बहुत दिनों बाद रक्षा बंधन की छुट्टियों में भोगीलाल जी से मिलना हुआ. चर्चा चल निकली. मैंने कहा कि ये तो गज़ब है ! एक कम्पनी ने पहले फ्री सिम बांटे, फिर फ्री फोन कॉल और फ्री इंटरनेट दिया. अब सुन रहे हैं की वो कम्पनी फ्री में फोन भी दे रही है.
‘तो ये तो होना ही है प्रिय! अभी तो वो कम्पनी फ्री में टीवी देगी, उसके बाद उसपर फ्री में कार्यक्रम भी दिखाए जाएंगे. ‘
‘ये तो बड़ा अनोखा, एकदम नया बिज़निस मॉडल है.’
‘ऐसा क्या नया है? रोज़ तो इस तरह की बिज़निस टेक्टिक्स देखते हो आप.’
‘नया नहीं है? तो तुम बताओ कि पुराना कैसे है?’
‘ये देखो! आपके हाथ मे अख़बार है, उस पर क्या लिखा है- ट्रेन में दम्पत्ति को बिस्कुट खिला बेहोश कर लूटा, बढ़ रही हैं जहर खुरानी की वारदातें.’
‘अरे कहाँ की कहाँ जोड़ रहे हो? क्या कनेक्शन है दोनों का?’
‘पूरा कनेक्शन है प्रिय. दोनों का एक ही बिज़नेस मॉडल हैं.’
‘कैसे? ज़रा व्याख्या करो !’
‘देखो प्रिय! होशियार व्यापारी वही है जो ग्राहक को होश में न आने दे.’
‘मतलब ये कला व्यापारियों ने जहरखुरानी वालों से सीखी है?’
‘न इन्होंने उनसे सीखी है, न उन्होंने इनसे सीखी है. दोनों ने किसी और से सीखी है.’
हम दोनों मुस्कुराने लगे. फिर भी मैं भोगी भाई के मुख से सुनना चाहता था.
मैंने पूछा -‘किससे सीखी है ये कला?’
‘देखिये प्रिय! किसी ने हमसे कहा – हम ग़ुलाम है, आज़ादी के लिए लड़ना होगा. लड़ो!
हम लड़ने लगे. फिर हमने पूछा – आज़ादी आ गई ?
उन्होंने कहा-पाकिस्तान ने हमला किया है, राष्ट्र पुकार रहा है. सुनो!
हम सुनने लगे,राष्ट्र की पुकार. फिर हमने कहा-हमारी आज़ादी तो दे दो.
उन्होंने कहा-बड़े-बड़े उद्योग लगा रहे हैं, पंचवर्षीय योजना बना रहे हैं, सब तुम्हारे लिए. खुश हो जाओ!
हम खुश हो गए. फिर हमने कहा-आज़ादी किधर है?
उन्होंने कहा-देश पर संकट है. गमले में गेहूं उगाओ! हमने उगा लिए. फिर हमने पूछा-और वो आज़ादी ?
उन्होंने कहा -गरीबी बड़ी समस्या है. हमारे साथ-साथ बोलो -गरीबी हटाओ!गरीबी हटाओ!
हम बोलने लगे. फिर हमने जानना चाहा- वो …वो आज़ादी का क्या हुआ?
उन्होंने बताया- भारत वर्ल्ड कप जीत गया. नाचो!
हम नाचने लगे. फिर हमने कहा-आज़ादी ?
उन्होंने कहा-प्रधानमंत्री की हत्या हुई है. डर जाओ!
हम डर गए. फिर हमने कहा-हमारी वो…वो .. क्या कहते हैं….आज़ादी दिलवा दो.
उन्होंने कहा-एक नई चीज़ आई है टीवी. देखो और मस्त हो जाओ!
हम मस्त हो गए. फिर हमने कहा -हमारी वो..वो.. क्या नाम था उसका…. आज़ादी! वो दो हमें.
उन्होंने कहा-धर्म,जाति और अर्थव्यस्था संकट में है. किसी एक के लिए लड़ो!
हम लड़ने लगे. फिर हमने कहा-अब हमें हमारी ‘वो’ दे दो.
उन्होंने कहा- क्या दे दो?
हमने कहा -वो..वो..क्या नाम था उसका…जिसका तुमने वादा किया था….वो ही.
उन्होंने कहा-हम तो रोज़ हजारों वादे करते हैं. तुम किस चीज़ की बात कर रहे हो?
हमने कहा -वो ही, जिसका उन्नीस सौ सैंतालीस में तुमने वादा किया था कि दोगे.
उन्होंने कहा- अच्छाss! ऐसा बोलो. ये लो, अस्सी जी बी मुफ्त डेटा. इसी का वादा किया था. अब फोन चलाओ और खुश रहो!
अब हम खुश हैं.
… तो अब आप समझ गए न, व्यापारियों ने किससे सीखा है ये सब. अब चलता हूँ प्रिय. घर पर आज़ादी मांगनी है, तभी पापा लैपटॉप दिलाएंगे. ‘
यह कह कर भोगीलाल जी चले गए. मैं अपने कमरे में बैठा हूँ.रेडियो चल रहा है – पेश है फ़िल्म ‘कभी हां कभी न’ का गाना. जिसके बोल लिखे है मजरूह सुल्तानपुरी ने, संगीत दिया है जतिन ललित ने और गाया है कुमार सानू ने- ‘ऐ काश की हम होश में अब आने न पाएं… बस नगमे तेरे प्यार के… गाते ही जाएं.
प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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