोली महिला की खोपड़ी की महज़ खाल छीलते हुए निकली. उसके कुछ बाल हवा में उड़े और वो आदमी से आगे गिरी. इससे पहले की वो व्यक्ति पैंट में खोंसे दूसरे तमंचे की तरफ हाथ बढ़ाता… Story of an Old Police Encounter

अस्पताल पहुंचने तक दम तोड़ चुका था वो. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास शायद अब भी वो वीडियो फुटेज हों जब सेकेंड के दसवें हिस्से के वक्त में कुछ हरकत होती है, महिला के बालों का एक गुच्छा हवा में लहराता है और तीन चार लोगों के गिरते-गिरते दो-तीन गोलियों की आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं, ठक! धाँय! धाँय! और ठंड के मौसम में भी भरपूर पसीना निकाल देने वाले, इस लाइव एनकाउंटर का डेड एंड होता है! Story of an Old Police Encounter

[किसी लुग्दी उपन्यास से उड़ाई लगने वाली ये कथा जनपद उधमसिंहनगर में साल 2009 में घटी थी जिसका एक लिंक उपलब्ध हो सका है. कथा के मुख्य पात्र सीओ खटीमा वर्तमान एसपी सिटी हल्द्वानी (नोट: अमित श्रीवास्तव काले स्वेटर में हैं), एसएसआई खटीमा, कोतवाल, मनेरी थाना, उत्तरकाशी आदि-आदि इसी धरती पर पाए जाते हैं.]

अमित श्रीवास्तव

यह भी पढ़ें: आम की तो छोड़ो गुरु अमरूद कहाँ हैं यही बता दो

अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं.  6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास). 

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