देहरादून में इन दिनों विरासत-2019 चल रहा है. इसके प्रारम्भिक दिन की रपट हमने कल साझा की थी. देखिये आज वहां क्या हुआ.
गरिमा आर्य
आज शाम 7बजे कार्यक्रम की शुरुआत मशहूर कत्थक डांसर गरिमा आर्य जी ने अपनी कत्थक की शैली से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया . बचपन से ही कत्थक में दिलचस्पी रखने वाली गरिमा जी कहती हैं कि वो खुशनसीब है की उहने अपने गुरु एवं पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित श्री बिरजू महाराज से सीखने का मौका मिला. डॉक्टर परिवार से संबंध रखने वाली गरिमा आर्य ने अपने बचपन की शिक्षा हरिद्वार से ग्रहण कि बाद में उन्होंने दिल्ली जाकर अपनी शिक्षा एवं कत्थक की तालीम ली .
शाम 8 बजे कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए मशहूर कव्वाल शाहिद नियाज़ी एवं समी नियाज़ी जी ने स्टेज पे अपनी छाप बिखेरी.
शाहिद नियाज़ी और समी नियाजी
शाहिद नियाज़ी का जन्म भारत के रामपुर (यू.पी.) जिले के क़व्वाली के रामपुर घराना के एक प्रसिद्ध संगीत परिवार में हुआ था. जो 300 वर्षों से कव्वाली के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. उनके पिता स्वर्गीय उस्ताद गुलाम आबिद नियाज़ी, जो खुद एक बहुत ही प्रसिद्ध कव्वाली गायक थे और अपने समाज में एक बहुत ही प्रतिष्ठित कलाकार थे और आज भी उन्हें उसी सम्मान और सम्मान के साथ याद किया जाता है, साथ ही वे कोर्ट म्यूजिशियन (कोर्ट) में से एक थे नवाब रामपुर). श्री शाहिद नियाज़ी बचपन से ही कव्वाली शैली के लिए बहुत सचेत थे इसलिए उन्होंने बहुत ही कम उम्र से संगीत सीखना शुरू कर दिया और जल्द ही वह अपने पिता के बहुत उज्ज्वल शिष्य बन गए. श्री शाहिद का समर्पण और कड़ी मेहनत उन्हें सफलता की ओर ले गई और वे अपने प्रशंसकों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए और ए.आई.आर. (ऑल इंडिया रेडियो), I.C.C.R (इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन्स) और कई अन्य, साथ ही साथ उन्हें A.I.R.DD में “A” ग्रेड से पुरस्कृत किया गया है. इसके अलावा उन्होंने पूरे भारत और दुनिया में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किया है जिसमें दक्षिण अफ्रीका, दुबई, कोलंबो, मॉरीशस आदि शामिल हैं. लगभग हर सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम में. श्री शाहिद के अच्छे गुणों में से एक यह है कि वे खुद एक बहुत अच्छे कवि, संगीत संगीतकार और वास्तव में एक उत्कृष्ट गायक होने के साथ-साथ विभिन्न भाषाओं जैसे हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, अरबी, पूर्वा, पंजाबी आदि में भी गाते हैं. उन्होंने डीडी I पर “शबनम” नामक टीवी श्रृंखला के लिए एक गीत भी किया है. श्री शाहिद एक अतिरिक्त ओडिनरी प्रतिभा को एक बहुमुखी गायन जैसे कि कव्वाली, नात, ग़ज़ल, भजन, गीत, लोक आदि में प्रदर्शित करते हैं. वह अपने गायन के माध्यम से भाईचारे और शांति का संदेश देना कभी नहीं भूलते. उन्हें विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संगठनों से कई पुरस्कार भी मिले हैं जैसे कि राजीव गांधी ग्लोबल अवार्ड, संस्कृति सम्मान 2015 आदि.
नसीर मियाँ नियाज़ी उर्फ बाबा साहेब (R.A) जो खानकाह-ए-नियाज़िया, बरेली में रहते हैं, जिन्होंने उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें सही रास्ते की ओर निर्देशित किया. ऐसा माना जाता है कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने श्री शाहिद के पक्ष में बाबा साहेब की सभी प्रार्थनाओं का जवाब दिया. इसलिए उनकी प्रतिभा सफलता के उत्कृष्ट स्तर तक पहुंची. नियाज़ी साहब के साथ स्टेज पर उनका साथ दिया उनके भांजे समी नियाज़ी जी ने.रामपुर में जन्मे समी नियाज़ी जी बताते हैं कि बचपन से ही अपने पिता से काफी प्रेरित रहे हैं जो कि खुद एक बेहतरीन , तबला वादक , ढोलक वादक एवं गायक हैं. बचपन से ही संगीत घराने में जन्म लेने के कारण नियाज़ी जी को परिवार से ही बोहोत कुछ सीखने को मिला.बाद में वे अपने मामा जी श्री शाहिद नियाज़ी जी के साथ पूर्ण रूप से जुड़ गए और उन्ही से सीखते गए . श्री नियाज़ी जी को सन 2012 में साउथ अफ्रीका में ‘बज़्म-ए-चिस्तिया’ सम्मान से भी सम्मानित किया गया है.
(विरासत-2019 द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…